वैसे तो युद्ध त्रासदी के लिए ही जाने जाते हैं, लेकिन कई बार ये अपने साथ कुछ सुखद निशान भी छोड़ जाते हैं.
ऐसे में युद्ध के ख़त्म होने के बाद इन 'वार ब्राइड' को उनके नए घर यानी पतियों के घर पहुंचाने के ख़ास इंतज़ाम किए गए.
इसकी शुरुआत ब्रिटेन में 1946 में हुई जब पहले 'वार ब्राइड शिप' के जरिए हज़ारों ब्रिटिश और यूरोपीय महिलाओं को उनके युद्धरत पतियों के घर कनाडा भेजा गया.
बीबीसी के कार्यक्रम विटनेस में ऐसी ही दो 'वार ब्राइड' से बातचीत की गई. आइवी क्लार्क और ग्रेस सियोन को फरवरी 1946 में कनाडा भेजा गया.
इस समय ग्रेस सियोन की उम्र 33 साल थी और आइवी महज़ 25 साल की थीं, जब उन्होंने अपने जीवन के सबसे रोमांचक सफ़र की शुरुआत की.
विदाई का दुख
आइवी बताती हैं कि उन्हें अपनी बहन से बिछड़ने का काफ़ी दुख था, क्योंकि वो दोनों एक दूसरे के काफ़ी नज़दीक थीं.
उन्हें कनाडा ले जाने वाले पानी के जहाज़ का नाम आरएमएस माउरेटेनिया था, जिसने चार फ़रवरी 1946 को इंग्लैंड के लीवरपूल से कनाडा के लिए अपने सफ़र की शुरुआत की.
उस सफ़र के बारे में आइवी बताती हैं, "मुझे याद है कि जब मैं उस जहाज़ में चढ़ी. मैं जहाज़ के चारो तरफ़ देख रही थी. कैप्टन ने मुझसे कहा कि 'मैडम, जैसा कि आप जानती हैं, ये शिप है' मैंने कहा वाह... और फिर हम हंस पड़े." उन्होंने बताया कि सभी को अपनों से बिछड़ने का दुख था.
अच्छा इंसानग्रेस सियोन अपने पति आर्नल सियोन के साथ घर बसाने के लिए जा रहीं थीं, जो एक कनाडाई सैनिक थे.
ग्रेस अपने पति के बारे में बताती हैं, "वो उन पांच हज़ार कनाडाई वायु सैनिकों में शामिल थे, जिन्हें ब्रिटेन ब्रिटिश सरकार ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान तैनात किया था." आर्नल सियोन की तैनाती राडार स्टेशन पर की गई थी.
वो बताती हैं, "मैंने ये नहीं सोचा था कि मैं कनाडा में या कहीं और रहने जा रही हूं. मैं इतना जानती थी कि मैं उस इंसान को प्यार करती हूं और उससे शादी करने जा रही हूं. मुझे और किसी बात की चिंता नहीं थी."
आइवी क्लार्क जो एक डांसर थीं, उन्होंने भी एक कनाडाई सैनिक को जीवन साथी के रूप में चुना. वो बताती हैं, "मेरी बहन ने कहा कि मुझे ये आदमी अच्छा लग रहा है. इसका चरित्र अच्छा है."
रोमांचक सफर
एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर से करीब 40,000 वार ब्राइड कनाडा गईं, इनमें से ज़्यादातर ब्रिटिश थीं. इसकी एक वजह यह थी कि बड़ी संख्या में कनाडाई सैनिक युद्ध शुरू होने के साथ ही ब्रिटिश नागरिकों के साथ मिलकर काम कर रहे थे.
युद्ध के दौरान कई ब्रिटिश महिलाएं अपने भावी पतियों के साथ सप्लाई के काम में लगी थीं, और इनमें से कुछ के काम जोखिम भरे भी थे.
युद्ध के बाद ये सैनिक तो अपने बेड़े के साथ वापस चले गए, लेकिन ब्रिटेन ने इन वार ब्राइड को कनाडा भेजने के लिए ख़ास इंतज़ाम किए.
पिया से मिलनग्रेस बताती हैं, "जहाज पर हर तरह की सुविधाएं मौजूद थीं. वहां हर तरह के खाने-पीने का सामान मौजूद था."
उन्होंने बताया कि वार शिप पर छोटी-छोटी दुकानें भी थीं, जहां चाकलेट या अपनी पसंद की दूसरी चीज ख़रीदी जा सकती थी.
आइवी और ग्रेस पानी के जहाज़ और फिर ट्रेन की यात्रा करके करीब एक महीने बाद अपने पतियों से मिलीं.
ग्रेस बताती हैं, "मैं टोरंटो स्टेशन पर थी. एक लंबे इंतज़ार के बाद आख़िरकार मेरा नाम पुकारा गया. मैंने अपने पति को देखा और उनके गले लग गई."
Source: Hindi News
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