रांची यूनिवर्सिटी ने बैंक का कर्ज उतारने के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट के 1.33 करोड़ रुपए खपा दिए, फिर भी तीन करोड़ रुपए की देनदारी बची हुई है। इतना ही नहीं, इलाहाबाद बैंक ने यूनिवर्सिटी के पचास से ज्यादा फिक्स्ड डिपॉजिट के खाते को भी सीज कर लिया है। अब यूनिवर्सिटी कि वित्तीय स्थिति यह है उसके फिक्स्ड डिपॉजिट में रकम बची ही नहीं है। इधर, लोन मामले में इलाहाबाद बैंक से संबंध बिगड़ने के बाद यूनिवर्सिटी के सभी बैंकिंग कामकाज ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स सं संचालित हो रहे हैं.
सैलरी के लिए ली थी लोन
यह मामला 1990- 92 का है। रांची यूनिवर्सिटी के कर्मचारियों को लंबे समय से वेतन नहीं मिल पा रहा था। वेतन की मांग को लेकर तमाम कर्मचारी अनशन पर बैठ गए थे। ऐसे में तत्कालीन वाइस चांसलर डॉ अमर कुमार सिंह ने इलाहाबाद बैंक से 1.25 करोड़ रुपए लोन के तौर पर लिए थे, ताकि कर्मचारियों के वेतन का भुगतान हो सके। यूनिवर्सिटी प्रशासन ने 15 दिनों के अंदर बैंक को लोन में लिए रुपए वापस करने का आश्वासन दिया था, पर किन्हीं वजहों से यह टलता गया.ं बैंक ने भी लोन को फिक्स्ड डिपॉजिट से एडजस्ट नहीं किया। इस तरह 1.25 करोड़ के लोन पर 18 परसेंट वार्षिक ब्याज हर साल लगता गया, जिससे लोन की राशि तेजी से बढ़ती चली गई.
एफडी का होता रहा रिन्युअल
एक तरफ लोन की राशि बढ़ती रही, दूसरी तरह बैंक में यूनिवर्सिटी की फिक्स्ड डिपॉजिट का भी रिन्युअल होता रहा। बैंक ने ऑडिट का हवाला देकर दो बार एफडी खाते का रिन्युअल किया। इस बीच प्रो एए खां जब वाइस चांसलर बने तो यूनिवर्सिटी और बैंक के बीच लोन की राशि को लेकर सहमति बनी। इसके तहत बैंक ने 10 हजार रुपए में लोन मामले को खत्म करने का प्रस्ताव यूनिवर्सिटी को दिया। लेकिन, यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन ने फिर लापरवाही बरती। बैंक को दस हजार रुपए नहीं दिए गए, जिस कारण मामला सुलझ नहीं सका। Read more http://inextlive.jagran.com/ranchi/
सैलरी के लिए ली थी लोन
यह मामला 1990- 92 का है। रांची यूनिवर्सिटी के कर्मचारियों को लंबे समय से वेतन नहीं मिल पा रहा था। वेतन की मांग को लेकर तमाम कर्मचारी अनशन पर बैठ गए थे। ऐसे में तत्कालीन वाइस चांसलर डॉ अमर कुमार सिंह ने इलाहाबाद बैंक से 1.25 करोड़ रुपए लोन के तौर पर लिए थे, ताकि कर्मचारियों के वेतन का भुगतान हो सके। यूनिवर्सिटी प्रशासन ने 15 दिनों के अंदर बैंक को लोन में लिए रुपए वापस करने का आश्वासन दिया था, पर किन्हीं वजहों से यह टलता गया.ं बैंक ने भी लोन को फिक्स्ड डिपॉजिट से एडजस्ट नहीं किया। इस तरह 1.25 करोड़ के लोन पर 18 परसेंट वार्षिक ब्याज हर साल लगता गया, जिससे लोन की राशि तेजी से बढ़ती चली गई.
एफडी का होता रहा रिन्युअल
एक तरफ लोन की राशि बढ़ती रही, दूसरी तरह बैंक में यूनिवर्सिटी की फिक्स्ड डिपॉजिट का भी रिन्युअल होता रहा। बैंक ने ऑडिट का हवाला देकर दो बार एफडी खाते का रिन्युअल किया। इस बीच प्रो एए खां जब वाइस चांसलर बने तो यूनिवर्सिटी और बैंक के बीच लोन की राशि को लेकर सहमति बनी। इसके तहत बैंक ने 10 हजार रुपए में लोन मामले को खत्म करने का प्रस्ताव यूनिवर्सिटी को दिया। लेकिन, यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन ने फिर लापरवाही बरती। बैंक को दस हजार रुपए नहीं दिए गए, जिस कारण मामला सुलझ नहीं सका। Read more http://inextlive.jagran.com/ranchi/
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