Showing posts with label Janlokpal Bill. Show all posts
Showing posts with label Janlokpal Bill. Show all posts

Wednesday, February 12, 2014

AAP Vs Congress On Janlokpal Bill

दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार आज जनलोकपाल विधेयक विधानसभा में पेश कर सकती है.
इधर बिल पर केजरीवाल सरकार को बाहर से समर्थन दे रही सहयोगी कांग्रेस पार्टी और आम आदमी पार्टी के बीच जारी तकरार कम होने के संकेत नहीं नज़र आ रहे.

उधर मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने कहा है कि जन लोकपाल बिल को लेकर अरविंद केजरीवाल "ड्रामेबाजी" कर रहे हैं और पार्टी उन्हें इस्तीफा देने का मौक़ा नहीं देगी.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बयान दिया है कि अगर जनलोकपाल विधेयक को पास नहीं किया गया तो वो इस्तीफा दे देंगे.

दूसरी ओर  आम आदमी पार्टी का कहना है कि भाजपा अपने फ़ायदे के लिए मामले पर राजनीति कर रही है.

'भाजपा समर्थन करेगी'

 अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे की अटलकों पर दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता डा. हर्षवर्धन ने बीबीसी से कहा, "हम उन्हें इस्तीफा देने का मौका नहीं देंगे."

हर्षवर्धन ने कहा, "अभी तक वो बिल लाए नहीं हैं और उसके नाम पर उन्होंने अभी तक इतनी ड्रामेबाजी की है." उन्होंने कहा कि "भारतीय जनता पार्टी जन लोकपाल बिल का समर्थन करेगी तो इस्तीफ़ा कैसे देंगे वो!"

भाजपा नेता ने कहा, "ये बिल संविधान की प्रक्रियाओं का आदर करते हुए नियमानुसार विधानसभा में आएगा तो निश्चित रूप से भारतीय जनता पार्टी उसका समर्थन करेगी."

उन्होंने कहा कि अगर पार्टी को इस बिल की किसी धारा पर कोई सुझाव देना होगा तो उसके लिए संसोधन का प्रस्ताव रखेगी और क़ानून के माध्यम से भ्रष्टाचार पर क़ाबू लाने के प्रयासों का समर्थन करेगी.

कांप जाएगी रूह

सरकार का पक्ष रखते हुए दिल्ली के क़ानून मंत्री सोमनाथ भारती कहते हैं, "केंद्र में जो बिल (लोकपाल विधेयक) लाया गया था वो पूरी तरह से प्रभावहीन है जबकि हम जो बिल ला रहे हैं उसके कारण भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों की रूह कांप जाएगी."

उन्होंने बताया कि इस बिल की सबसे ख़ास बात यह है कि हर काम के लिए एक समय सीमा तय है और कानून बनने के बाद जनता को इसके इस्तेमाल में किसी तरह की दिक्क्त नहीं होगी.

उन्होंने बताया, "इस बिल में शुरुआती जांच से लेकर मुकदमे तक सब कुछ शामिल है और इसका लोकपाल पूरी तरह से राजनीतिक हस्तक्षेप से परे होगा."

सोमनाथ भारती ने कहा कि भ्रष्टाचार को रोकने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति सबसे ज़रूरी है और यही वजह है कि इस बिल के पास होने से पहले ही दिल्ली में भ्रष्टाचार काफ़ी कम हो गया है.

सोमनाथ भारती का आरोप है कि भाजपा मुद्दे पर राजनीति कर इसका फ़ायदा उठाना चाहती है.

उन्होंने कहा कि अगर भाजपा सुधारों की इतनी ही पक्षधर है तो उसने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की दिशा में प्रयास क्यों नहीं किए?

Source: Hindi News

Monday, February 10, 2014

Why Lokpal Bill Cannot Be Passed In Delhi


दिल्ली राज्य नहीं है, दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है, जिसका प्रशासन राष्ट्रपति अपने एक प्रशासक के ज़रिए चलाते हैं.वो प्रशासक राज्यपाल हैं.
अब क्योंकि यह राज्य नहीं है इसलिए संविधान का सातवां शेड्यूल- जिसमें राज्य और केंद्र की शक्तियों का विभाजन किया गया है और समवर्ती (जिसमें दोनों कानून बना सकते हैं)- वह दिल्ली पर उस तरह लागू नहीं होता, जिस तरह अन्य राज्यों पर होता है.

इसका मतलब यह है कि राज्य की सूची में जो विषय हैं केंद्र सरकार उन पर भी कानून बना सकती है.

मान लेते हैं कि दिल्ली सरकार ने कोई कानून बनाया तो भी केंद्र का कानून ही प्रभावी होगा. दिल्ली की विधानसभा और मंत्रिमंडल की शक्तियां सीमित हैं और संविधान द्वारा इनकी व्याख्या की गई है.

क्या केजरीवाल को इसका अंदाज़ नहीं था?
लोकपाल विधेयक को संसद पास कर चुकी है और वह कानून बन चुका है तो ऐसा कोई भी कानून जो उसका विरोधाभासी हो, वह संवैधानिक नहीं हो सकता.

इसमें ऐसे बहुत से प्रावधान हैं, जैसे कि पुलिस, भूमि, कानून-व्यवस्था के बारे में जो सीधे लोकपाल कानून से टकराती हैं.

केजरीवाल को चुनाव लड़ने से पहले और बहुत से वायदे करने से पहले यह देखना चाहिए था कि संविधान में इसके लिए प्रावधान क्या है? अगर वह सरकार बनाते हैं तो सरकार के पास क्या शक्तियां हैं? वह कुछ कर भी सकते हैं या नहीं?

बहुत सारी जो उन्होंने घोषणाएं की हैं वह उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं.

क्या केजरीवाल को पीछे हटना होगा?
ऐसा हो सकता है कि केजरीवाल हठधर्मी से पेश आएं और कहें कि हम कानून बनाएंगे.

लेकिन राज्यपाल को यह भी अधिकार है कि वह सदन को संदेश भेज सकें कि यह असंवैधानिक है, सदन इस पर कार्यवाही न करे.

लेकिन अगर इनके पास बहुमत है (जिस पर अब संदेह है) तो इसके बावजूद यह इसे पास करवाने की कोशिश कर सकते हैं- राज्यपाल की सलाह को मानने की कोई संवैधानिक बाध्यता नहीं है.

लेकिन अगर वह विधेयक को पास करवा भी लेते हैं तो वह फिर राज्यपाल के पास आएगा ही, उसके बिना यह कानून नहीं बन सकता.

Source: Hindi News