छत्तीसगढ़ के लगभग सभी अख़बारों में माओवादी हमले की ख़बर छाई हुई है.
राजधानी रायपुर के लगभग सभी अख़बारों ने अपने शीर्षक में पिछले साल कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हुए हमले से ताज़ा घटनाक्रम को जोड़ा है, क्योंकि दोनों हमले एक ही इलाक़े झीरम घाटी में हुए हैं.
दैनिक नवभारत के बैनर का शीर्षक है- झीरमघाटी फिर हुई लाल. वहीं दैनिक भास्कर ने भी अपने बैनर में पुरानी घटना का उल्लेख करते हुए मारे गए एक जवान की तस्वीर लगाई है.
अख़बार ने शीर्षक लगाया है-'मौत की घाटी झीरम, 16 शहीद.'
कुछ अख़बारों के स्वर में तल्ख़ी भी है. राजस्थान पत्रिका समूह के अख़बार पत्रिका ने शीर्षक लगाया है- 'झीरम-2 माओवादी हमले में 16 शहीद. पुलिस का दावा, हमें सूचना थी, बड़ा सवाल कुछ किया क्यों नहीं ?'
सवाल दर सवाल
अख़बार ने लिखा है, "वारदात के बाद पुलिस ने दावा किया कि माओवादी घटना के संबंध में पिछले एक सप्ताह में चार बार अलर्ट जारी किया गया था, लेकिन सवाल यह है कि यदि पुलिस को सूचना थी तो माओवादियों को मार गिराने या हमले को रोकने के लिये महकमे ने क्या किया?"
दैनिक भास्कर ने अपने अंदर के पन्ने पर 'पीएचक्यू के सारे तोपची भिड़े ख़ुद को बचाने में' शीर्षक से गंभीर सवाल खड़े करते हुए लिखा है कि इस घटना के बाद पुलिस मुख्यालय में उथल-पुथल मच गई.
अख़बार लिखता है-"लेकिन उथल-पुथल सिर्फ़ ये साबित करने के लिए थी कि मुख्यालय ने अपना काम किया था और सुकमा-जगदलपुर के एसपी को चिट्ठियां भेज दी थीं कि झीरम घाटी और आसपास हमले को लेकर अलर्ट रहें."
चुनावी माहौल में दैनिक हरिभूमि ने अपने पहले पन्ने पर राजनेताओं के बयान प्रमुखता से प्रकाशित किए हैं.
नई दुनिया ने भी पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और नेता प्रतिपक्ष भूपेश बघेल के बयानों को जगह दी है. अग्रेज़ी अख़बार द हितवाद ने पहले पन्ने पर दो ख़बरें लगाई हैं.
पहली ख़बर घटना की सूचना की है और दूसरी ख़बर मुख्यमंत्री के दिल्ली दौरे को रद्द कर आपात बैठक करने से संबंधित है.
राज्य के अधिकांश अख़बारों ने विशेष संपादकीय लिखे हैं और अपनी चिंता व्यक्त की है.
हालांकि टिप्पणियों के लिए प्रसिद्ध देशबन्धु में पहले पन्ने पर एक बड़ी ख़बर के अलावा न तो कोई विशेष टिप्पणी है और ना ही कोई संपादकीय या अग्रलेख.
'एजेंडा लहूलुहान बस्तर'
नई दुनिया ने पहले पन्ने पर 'एजेंडा लहूलुहान बस्तर' शीर्षक से अख़बार के संपादक रुचिर गर्ग की त्वरित टिप्पणी प्रकाशित की है.
नक्सल मामले पर सरकार की नीति पर पुनर्विचार की बात करते हुए रुचिर गर्ग ने इस टिप्पणी में लिखा है, "नक्सल हमलों को कायराना कहने के औपचारिक बयानों के बजाए नक्सल इलाक़ों की उस जनता के सामने एक ठोस नक्सल नीति रखी जाए, जिससे उसकी उम्मीदें इसी लोकतंत्र पर कायम रहें."
रुचिर गर्ग ने लिखा है कि अगर जनता की उम्मीदें टूटीं तो इन सरकारों को अपनी नीतियों का बोरिया-बिस्तर सहेजने के लिए रायपुर से लेकर दिल्ली तक सुरक्षित स्थान तलाशना होगा.
इसी तरह पत्रिका ने सुलगते सवाल से छह पुरानी घटनाओं का उल्लेख किया है और साथ ही 'ख़ून की होली आख़िर कब तक' शीर्षक से गोविन्द चतुर्वेदी की विशेष टिप्पणी प्रकाशित की है.
नवभारत अख़बार ने भी संपादक श्याम वेताल की तल्ख टिप्पणी 'ख़ुफ़िया तंत्र के कारण एक और कलंक' शीर्षक से प्रकाशित की है.
दैनिक भास्कर के संपादक आनंद पांडेय ने 'न ख़ौफ़ जा रहा, न भरोसा आ रहा' शीर्षक से पहले पन्ने पर प्रकाशित विश्लेषण में लिखा है, "सरकारें चाहे जो दावा करें, लेकिन असलियत यही है कि नक्सलियों की जानकारी जुटाने में हमारे ख़ुफ़िया विभाग पूरी तरह नाकाम रहे हैं.''
Source: Online Hindi Newspaper
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