दिल्ली राज्य नहीं
है, दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है, जिसका प्रशासन राष्ट्रपति अपने एक
प्रशासक के ज़रिए चलाते हैं.वो प्रशासक राज्यपाल हैं.
इसका मतलब यह है कि राज्य की सूची में जो विषय हैं केंद्र सरकार उन पर भी कानून बना सकती है.
मान लेते हैं कि दिल्ली सरकार ने कोई कानून बनाया तो भी केंद्र का कानून ही प्रभावी होगा. दिल्ली की विधानसभा और मंत्रिमंडल की शक्तियां सीमित हैं और संविधान द्वारा इनकी व्याख्या की गई है.
क्या केजरीवाल को इसका अंदाज़ नहीं था?
लोकपाल विधेयक को संसद पास कर चुकी है और वह कानून बन चुका है तो ऐसा कोई भी कानून जो उसका विरोधाभासी हो, वह संवैधानिक नहीं हो सकता.
इसमें ऐसे बहुत से प्रावधान हैं, जैसे कि पुलिस, भूमि, कानून-व्यवस्था के बारे में जो सीधे लोकपाल कानून से टकराती हैं.
केजरीवाल को चुनाव लड़ने से पहले और बहुत से वायदे करने से पहले यह देखना चाहिए था कि संविधान में इसके लिए प्रावधान क्या है? अगर वह सरकार बनाते हैं तो सरकार के पास क्या शक्तियां हैं? वह कुछ कर भी सकते हैं या नहीं?
बहुत सारी जो उन्होंने घोषणाएं की हैं वह उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं.
क्या केजरीवाल को पीछे हटना होगा?
ऐसा हो सकता है कि केजरीवाल हठधर्मी से पेश आएं और कहें कि हम कानून बनाएंगे.
लेकिन राज्यपाल को यह भी अधिकार है कि वह सदन को संदेश भेज सकें कि यह असंवैधानिक है, सदन इस पर कार्यवाही न करे.
लेकिन अगर इनके पास बहुमत है (जिस पर अब संदेह है) तो इसके बावजूद यह इसे पास करवाने की कोशिश कर सकते हैं- राज्यपाल की सलाह को मानने की कोई संवैधानिक बाध्यता नहीं है.
लेकिन अगर वह विधेयक को पास करवा भी लेते हैं तो वह फिर राज्यपाल के पास आएगा ही, उसके बिना यह कानून नहीं बन सकता.
Source: Hindi News
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