मोदी के बचपन के मित्र
नरेंद्र मोदी से अमित शाह की पहली मुलाकात अहमदाबाद में लगने वाली संघ की शाखाओं में हुई थी. बचपन से ही दोनों इनमें जाया करते थे. हालांकि जहां मोदी एक बेहद सामान्य परिवार से आते थे, वहीं शाह गुजरात के एक अमीर परिवार से ताल्लुक रखते थे. अमित शाह संघ से जुड़े रहने के साथ-साथ शेयर ट्रेडिंग तथा प्लास्टिक के पाइप बनाने के अपने पारिवारिक व्यापार से भी जुड़े रहे.
चुनाव प्रबंधन के मास्टर
अस्सी के दशक की शुरूआत में मोदी संघ्ा के लिये बेहद सक्रीयता से काम करने लगे. धीरे-धीरे वह संघ की सीढि़यां चढ़ते चले गये. तभी अमित शाह ने मोदी से बीजेपी में शामिल होने की इच्छा जाहिर की. इसके बाद मोदी, शाह को लेकर गुजरात बीजेपी के तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष शंकर सिंह वाघेला के पास गये और उन्होंने शाह को बीजेपी में शामिल कर लिया. यहीं से अमित शाह के राजनीतिक करियर का जन्म हुआ. नब्बे के दशक में शाह के राजनीतिक जीवन में बड़ा बदलाव आया. साल 1991 में बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने सांसद का चुनाव लड़ने के लिये गांधीनंगर का रुख किया. फिर शाह ने मोदी के सामने आडवाणी के चुनाव प्रबंधन की कमान संभालने की इच्छा जाहिर की. शाह का आत्मविश्वास देखकर मोदी ने उन्हें यह जिम्मेदारी सौंप दी. आडवाणी उस चुनाव में भारी मतों से जीत गये. इस जीत में अमित शाह की काबिलियत की बहुत प्रशंसा हुई. इसके बाद गुजरात की राजनीति में शाह का कद बढ़ता ही चला गया. ऐसे ही एक मौका अटल बिहार के चुनाव के समय आया था. साल 1996 में भी शाह ने अपनी काबिलियत को दोहराया और अटल जी को भारी मतों से जितवाया.
गुजरात क्रिकेट का रुख
राजनीति में बढ़ते कद के साथ ही शाह की नजर गुजरात की सहकारी संस्थाओं पर थी. पूरे राज्य में, बैंको से लेकर दूध तक से जुड़ी कोऑपरेटिव संस्थाओं पर कांग्रेस पार्टी का कब्जा था. शाह ने अपनी काबिलियत और प्रबंधन से कांग्रेस को दशकों पुराने उसके कब्जे से उखाड़ फेंका. सहकारी संस्थाओं के बाद शाह का अगला निशाना गुजरात क्रिकेट संघ था. यहां पर भी शाह ने अपनी तिकड़म से कांगेस को पटखनी दे दी. उन्होंने गुजरात क्रिकेट संघ की कुर्सी से कांग्रेस नेता को हटाकर मोदी को बिठाया. इसके बदले में मोदी ने शाह को संघ के उपाध्यक्ष पद की कुर्सी दे दी.
2001 में दिखाया दम
इस बीच 2001 में गुजरात को भयानक भूकंप का सामना करना पड़ा. भुकंप पीडि़तों को राहत पहुंचाने के मामले में प्रदेश सरकार की काफी आलोचना हुई. केशुभाई पटेल के खिलाफ दिल्ली में खूब लॉबींइंग हुई. कुछ खबरों के मुताबिक बीजेपी ही केशुभाई के खिलाफ षणयंत्र बना रही थी. इसके सूत्रधार मोदी थे, लेकिन इस काम को अंजाम देने की पूरी जिम्मेदारी शाह के पास थी. अंतत: शाह की तरकीब काम आई और मोदी प्रदेश के मुखिया बन गये. इसके बाद मोदी और अमित शाह की जोड़ी इतनी चली कि आज मोदी देश के पीएम बन गये और शाह को बीजेपी अध्यक्ष का पद मिल गया.
