Thursday, March 20, 2014

Rajat Kapoor Says Why We Need Aamir Khan

फ़िल्मकार रजत कपूर ने 'दिल चाहता है', 'भेजा फ़्राई', 'पप्पू कान्ट डांस साला' और 'फंस गए रे ओबामा' जैसी फ़िल्मों में हल्के फ़ुल्के कॉमिक रोल किए हैं लेकिन उनके अंदर कुछ बातों को लेकर गहरा असंतोष है.
भारत में छाए 'स्टार कल्चर' से वो ख़फ़ा रहते हैं. वो कहते हैं, "ये देश स्टार्स से ही चलता है. बड़े दुर्भाग्य की बात है कि फ़िल्में हों या राजनीतिक पार्टियां सबको स्टार की ही ज़रूरत पड़ती है. बिना उनके काम ही नहीं बनता."

शुक्रवार को रिलीज़ हो रही फ़िल्म 'आंखों देखी' के निर्देशक रजत अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहते हैं, "पिछले साल 'शिप ऑफ़ थीसियस' जैसी बेहतरीन फ़िल्म आई. लेकिन उसे भी प्रमोशन के लिए आमिर ख़ान की ज़रूरत पड़ी. मानता हूं कि इससे फ़िल्म को मदद मिली. लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए." उन्होंने कहा, "ये ग़लत चलन है. पूरी फ़िल्म तो आपने बिना स्टार के बना ली लेकिन प्रमोशन के लिए स्टार का इस्तेमाल मेरे हिसाब से अफ़सोसजनक है. इसकी ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिए."

ट्विटर पर मिला प्रोड्यूसर
उन्होंने 'आंखो देखी' के लिए फ़ंड जुटाने के पीछे का भी एक दिलचस्प किस्सा सुनाया. रजत ने बताया कि वह फ़िल्म की स्क्रिप्ट कई निर्माताओं के पास लेकर गए लेकिन कोई इसमें पैसे लगाने को तैयार नहीं हुआ. तब उन्होंने ट्विटर पर दुखी होकर लिख दिया कि वो फ़िल्में बनाना छोड़ रहे हैं और अब सिर्फ़ प्ले किया करेंगे. उन्होंने कहा, "इसके बाद मेरे एक प्रशंसक मनीष मुंद्रा ने मुझे कहा कि मैं फ़िल्म में पैसे लगाऊंगा. आप फ़िल्में छोड़ने की बात मत करिए."
Team of Aankhon Dekhi
रजत ने बताया कि उसके बाद वो मनीष से मिले और उन्होंने ना सिर्फ़ फ़िल्म बनाने के लिए बजट मुहैया कराया बल्कि उसके प्रमोशन के लिए भी अपनी जेब ढीली की. इस तरह से रजत को फ़िल्म का प्रोड्यूसर ट्विटर से मिला.

'आंखो देखी' में संजय मिश्रा ने बाबूजी का केंद्रीय किरदार निभाया है. रजत कपूर ने निर्देशन करने के अलावा फ़िल्म में संजय मिश्रा के छोटे भाई का किरदार भी निभाया है. रजत ने बताया कि उन्होंने फ़िल्म की स्क्रिप्ट संजय मिश्रा को ही ध्यान में रखकर लिखी थी. फ़िल्म 21 मार्च को रिलीज़ हो रही है.

'मसाला फ़िल्में नहीं देखता'
रजत कपूर ने इस इंटरव्यू के दौरान बड़ी बेबाकी से बताया कि वो मेनस्ट्रीम बॉलीवुड फ़िल्में नहीं देखते. उन्होंने कहा, "पिछले दस सालों में मुझे देव डी, गैंग्स ऑफ़ वासेपुर, शिप ऑफ़ थीसियस और मराठी फ़िल्म हरिश्चंद्र फ़ैक्ट्री के अलावा कोई फ़िल्म अच्छी नहीं लगी. मैं ज़्यादा फ़िल्में देखता ही नहीं."
Rajat Kapoor in Aankhon Dekhi
उन्होंने ये ज़रूर क़बूल किया कि हिंदी सिनेमा में बिना स्टार और आइटम सॉन्ग के फ़िल्म बनाना और रिलीज़ करना दोनों ही मुश्किल है और आगे भी हालात बदलने के कोई चांस नहीं हैं. तो क्या रजत आगे मेनस्ट्रीम कमर्शियल फ़िल्में बनाने लगेंगे.

इसके जवाब में रजत कपूर ने ये कहते हुए अपनी बात ख़त्म की कि "मुझे कमर्शियल फ़िल्में पसंद नहीं है. मैं यहां आसान काम करने नहीं बल्कि अपने पसंद का काम करने आया हूं. मुझसे किसी कमर्शियल फ़िल्म की उम्मीद करना वैसे ही है जैसे किसी शाकाहारी आदमी से मटन खाने की उम्मीद करना."

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