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Thursday, February 20, 2014

Rajiv Gandhi Assasination Convicts Jayalalithaa Played A Masterstroke

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इन दोषियों की मौत की सज़ा को उम्रक़ैद में बदलने का फ़ैसला सुनाया था. कोर्ट ने इन लोगों की दया याचिकाओं के निपटारे में हुई देरी का हवाला देते हुए अपना फ़ैसला दिया था.

इसके बाद तो तमिलनाडु की मुख्यमंत्री और राज्य में सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक की मुखिया जे जयललिता ने इस  मामले को आगे बढ़ाने में कोई देर नहीं की.

आम चुनाव में अब कुछ ही महीने बचे हैं और जयललिता उम्मीद कर रही होंगी कि इस क़दम से वह तमिल मतदाताओं का दिल जीतने में सफल रहेंगी जो श्रीलंका के तमिलों से सहानुभूति रखते हैं और कोलंबो के मानवाधिकार रिकॉर्ड के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करते रहे हैं.

मई 1991 में हुई राजीव गांधी की हत्या को 1987 में श्रीलंका में भारतीय शांति सैनिकों को भेजने के उनके फ़ैसले के प्रतिशोध के रूप में देखा गया था.

यहां तक कि  कांग्रेस पार्टी के नेता भी सुप्रीम कोर्ट के इस अहम फ़ैसले के बाद मौक़े की नज़ाकत को देखते हुए इस मामले में अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं.

स्वार्थी राजनीति"मैं शीर्ष अदालत के फ़ैसले से दुखी नहीं हूं. राजीव गांधी का नुक़सान हमारे लिए अपूरणीय है लेकिन अदालत के फ़ैसले के बाद हमें इस सच्चाई के साथ जीना होगा. मैं इसे स्वार्थ की राजनीति के रूप में नहीं देखता हूं"
-पी चिदंबरम, केंद्रीय वित्त मंत्री

समाचार चैनल एनडीटीवी से बात करते हुए केन्द्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने कहा, "मैं शीर्ष अदालत के फ़ैसले से दुखी नहीं हूं. राजीव गांधी का नुक़सान हमारे लिए अपूरणीय है लेकिन अदालत के फ़ैसले के बाद हमें इस सच्चाई के साथ जीना होगा. मैं इसे स्वार्थ की राजनीति के रूप में नहीं देखता हूं." तमिलनाडु के सांसद होने के नाते वह स्थानीय भावनाओं के ख़िलाफ़ जाने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं.

पिछले साल नवंबर में भारतीय प्रधानमंत्री  मनमोहन सिंह को श्रीलंका के मानवाधिकार रिकॉर्ड के मद्देनज़र तमिल नेताओं के दबाव के आगे झुकना पड़ा था और उन्होंने कोलंबो में राष्ट्रमंडल शिखर बैठक का बहिष्कार किया था.

उससे पहले मार्च में जयललिता सरकार ने श्रीलंका मानवाधिकार रिकॉर्ड के विरोध में राजधानी चेन्नई में श्रीलंकाई खिलाड़ियों वाले इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) खेलों की मेजबानी नहीं करने का फ़ैसला किया था. (एक समाचार पत्र ने इसे "उग्र राष्ट्रीयता की इंतहां" का एक उदाहरण बताया था.)

और सितंबर 2012 में, जयललिता की सरकार ने एक दोस्ताना मैच खेलने आई श्रीलंका की एक स्कूली फुटबॉल टीम को चेन्नई से वापस भेज दिया था. उन्होंने कहा था कि इस टीम को भारत में खेलने की अनुमति देकर केन्द्र सरकार ने "तमिलनाडु के लोगों को अपमानित किया है".

इतना ही नहीं, तमिलनाडु में प्रशिक्षण ले रहे श्रीलंकाई सेना के दो जवानों को साल 2012 में देश छोड़ने के आदेश दिए गए थे.

आक्रोशसोशल मीडिया पर दोषियों की रिहाई संबंधी जयललिता के फैसले पर लोगों में आक्रोश है.

