पश्चिम बंगाल की
मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी को आम बोलचाल में
‘दीदी’ कहा जाता है जबकि तमिल में ‘अन्ना’ बड़े भाई को.
कम से कम तृणमूल कांग्रेस के नेता तो इस जुगलबंदी की यही व्याख्या कर रहे हैं.
यह ज़रूर है कि जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुख़ारी के रैली में शामिल होने से इंकार ने ममता के इस मक़सद को कुछ झटका लगा है.
बुख़ारी और अन्ना के साथ मंच साझा कर ममता ने एक तीर से कई शिकार करना चाहती थीं. लेकिन इमाम ने इस पर पानी फेर दिया.
मुसलमानों पर नज़र
बंगाल की आबादी में 27 प्रतिशत मुसलमान हैं. लोकसभा की कम से कम दस सीटों पर वे निर्णायक स्थिति में हैं. इनके भारी समर्थन ने ही ममता को पिछले विधानसभा चुनावों में गद्दी दिलाई थी.
इस बार केंद्र सरकार के गठन में निर्णायक भूमिका निभाने का सपना देख रहीं दीदी पूरे देश में अपने सांसदों की तादाद बढ़ाना चाहती हैं. इसलिए पहले उन्होंने अन्ना को अपने पाले में किया और फिर शाही इमाम को मनाया.
लेकिन अब राज्य के मुसलमान ही ममता की मंशा पर सवाल खड़ा करने लगे हैं.
हुगली ज़िले के फुरफुराशरीफ़ में इस सप्ताह एक धार्मिक आयोजन के दौरान राज्य के अलावा देश के दूसरे राज्यों से कोई 40 लाख अल्पसंख्यक जुटे थे.
फुरफुराशरीफ़ के पीर तोहा सिद्दिक़ी ने उनके सामने ही तृणमूल सरकार पर अपने वायदों से मुकरने का आरोप लगाया.
अल्पसंख्यकों को लुभाने की क़वायद के तहत लगभग सभी प्रमुख दलों के नेता बारी-बारी वहां गए थे. लेकिन वहां तोहा ने तृणमूल सांसदों और मंत्रियों के सामने ही सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा कर दिया.
ममता की देशव्यापी मुहिम
साथ ही उन्होंने यह सवाल भी दाग़ दिया कि कहीं सत्ता के लिए तृणमूल कांग्रेस बाद में भाजपा के साथ हाथ तो नहीं मिला लेगी?
तोहा का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों के नाम पर जिन सात मुसलमान नेताओं को टिकट दिए हैं उनमें से चार-पांच के जीतने की भी संभावना नहीं है. ऐसे में यह तुष्टिकरण के अलावा कुछ नहीं है.
चुनावों के बाद एक निर्णायक ताक़त के तौर पर उभरने की अपनी मुहिम के तहत ही ममता ने देश के विभिन्न हिस्सों में तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है या उतारने की तैयारी में हैं.
उनकी यह देशव्यापी मुहिम दिल्ली की रैली से ही शुरू होगी. हालांकि शाही इमाम के इसमें शामिल होने से इंकार करने की वजह से तृणमूल को कुछ झटका लगा है. लेकिन पार्टी के नेता लगातार इमाम के संपर्क में हैं. एक नेता कहते हैं, "अभी उनके आने की संभावना बनी हुई है."
दिल्ली की सीटों पर उम्मीदवारों के चयन के मामले में भी अभी असमंजस क़ायम है.
अन्ना से कितना फ़ायदा?
तृणमूल कांग्रेस के एक नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, अन्ना की हरी झंडी मिलने के बाद नामों का एलान किया जाएगा. पहले रैली के दौरान ही इसका एलान होना था. लेकिन अब यह मामला कुछ दिनों के लिए टल सकता है.
दिल्ली की रैली के बाद ममता सीधे उत्तर प्रदेश चली जाएंगी. प्रधानमंत्री पद पर नरेंद्र मोदी की दावेदारी का विरोध कर चुकी ममता उनके घर अहमदाबाद में भी अन्ना के साथ एक चुनावी रैली को संबोधित करेंगी.
तृणमूल के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, "हम रामलीला मैदान में एक लाख से ज़्यादा लोगों को जुटाने का प्रयास कर रहे हैं. अन्ना का साथ हमारे लिए बेहद अहम है."
इस बीच, अन्ना ने साफ़ कर दिया है कि उन्होंने एक मुख्यमंत्री के तौर पर ममता बनर्जी के आदर्शों का समर्थन किया है, उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस का नहीं. उन्होंने किसी ख़ास उम्मीदवार के पक्ष में चुनाव प्रचार करने के लिए भी मना कर दिया है.
अपील का असर
हां, वह बंगाल में पार्टी की ओर से आयोजित कम से कम दो चुनावी रैलियों में शिरकत ज़रूर करेंगे. तृणमूल कांग्रेस के नेताओं की दलील है कि अन्ना उन रैलियों के ज़रिए ही पार्टी को जिताने की अपील करेंगे. उनकी अपील का ख़ासा असर होगा.
दूसरी ओर, विपक्षी राजनीतिक दलों का दावा है कि अन्ना के समर्थन से ममता के मंसूबे पूरे नहीं होंगे. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मानस भुंइया कहते हैं, "अन्ना के समर्थन से तृणमूल के पक्ष में कोई लहर नहीं पैदा होने वाली."
उल्टे ममता की अन्ना से नज़दीकी ने जामा मस्जिद के शाही इमाम को नाराज़ कर दिया है.
सीपीएम के पूर्व मंत्री अशोक भट्टाचार्य कहते हैं, "संघ से अन्ना की नज़दीकी के आरोपों की वजह से ही अल्पसंख्यक इस बार तृणमूल कांग्रेस को सवालिया निगाहों से देख रहें हैं. ऐसे में दीदी-अन्ना की जुगलबंदी कोई ख़ास कमाल नहीं दिखा पाएगी. यह महज़ एक चुनावी स्टंट है."
विपक्ष चाहे कुछ भी कहे और अन्ना भले सिर्फ़ ममता का समर्थन करने की बात कहें, इस जुगलबंदी से तृणमूल कांग्रेस के नेताओं और समर्थकों के हौसले तो बुलंद हैं ही.
Source: Online Hindi Newspaper
No comments:
Post a Comment