सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इन दोषियों की मौत की सज़ा
को उम्रक़ैद में बदलने का फ़ैसला सुनाया था. कोर्ट ने इन लोगों की दया
याचिकाओं के निपटारे में हुई देरी का हवाला देते हुए अपना फ़ैसला दिया था.
इसके बाद तो तमिलनाडु की मुख्यमंत्री और राज्य में सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक की मुखिया जे जयललिता ने इस मामले को आगे बढ़ाने में कोई देर नहीं की.
आम चुनाव में अब कुछ ही महीने बचे हैं और जयललिता उम्मीद कर रही होंगी कि इस क़दम से वह तमिल मतदाताओं का दिल जीतने में सफल रहेंगी जो श्रीलंका के तमिलों से सहानुभूति रखते हैं और कोलंबो के मानवाधिकार रिकॉर्ड के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करते रहे हैं.
मई 1991 में हुई राजीव गांधी की हत्या को 1987 में श्रीलंका में भारतीय शांति सैनिकों को भेजने के उनके फ़ैसले के प्रतिशोध के रूप में देखा गया था.
यहां तक कि कांग्रेस पार्टी के नेता भी सुप्रीम कोर्ट के इस अहम फ़ैसले के बाद मौक़े की नज़ाकत को देखते हुए इस मामले में अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं.
स्वार्थी राजनीति"मैं शीर्ष अदालत के फ़ैसले से दुखी नहीं हूं. राजीव गांधी का नुक़सान हमारे लिए अपूरणीय है लेकिन अदालत के फ़ैसले के बाद हमें इस सच्चाई के साथ जीना होगा. मैं इसे स्वार्थ की राजनीति के रूप में नहीं देखता हूं"
-पी चिदंबरम, केंद्रीय वित्त मंत्री
समाचार चैनल एनडीटीवी से बात करते हुए केन्द्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने कहा, "मैं शीर्ष अदालत के फ़ैसले से दुखी नहीं हूं. राजीव गांधी का नुक़सान हमारे लिए अपूरणीय है लेकिन अदालत के फ़ैसले के बाद हमें इस सच्चाई के साथ जीना होगा. मैं इसे स्वार्थ की राजनीति के रूप में नहीं देखता हूं." तमिलनाडु के सांसद होने के नाते वह स्थानीय भावनाओं के ख़िलाफ़ जाने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं.
पिछले साल नवंबर में भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को श्रीलंका के मानवाधिकार रिकॉर्ड के मद्देनज़र तमिल नेताओं के दबाव के आगे झुकना पड़ा था और उन्होंने कोलंबो में राष्ट्रमंडल शिखर बैठक का बहिष्कार किया था.
उससे पहले मार्च में जयललिता सरकार ने श्रीलंका मानवाधिकार रिकॉर्ड के विरोध में राजधानी चेन्नई में श्रीलंकाई खिलाड़ियों वाले इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) खेलों की मेजबानी नहीं करने का फ़ैसला किया था. (एक समाचार पत्र ने इसे "उग्र राष्ट्रीयता की इंतहां" का एक उदाहरण बताया था.)
और सितंबर 2012 में, जयललिता की सरकार ने एक दोस्ताना मैच खेलने आई श्रीलंका की एक स्कूली फुटबॉल टीम को चेन्नई से वापस भेज दिया था. उन्होंने कहा था कि इस टीम को भारत में खेलने की अनुमति देकर केन्द्र सरकार ने "तमिलनाडु के लोगों को अपमानित किया है".
इतना ही नहीं, तमिलनाडु में प्रशिक्षण ले रहे श्रीलंकाई सेना के दो जवानों को साल 2012 में देश छोड़ने के आदेश दिए गए थे.
आक्रोशसोशल मीडिया पर दोषियों की रिहाई संबंधी जयललिता के फैसले पर लोगों में आक्रोश है.
तमिलनाडु का मुख्य विपक्षी दल और केन्द्र में सत्तारूढ़ यूपीए सरकार का घटक द्रमुक भारत सरकार के श्रीलंकाई तमिलों के ख़िलाफ़ कथित अत्याचार के मामले में विफल रहने के मुद्दे पर पिछले साल गठबंधन से हट गया था.
इतना काफ़ी है यह बताने के लिए कि दोषियों को रिहा करने के जयललिता के फ़ैसले पर लोगों में ज़्यादा आक्रोश क्यों नहीं है.
सोशल मीडिया पर कुछ यूज़रों ने इस पर हैरानी व्यक्त करते हुए कहा है कि चुनाव जीतने के लिए नेता किस हद तक जा सकते हैं. वे कहते हैं कि नेताओं ने यह भी भुला दिया कि मई 1991 की उस रात राजीव गांधी के साथ एक दर्ज़न से ज़्यादा लोग भी मारे गए थे.
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वे अफ़ज़ल गुरू की पत्नी की भी बात कर रहे हैं. अफ़ज़ल की पत्नी ने सवाल उठाया है कि उनके पति के मामले में भी राजीव गांधी के हत्यारों की तरह विचार क्यों नहीं किया गया? अफ़ज़ल को संसद पर साल 2001 के हुए हमले का दोषी क़रार देते हुए 2013 में फांसी की सज़ा दी गई थी.