तमिलनाडु का मुख्य विपक्षी दल और केन्द्र में सत्तारूढ़ यूपीए सरकार का घटक द्रमुक भारत सरकार के श्रीलंकाई तमिलों के ख़िलाफ़ कथित अत्याचार के मामले में विफल रहने के मुद्दे पर पिछले साल गठबंधन से हट गया था.

इतना काफ़ी है यह बताने के लिए कि दोषियों को रिहा करने के जयललिता के फ़ैसले पर लोगों में ज़्यादा आक्रोश क्यों नहीं है.

सोशल मीडिया पर कुछ यूज़रों ने इस पर हैरानी व्यक्त करते हुए कहा है कि चुनाव जीतने के लिए नेता किस हद तक जा सकते हैं. वे कहते हैं कि नेताओं ने यह भी भुला दिया कि मई 1991 की उस रात राजीव गांधी के साथ एक दर्ज़न से ज़्यादा लोग भी मारे गए थे.

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वे अफ़ज़ल गुरू की पत्नी की भी बात कर रहे हैं. अफ़ज़ल की पत्नी ने सवाल उठाया है कि उनके पति के मामले में भी राजीव गांधी के हत्यारों की तरह विचार क्यों नहीं किया गया?  अफ़ज़ल को संसद पर साल 2001 के हुए हमले का दोषी क़रार देते हुए 2013 में फांसी की सज़ा दी गई थी.

Source: Hindi News

SC Orders Stay On The Release Of Rajiv Gandhi Murder Convicts

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि तमिलनाडु सरकार ने इस मामले में जो प्रक्रिया अपनाई थी उसमें कई गड़बड़ियां हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी किया है और इस मामले में अगली सुनवाई छह मार्च को होगी.

तमिलनाडु सरकार के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने केवल उन तीन लोगों की रिहाई पर रोक लगाई है जिनकी फांसी की सज़ा को सुप्रीम कोर्ट ने उम्रक़ैद में तब्दील कर दिया था.

बाक़ी चार अभियुक्तों के बारे में राकेश द्विवेदी ने कहा कि राज्य सरकार उनके बारे में फ़ैसला लेने के लिए स्वतंत्र है.

केंद्र सरकार के वकील अशोक भान ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि तमिलनाडु सरकार सभी सात लोगों को रिहा नहीं करेगी जब तक इस बारे में सुप्रीम कोर्ट कोई अंतिम फ़ैसला नहीं करता है.

इस तरह की सिफ़ारिश करने वाले तमिलनाडु सरकार के फ़ैसले को चुनौती देते हुए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था.

गुरूवार सुबह केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से तमिलनाडु सरकार के फ़ैसले पर रोक लगाने के संबंध में अर्ज़ी दाख़िल की. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की अर्ज़ी स्वीकार करते हुए उस पर फ़ौरन सुनवाई करने का फ़ैसला किया था.

ट्वीट

प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने भी तमिलनाडु सरकार के फ़ैसले की निंदा की है. पार्टी प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर और पार्टी के एक पूर्व अध्यक्ष वेंकैया नायडू ने कहा है कि राजीव गांधी की हत्या में शामिल लोगों के साथ किसी तरह की सहानुभूति नहीं दिखाई जानी चाहिए.

प्रधानमंत्री ने कहा है कि राजीव गांधी की हत्या मामले में उठे कुछ बुनियादी क़ानूनी पहलुओं पर विचार करने के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर किया है.

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने  तमिलनाडु सरकार के फ़ैसले की भी आलोचना की है.

प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया है कि राजीव गांधी के क़ातिलों की रिहाई के लिए तमिलनाडु सरकार की कार्रवाई क़ानूनी तौर पर वैध नहीं है और इस पर अमल नहीं किया जाना चाहिए.

मनमोहन ने ये भी कहा कि राजीव गांधी की हत्या भारत की आत्मा पर हमला था.

प्रधानमंत्री ने कहा, ''भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और हमारे महान नेता और दूसरे बेगुनाह भारतीय के क़ातिलों की रिहाई, न्याय के सभी सिद्धांतों के प्रतिकूल होंगे.''

