Thursday, August 21, 2014

Scanner for digitalisation of rare texts fighting 'war'

हजार दुर्लभ ग्रंथ धूल फांक रहे हैं. उनका अस्तित्व खतरे में है. कई दुर्लभ किताबें नष्ट होने के कगार पर पहुंच गई हैं. सिचुएशन यह है कि संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी के डिजिटलाइजेशन के लिए चार साल पहले मंगाए गया स्कैनर और अन्य मशीनें अब भी कार्टून से बाहर निकल नहीं पाए हैं. वे डिब्बे में जस के तस रखे हुए हैं. ऐसे में लाइब्रेरी को ऑनलाइन कर लोगों तक इनकी पहुंच सुलभ बनाने की परिकल्पना साकार होती नहीं दिख रही है. कुल मिलाकर संरक्षण की कवायद भी दूर की कौड़ी साबित हो रही है. इसके चलते इन दुर्लभ ग्रंथों की बड़ी पूंजी के हाथ से निकलने का खतरा बढ़ गया है. इसे समय रहते हुए बचाना होगा.

बुक्स को चाट रहे दीमक

यूनिवर्सिटी स्थित सरस्वती भवन लाइब्रेरी में एक लाख से अधिक मैनुस्क्रिप्ट के अलावा फ्0 हजार दुर्लभ किताबें भी रखी हुई हैं. इनके रखरखाव के अभाव में कई दुर्लभ ग्रंथ नष्ट हो चुके हैं. यहां तक कि कुछ बुक्स को तो दीमक चाट गया है. यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन ने दुर्लभ ग्रंथों को संरक्षित करने के लिए उनका डिजिटलाइजेशन करने का डिसीजन लिया था. इसके तहत एक बड़े स्कैनर के साथ ही कई और मशीनें मंगाई गई थीं. आलम यह है कि इनको अभी तक इंस्टॉल नहीं किया गया. इसके चलते दुर्लभ ग्रंथों के ऑटोमेशन का अभी तक श्री गणेश नहीं हो सका है.

डीवीडी में पहुंची पांडुलिपियां

एक तरफ जहां सरस्वती भवन लाइब्रेरी में रखी दुर्लभ किताबों को डिजिटाइज्ड नहीं किया जा सका है तो वहीं दूसरी ओर लाल पोटली में सहेज कर रखी गई दुर्लभ पांडुलिपियां अब डीवीडी में पहुंच पाई हैं. ख्8भ् डीवीडी कैसेट्स में एक लाख क्क् हजार क्फ्ख् पांडुलिपियां समाई हैं. अब इन्हें कंप्यूटर की हार्डडिस्क में कॉपी करने का डिसीजन लिया गया है ताकि ये नष्ट न हो सकें. लाइब्रेरियन सूर्यकांत का कहना है कि समय-समय पर लाइब्रेरी में रखी दुर्लभ किताबों व पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए प्रस्ताव बनाए गए लेकिन ये इन्होंने अंजाम तक पहुंचने से पहले ही हर बार दम तोड़ दिया. चार वर्ष पहले जो स्कैनर मंगाया गया वह किताबें स्कैन करने में सक्षम नहीं है. जबकि इस नये स्कैनर को अब तक इंस्टॉल तक नहीं किया गया है. बिना यूज में लाए ही इसकी वारंटी तक खत्म हो चुकी है. 


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