नरेंद्र मोदी से अमित शाह की पहली मुलाकात अहमदाबाद में लगने वाली संघ की शाखाओं में हुई थी. बचपन से ही दोनों इनमें जाया करते थे. हालांकि जहां मोदी एक बेहद सामान्य परिवार से आते थे, वहीं शाह गुजरात के एक अमीर परिवार से ताल्लुक रखते थे. अमित शाह संघ से जुड़े रहने के साथ-साथ शेयर ट्रेडिंग तथा प्लास्टिक के पाइप बनाने के अपने पारिवारिक व्यापार से भी जुड़े रहे.
चुनाव प्रबंधन के मास्टर
अस्सी के दशक की शुरूआत में मोदी संघ्ा के लिये बेहद सक्रीयता से काम करने लगे. धीरे-धीरे वह संघ की सीढि़यां चढ़ते चले गये. तभी अमित शाह ने मोदी से बीजेपी में शामिल होने की इच्छा जाहिर की. इसके बाद मोदी, शाह को लेकर गुजरात बीजेपी के तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष शंकर सिंह वाघेला के पास गये और उन्होंने शाह को बीजेपी में शामिल कर लिया. यहीं से अमित शाह के राजनीतिक करियर का जन्म हुआ. नब्बे के दशक में शाह के राजनीतिक जीवन में बड़ा बदलाव आया. साल 1991 में बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने सांसद का चुनाव लड़ने के लिये गांधीनंगर का रुख किया. फिर शाह ने मोदी के सामने आडवाणी के चुनाव प्रबंधन की कमान संभालने की इच्छा जाहिर की. शाह का आत्मविश्वास देखकर मोदी ने उन्हें यह जिम्मेदारी सौंप दी. आडवाणी उस चुनाव में भारी मतों से जीत गये. इस जीत में अमित शाह की काबिलियत की बहुत प्रशंसा हुई. इसके बाद गुजरात की राजनीति में शाह का कद बढ़ता ही चला गया. ऐसे ही एक मौका अटल बिहार के चुनाव के समय आया था. साल 1996 में भी शाह ने अपनी काबिलियत को दोहराया और अटल जी को भारी मतों से जितवाया.
गुजरात क्रिकेट का रुख
राजनीति में बढ़ते कद के साथ ही शाह की नजर गुजरात की सहकारी संस्थाओं पर थी. पूरे राज्य में, बैंको से लेकर दूध तक से जुड़ी कोऑपरेटिव संस्थाओं पर कांग्रेस पार्टी का कब्जा था. शाह ने अपनी काबिलियत और प्रबंधन से कांग्रेस को दशकों पुराने उसके कब्जे से उखाड़ फेंका. सहकारी संस्थाओं के बाद शाह का अगला निशाना गुजरात क्रिकेट संघ था. यहां पर भी शाह ने अपनी तिकड़म से कांगेस को पटखनी दे दी. उन्होंने गुजरात क्रिकेट संघ की कुर्सी से कांग्रेस नेता को हटाकर मोदी को बिठाया. इसके बदले में मोदी ने शाह को संघ के उपाध्यक्ष पद की कुर्सी दे दी.
2001 में दिखाया दम
इस बीच 2001 में गुजरात को भयानक भूकंप का सामना करना पड़ा. भुकंप पीडि़तों को राहत पहुंचाने के मामले में प्रदेश सरकार की काफी आलोचना हुई. केशुभाई पटेल के खिलाफ दिल्ली में खूब लॉबींइंग हुई. कुछ खबरों के मुताबिक बीजेपी ही केशुभाई के खिलाफ षणयंत्र बना रही थी. इसके सूत्रधार मोदी थे, लेकिन इस काम को अंजाम देने की पूरी जिम्मेदारी शाह के पास थी. अंतत: शाह की तरकीब काम आई और मोदी प्रदेश के मुखिया बन गये. इसके बाद मोदी और अमित शाह की जोड़ी इतनी चली कि आज मोदी देश के पीएम बन गये और शाह को बीजेपी अध्यक्ष का पद मिल गया.
Source: India News
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