केंद्रीय क़ानून मंत्री  कपिल सिब्बल ने भी तमिलनाडु सरकार के फ़ैसले की कड़ी आलोचना की है. गुरूवार सुबह संसद के बाहर पत्रकारों से बातचीत करते हुए सिब्बल ने प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी का नाम लिए बग़ैर उस पर भी निशाना साधा.

सिब्बल ने कहा कि दुख की बात है कि कुछ ऐसे राजनीतिक दल हैं जिनकी इस मामले में चुप्पी रही है.

सिब्बल ने गुजरात में हुए फ़र्ज़ी मुठभेड़ की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, ''कहीं तो आतंकवाद के नाम पर फ़र्ज़ी मुठभेड़ होते हैं और दूसरी जगह आतंकवादी को रिहा किया जाता है. मैं समझता हूं कि सोच में कुछ खोट ज़रूर है.''

मामला

ग़ौरतलब है कि मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फ़ैसले में राजीव गांधी की हत्या के मामले में तीन लोगों को दी गई फांसी की सज़ा को उम्रक़ैद में तब्दील कर दिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने सज़ायाफ़्ता लोगों की दया याचिका की सुनवाई में हुई देरी को वजह बताकर सज़ा में राहत देने का  फ़ैसला किया था.

सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ठीक एक दिन बाद बुधवार को जयललिता मंत्रिमंडल ने एक आपात बैठक में फ़ैसला किया कि राजीव गांधी की हत्या के जुर्म में जेल में बंद सात क़ैदियों की रिहाई के लिए राज्य सरकार, केंद्र सरकार से सिफ़ारिश करेगी.

तमिलनाडु सरकार ने केंद्र सरकार को केवल तीन दिन का समय दिया है, जिसमें केंद्र सरकार यह फ़ैसला कर ले कि इस मामले में उसे क्या करना है.

तभी से ही राजीव गांधी की हत्या के अभियुक्तों की रिहाई की सिफ़ारिश के तमिलनाडु सरकार के फ़ैसले पर कई  सवाल भी उठने लगे हैं.

Source: Hindi News

Wednesday, February 19, 2014

Tamil Nadu Gov To Release Convicts In Rajiv Gandhi Assassination

इन छह लोगों में संथन, मुरुगन तथा पेरारिवलन भी शामिल हैं जिनकी फांसी की सज़ा को सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उम्रक़ैद में बदलने का फ़ैसला किया था.

इन तीनों के अलावा रिहाई के आदेश पाने वालों में नलिनी श्रीहरन, रॉबर्ट पायस, जयकुमार, रविचंद्रन शामिल हैं.

नलिनी श्रीहरन, मुरुगन की पत्नी हैं.

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने अपने मंत्रिमंडल के साथ बुधवार की सुबह एक आपात बैठक की, जिसमें सातों अभियुक्तों को रिहाई की सिफ़ारिश करने का फ़ैसला किया गया.

नलिनी के मृत्युदंड को पहले ही कांग्रेस प्रमुख तथा भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी के हस्तक्षेप के बाद उम्रक़ैद में तब्दील किया जा चुका था.

सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड को उम्रक़ैद में तब्दील करते समय दोषियों की दया याचिका पर निर्णय लेने में केंद्र सरकार की ओर से हुई 11 साल की देरी का ज़िक्र किया था.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की इस दलील को ख़ारिज कर दिया कि दोषी संथन, मुरुगन और पेरारिवलन की दया याचिकाओं पर फ़ैसले में देरी से उन्हें कोई वेदना नहीं सहनी पड़ी.

Source: Hindi News

Monday, February 10, 2014

Reward Against Sonia Gandhi In USA

कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के ख़िलाफ़ अमरीका के न्यूयॉर्क शहर की केंद्रीय अदालत में सिख विरोधी दंगों के सिलसिले में जो मुक़दमा चल रहा है अब उसमें एक दिलचस्प मोड़ आ गया है.
अब मुक़दमा दायर करने वाली संस्था 'सिख्स फ़ॉर जस्टिस' ने सोनिया गांधी के ख़िलाफ़ सबूत देने वालों को 20 हज़ार डॉलर का इनाम देने की घोषणा की है.