इसके बाद तो तमिलनाडु की मुख्यमंत्री और राज्य में सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक की मुखिया जे जयललिता ने इस मामले को आगे बढ़ाने में कोई देर नहीं की.
आम चुनाव में अब कुछ ही महीने बचे हैं और जयललिता उम्मीद कर रही होंगी कि इस क़दम से वह तमिल मतदाताओं का दिल जीतने में सफल रहेंगी जो श्रीलंका के तमिलों से सहानुभूति रखते हैं और कोलंबो के मानवाधिकार रिकॉर्ड के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करते रहे हैं.
मई 1991 में हुई राजीव गांधी की हत्या को 1987 में श्रीलंका में भारतीय शांति सैनिकों को भेजने के उनके फ़ैसले के प्रतिशोध के रूप में देखा गया था.
यहां तक कि कांग्रेस पार्टी के नेता भी सुप्रीम कोर्ट के इस अहम फ़ैसले के बाद मौक़े की नज़ाकत को देखते हुए इस मामले में अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं.
स्वार्थी राजनीति"मैं शीर्ष अदालत के फ़ैसले से दुखी नहीं हूं. राजीव गांधी का नुक़सान हमारे लिए अपूरणीय है लेकिन अदालत के फ़ैसले के बाद हमें इस सच्चाई के साथ जीना होगा. मैं इसे स्वार्थ की राजनीति के रूप में नहीं देखता हूं"
-पी चिदंबरम, केंद्रीय वित्त मंत्री
समाचार चैनल एनडीटीवी से बात करते हुए केन्द्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने कहा, "मैं शीर्ष अदालत के फ़ैसले से दुखी नहीं हूं. राजीव गांधी का नुक़सान हमारे लिए अपूरणीय है लेकिन अदालत के फ़ैसले के बाद हमें इस सच्चाई के साथ जीना होगा. मैं इसे स्वार्थ की राजनीति के रूप में नहीं देखता हूं." तमिलनाडु के सांसद होने के नाते वह स्थानीय भावनाओं के ख़िलाफ़ जाने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं.
पिछले साल नवंबर में भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को श्रीलंका के मानवाधिकार रिकॉर्ड के मद्देनज़र तमिल नेताओं के दबाव के आगे झुकना पड़ा था और उन्होंने कोलंबो में राष्ट्रमंडल शिखर बैठक का बहिष्कार किया था.
उससे पहले मार्च में जयललिता सरकार ने श्रीलंका मानवाधिकार रिकॉर्ड के विरोध में राजधानी चेन्नई में श्रीलंकाई खिलाड़ियों वाले इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) खेलों की मेजबानी नहीं करने का फ़ैसला किया था. (एक समाचार पत्र ने इसे "उग्र राष्ट्रीयता की इंतहां" का एक उदाहरण बताया था.)
और सितंबर 2012 में, जयललिता की सरकार ने एक दोस्ताना मैच खेलने आई श्रीलंका की एक स्कूली फुटबॉल टीम को चेन्नई से वापस भेज दिया था. उन्होंने कहा था कि इस टीम को भारत में खेलने की अनुमति देकर केन्द्र सरकार ने "तमिलनाडु के लोगों को अपमानित किया है".
इतना ही नहीं, तमिलनाडु में प्रशिक्षण ले रहे श्रीलंकाई सेना के दो जवानों को साल 2012 में देश छोड़ने के आदेश दिए गए थे.
आक्रोशसोशल मीडिया पर दोषियों की रिहाई संबंधी जयललिता के फैसले पर लोगों में आक्रोश है.
तमिलनाडु का मुख्य विपक्षी दल और केन्द्र में सत्तारूढ़ यूपीए सरकार का घटक द्रमुक भारत सरकार के श्रीलंकाई तमिलों के ख़िलाफ़ कथित अत्याचार के मामले में विफल रहने के मुद्दे पर पिछले साल गठबंधन से हट गया था.
इतना काफ़ी है यह बताने के लिए कि दोषियों को रिहा करने के जयललिता के फ़ैसले पर लोगों में ज़्यादा आक्रोश क्यों नहीं है.
सोशल मीडिया पर कुछ यूज़रों ने इस पर हैरानी व्यक्त करते हुए कहा है कि चुनाव जीतने के लिए नेता किस हद तक जा सकते हैं. वे कहते हैं कि नेताओं ने यह भी भुला दिया कि मई 1991 की उस रात राजीव गांधी के साथ एक दर्ज़न से ज़्यादा लोग भी मारे गए थे.
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वे अफ़ज़ल गुरू की पत्नी की भी बात कर रहे हैं. अफ़ज़ल की पत्नी ने सवाल उठाया है कि उनके पति के मामले में भी राजीव गांधी के हत्यारों की तरह विचार क्यों नहीं किया गया? अफ़ज़ल को संसद पर साल 2001 के हुए हमले का दोषी क़रार देते हुए 2013 में फांसी की सज़ा दी गई थी.
Source: Hindi News
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