पीएमसीएच के पेडियाट्रिक डिपार्टमेंट में पिछले पूरे एक साल में मात्र 24 मेजर सर्जरी हुई है, जबकि 47 माइनर सर्जरी हुई है. इस बात को विधानसभा में हेल्थ मिनिस्टर ने कहा था. इससे यह जाहिर होता है कि यहां किस प्रकार से काम किया जा रहा है. इस बात को यहां के सर्जरी डिपार्टमेंट के हेड डॉ जेपी गुप्ता भी स्वीकार करते हैं कि यहां बच्चों के लिए लिए स्पेशलाइज्ड ट्रेंड डॉक्टर्स की कमी है. अन्य डिपार्टमेंट में सर्जरी के लिए जेनरल सर्जन होते हैं और यहां भी जेनरल सर्जन ही काम कर रहे हैं.
चाहिए सुपर स्पेशलिस्ट की डिग्री
बच्चों की सर्जरी के लिए सुपर स्पेशलिस्ट की डिग्री हो तो सर्जरी आसान हो सकती है. इससे ऑपरेशन रेट भी अधिक होगा. इस पर्टिकुलर डिग्री का नाम है-मास्टर ऑफ चिरूरजिकल सर्जरी (Master of Chirurgical Surgery), लेकिन सोर्सेज बताते हैं कि यहां किसी भी डॉक्टर के पास यह डिग्री नहीं है. यही वजह है कि आए दिन कई प्रकार की प्राब्लम का सामना यहां के पेशेंट को करना पड़ता है.
इक्वीपमेंट की भी है दिक्कत
यहां इक्वीपमेंट की भी प्रॉब्लम है. यही वजह है कि यहां चाह कर भी मेजर सर्जरी कहीं और कराने पर मजबूर होना पड़ता है. सोर्सेज का कहना है कि यहां इक्वीपमेंट में वेंटिलेटर हैं तो पांच, लेकिन फंग्शन में दो ही काम लायक है. इसके अलावा ऑपरेशन के दौरान टिशू होल्डर, आर्टियरीज हैमरेज से बचाने वाले इक्वीपमेंट की भी कमी है.
पेशेंट खूब लेकिन स्किल्ड डॉक्टर नहीं
स्टेट के बड़े गवर्नमेंट हॉस्पीटल होने के कारण इस पर पेशेंट का लोड प्राय: ज्यादा रहता है, लेकिन इसमें कमी के कारण क्रिटिकल केसेस में बच्चों की जान खतरे में आ जाती है. हाल ही में ख्फ् और ख्ब् जुलाई को पेडियाट्रिक इमरजेंसी में करीब ख्भ् बच्चों की मौत हो गई. इनमें हर प्रकार के केस शामिल थे. रिसोर्सेज की कमी और रिलेटेड एरिया में स्पेशलिस्ट नहीं होने के कारण बच्चों की सेहत का सवाल उठना लाजिमी है. यहां हर दिन म्0 से अधिक बच्चे ट्रीटमेंट के लिए आते हैं.
चाहिए सुपर स्पेशलिस्ट की डिग्री
बच्चों की सर्जरी के लिए सुपर स्पेशलिस्ट की डिग्री हो तो सर्जरी आसान हो सकती है. इससे ऑपरेशन रेट भी अधिक होगा. इस पर्टिकुलर डिग्री का नाम है-मास्टर ऑफ चिरूरजिकल सर्जरी (Master of Chirurgical Surgery), लेकिन सोर्सेज बताते हैं कि यहां किसी भी डॉक्टर के पास यह डिग्री नहीं है. यही वजह है कि आए दिन कई प्रकार की प्राब्लम का सामना यहां के पेशेंट को करना पड़ता है.
इक्वीपमेंट की भी है दिक्कत
यहां इक्वीपमेंट की भी प्रॉब्लम है. यही वजह है कि यहां चाह कर भी मेजर सर्जरी कहीं और कराने पर मजबूर होना पड़ता है. सोर्सेज का कहना है कि यहां इक्वीपमेंट में वेंटिलेटर हैं तो पांच, लेकिन फंग्शन में दो ही काम लायक है. इसके अलावा ऑपरेशन के दौरान टिशू होल्डर, आर्टियरीज हैमरेज से बचाने वाले इक्वीपमेंट की भी कमी है.
पेशेंट खूब लेकिन स्किल्ड डॉक्टर नहीं
स्टेट के बड़े गवर्नमेंट हॉस्पीटल होने के कारण इस पर पेशेंट का लोड प्राय: ज्यादा रहता है, लेकिन इसमें कमी के कारण क्रिटिकल केसेस में बच्चों की जान खतरे में आ जाती है. हाल ही में ख्फ् और ख्ब् जुलाई को पेडियाट्रिक इमरजेंसी में करीब ख्भ् बच्चों की मौत हो गई. इनमें हर प्रकार के केस शामिल थे. रिसोर्सेज की कमी और रिलेटेड एरिया में स्पेशलिस्ट नहीं होने के कारण बच्चों की सेहत का सवाल उठना लाजिमी है. यहां हर दिन म्0 से अधिक बच्चे ट्रीटमेंट के लिए आते हैं.
Source: Online Hindi Newspaper & City News Today
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