इसके लिए शहर के एक दैनिक समाचार पत्र में विज्ञापन भी प्रकाशित किया गया है.

अदालत में सोनिया गांधी के ख़िलाफ़ यह मुक़दमा ख़ारिज होने की कगार पर है क्योंकि अदालत में मुक़दमा दायर करने वाले यह साबित नहीं कर पा रहे हैं कि उन्होंने सोनिया गांधी को अदालती समन पहुंचा दिए थे.

'सिख्स फ़ॉर जस्टिस' संस्था के वकील गुरपतवंत पानुन कहते हैं, “सोनिया गांधी के ख़िलाफ़ मुक़दमे में चूंकि उनके इस दावे का बहुत महत्व है कि जब उनको अदालती समन दिए गए थे तब वह सितंबर महीने में अमरीका में थीं ही नहीं. इसलिए हमने इनाम की घोषणा की है जिससे इस रहस्य पर से पर्दा हटाया जा सके कि सोनिया गांधी 2013 के सितंबर महीने में अमरीका में थीं या नहीं.”

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लेकिन पानुन यह मानते हैं कि उन्होंने अमरीका में सोनिया गांधी को नहीं देखा था.

पानुन कहते हैं, “हम तो भारत के समाचार पत्रों में सोनिया गांधी के न्यूयॉर्क आने जाने के बार में छपी ख़बरों के आधार पर उस अस्पताल में उनके ख़िलाफ़ अदालती समन पहुंचा कर आए थे, हमने उन्हें देखा तो नहीं था.”

संस्था की ओर से न्यूयॉर्क शहर के एक समाचार पत्र 'एएम न्यूयॉर्क' में एक विज्ञापन छापा गया है जिसमें सोनिया गांधी की तस्वीर के साथ लिखा है: “अगर आपने सोनिया गांधी को सितंबर 2, 2013 और सितंबर 9, 2013 के बीच अमरीका में देखा है और आप अमरीकी अदालत में जज के सामने गवाही दे दें तो आपको 'सिख्स फ़ॉर जस्टिस' की ओर से 20,000 डॉलर (क़रीब 12 लाख रुपये) इनाम दिया जाएगा.”

इसके अलावा विज्ञापन में फ़ोन नम्बर भी दिए गए हैं जिस पर लोग सूचना दे सकते हैं.

अख़बार के पिछले पन्ने पर क्रॉसवर्ड पज़ल के बराबर में पेज के एक चौथाई हिस्से में छपे इस विज्ञापन में भारत में 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के बारे में भी जानकारी दी गई है.

यह समाचार पत्र रोज़ाना हर रेल स्टेशन और बस स्टेशन आदि पर मुफ़्त में बांटा जाता है.

सुबह काम पर आने जाने वाले बहुत से लोग इस समाचार पत्र को लेकर पढ़ते भी हैं.

जवाबजज को लिखा गया सोनिया गांधी का पत्र.
एक अनुमान के अनुसार, न्यूयॉर्क शहर में इस समाचार पत्र के पाठकों की संख्या 13 लाख से अधिक है.

सिख संस्था के वकील का यह भी कहना है कि सोनिया गांधी पिछले साल सितंबर महीने में अमरीका में मौजूद होने के बारे में कई अलग बयान दे चुकी हैं.

लेकिन सोनिया गांधी ने पिछले साल 28 दिसंबर को कांग्रेस पार्टी के लेटरहेड पर लिखे एक पत्र में मामले को देख रहे जज को अपने वकील के ज़रिए बताया था कि ''मैं साल 2013 में सितंबर महीने में दो और नौ तारीख़ के बीच में न्यूयॉर्क में मौजूद नहीं थी. और मुझे किसी प्रकार का समन नहीं दिया गया.”

सेनिया गांधी के इस पत्र के साथ कई अन्य तथ्यों का हवाला देते हुए उनके वकील रवि बत्रा ने गत दो जनवरी को अदालत से मुक़दमा ख़त्म करने की अपील भी की थी.

इस सिलसिले में अदालत ने 'सिख्स फ़ॉर जस्टिस' और मुक़दमा दायर करने वाले दो अन्य लोगों को जवाब दाख़िल करने को कहा है.

उसी के बाद से 'सिख्स फ़ॉर जस्टिस' संस्था ने इस प्रकार विज्ञापन के ज़रिए सबूत इकठ्ठे करने की क़वायद शुरू की.

लेकिन इसमें इस संस्था को कामयाबी मिलेगी, इसके आसार कम ही लगते हैं.

भारत में दंगा न्यूयॉर्क में समन"सोनिया गांधी को उनके कथित इलाज के दौरान सितंबर 9 को न्यूयॉर्क के स्लोन केटरिंग अस्पताल के कर्मचारियों और सुरक्षाकर्मियों के ज़रिए अदालती समन भिजवा दिया था. "
-सिख्स फ़ॉर जस्टिस, न्यूयॉर्क

सिख संस्था के वकील का कहना है कि सिर्फ़ एक पत्र लिख देने भर से यह साबित नहीं होता कि वह सितंबर महीने में अमरीका में ही नहीं थी. बल्कि सोनिया गांधी को अदालत में एक हलफ़िया बयान दर्ज कराना चाहिए.

वह समन इस सिख संस्था और 1984 के दंगों के दो पीड़ितों मोहिंदर सिंह और जसबीर सिंह द्वारा अदालत में सोनिया गांधी के ख़िलाफ़ मुक़दमा दायर किए जाने के बाद जारी किए गए थे.

मुक़दमे में आरोप लगाया गया है कि सोनिया गांधी अपनी कांग्रेस पार्टी के उन कार्यकर्ताओं और नेताओं को बचा रही हैं जो 1984 के दंगों में कथित तौर पर शामिल थे.

अमरीकी क़ानून के तहत सोनिया गांधी को यह अदालती समन व्यक्तिगत रूप से पहुंचाने की ज़िम्मेदारी मुक़दमा दायर करने वालों की होती है.

मुक़दमे में सोनिया गांधी से 1984 के दंगों के पीड़ितों के लिए हर्जाने की भी मांग की गई है.

1984 में दिल्ली में हुए सिख विरोधी दंगों में लगभग तीन हज़ार सिख मारे गए थे.

Source: Hindi News

Wednesday, January 29, 2014

Prime Minister Manmohan Faces Faces Protest At Waqf Event

पीएम ना लागू करें कोई भी योजनाविज्ञान भवन में चल रहे वक्फ बोर्ड के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पहुंचे जहां उनका एक शख्स ने विरोध करना शुरु कर दिया. जब पीएम सभी को संबोधित कर रहे थे. तभी एक शख्स ने हंगामा शुरू कर दिया. शख्स उनके भाषण का विरोध करने लगा. हंगामा करने वाले शख्स का नाम डॉ. फहीम बेग है. हंगामा करते हुए बेग ने कहा कि प्रधानमंत्री कोई भी नई योजना लागू नहीं करें. उनकी कोई भी योजना लोगों तक नहीं पहुंच रही है. वहीं हंगामा करने वाले व्यक्ति को पुलिस तुरंत ही कक्ष से बाहर लेकर चली गई.

सोनिया की चिंता

इससे पहले इसी कार्यक्रम में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने भी कई घोषणाएं करने के लिए कहा. सोनिया ने अल्पसंख्यकों को मिलने वाली सुविधाओं से वंचित रहने पर चिंता जताते और घोषणाएं करने के लिए कहा. सोनिया ने अल्पसंख्यकों के विकास की राशि को बढ़ाकर 10 गुना करने की बात कही है. एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि सही लोगों तक फायदा नहीं पहुंच रहा है. हमारी मशीनरी को इस बात पर ध्यान देना होगा कि किसी भी छोटे से मुद्दे पर कहीं भी सांप्रदायिक समानता नहीं बिगड़ना चाहिए. इसके लिए जागरुक रहने की जरूरत है. स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को सही समय पर स्टाइपेंड्स मिलनी चाहिए। धर्म निरपेक्ष मुद्दों की रक्षा करना जरूरी है. देश के विकास के लिए हर वर्ग का विकास आवश्यक है.

Source: Hindi News