पाँच साल की 'गोली' का जन्म 2008 में मुंबई पर हुए हमले के दौरान हुआ था. उस हमले में 166 लोगों की मौत हुई थी.
चाव्हाण के दीमाग़ में उस समय केवल एक चीज़ थी, वह थी उनकी पत्नी की प्रसव पीड़ा. वो कहते हैं, ''उस समय मैं केवल अपनी पत्नी के दर्द के बारे में सोच रहा था. मैं उसे डॉक्टर के पास ले जाना चाहता था.''
गोलियों की आवाज़कामा और अलब्लेस बच्चों और महिलाओं के धर्मार्थ अस्पताल हैं. वीजू अस्पताल की चौथी मंज़िल पर स्थित मैटर्निटी वार्ड में भर्ती थीं. डॉक्टर ने उनके पति को पास के एक अस्पताल से कुछ दवाएं लाने के लिए भेजा था.
"मैंने देखा कि लिफ़्टमैन को पेट में गोली मारी गई है. उसके पेट से ख़ून निकल रहा है. मुझे लगता है कि उसकी मौत हो चुकी थी. जब मैं थोड़ा और आगे गया तो देखा कि चौकीदार को गोली मारी गई है और उसकी मौत हो चुकी है. मैं बहुत डरा हुआ था"
-गोली के पिता, शामू लक्ष्मण राव चाव्हाण
वो बताते हैं कि वो लिफ़्ट के पास आए ही थे कि उन्होंने गोलियों की आवाज़ सुनी. उन्होंने बताया, ''पहले मुझे लगा कि भारत-इंग्लैंड में हुए क्रिकेट मैच में मिली भारत को जीत की ख़ुशी में लोग पटाख़े फोड़ रहे हैं.''
अस्पताल में मरीज़ों से मिलने-जुलने का समय ख़त्म हो गया था और लिफ़्टमैन लोगों को वहाँ से जाने के लिए कह रहा था.
चाव्हाण चौकीदार को यह बताने गए थे कि वो कुछ दवाइयाँ ख़रीदने बाहर जा रहे हैं और जल्द ही लौट आएंगे. लेकिन लिफ़्ट उन्हें लिए बिना ही चली गई. इसके बाद वो सीढ़ियों से ऊपर गए और एक भयावह दृश्य देखकर लौट आए.
वो बताते हैं, ''मैंने देखा कि लिफ़्टमैन को पेट में गोली मारी गई है. उसके पेट से ख़ून निकल रहा है. मुझे लगता है कि उसकी मौत हो चुकी थी. जब मैं थोड़ा और आगे गया तो देखा कि चौकीदार को गोली मारी गई है और उसकी मौत हो चुकी है. मैं बहुत डरा हुआ था.''
यह देखकर चाव्हाण सीढ़ियों से ऊपर गए. वो बताते हैं, ''मैंने सबसे कहा कि बाहर किसी तरह की गोलीबारी हो रही है. मैंने बारामदे में मौजूद सभी लोगों से कहा कि एक वार्ड के अंदर चले जाइए. बंदूक़धारियों को घुसने से रोकने के लिए लोगों ने दरवाज़े के सामने बहुत से बेड लगा दिए.''
बंदूक़धारियों का हमला
इसके बाद चाव्हाण खिड़की से बाहर झांक कर यह देखने लगे कि वहाँ क्या हो रहा है. वो बताते हैं, ''मैंने देखा कि दो बंदूक़धारी बम फेंक रहे हैं और चारों तरफ़ गोलीबारी कर रहे हैं.''
चाव्हाण बताते हैं, ''मैं वास्तव में बहुत डरा हुआ था. यह अविश्वसनीय था. हम लोगों ने वार्ड को अंदर से काफ़ी देर तक बंद किए रखा. डॉक्टरों ने हमें कहा कि किसी के लिए भी दरवाज़ा न खोलें.''
इस दौरान विजू प्रसूती कक्ष में ही पड़ी रहीं. उन्होंने गोलीबारी की आवाज़ सुनी. लेकिन जन्म किसी का इंतज़ार नहीं करेगा.
वो कहती हैं, ''मैं बहुत डरी हुई थी. लेकिन मैं अपने प्रसव पर नियंत्रण नहीं पा सकती थी. वह तो होना ही था. मैं जानती थी कि बाहर कुछ बहुत ही ख़तरनाक़ हो रहा है, इसलिए मैं चिल्ला भी नहीं सकती थी. मैंने कोई आवाज़ नहीं की.''
विजू ने बहुत ही शांति से बच्चे को जन्म दिया और अस्पताल के कर्मचारियों ने बच्चे के सभी सामान्य जांच किए. यहाँ तक कि बच्चे का वज़न भी लिया. रात 10.55 बजे, यानि की अस्पताल पर हमले के हमला शुरू होने के क़रीब एक घंटे बाद चाव्हाण को एक संदेश मिला कि उनको बेटी पैदा हुई है. वो अन्य लोगों के साथ वार्ड में सुबह दो बजे तक घेराबंदी किए रहे.
प्रसूती वार्ड के दरवाज़े पर एक गोली आकर लगी. लेकिन वह उसके पार नहीं जा पाई. लेकिन उसका शीशा टूट गया. इससे डॉक्टर डर गए. और गोलाबारी की आशंका को देखते हुए उन्होंन विजू को बच्ची के साथ बेड के नीचे छिप जाने को कहा.
फ़िल्मी नाम"पड़ोस के सभी लोग उसे गोली कहकर बुलाते हैं. बहुत से लोग उसे एके-47 भी कहते हैं (हमलावरों के पास असाल्ट क्लासिनोकोव राइफ़लें थीं.) इस तरह वह काफ़ी मशहूर हो गई"
-गोली की माँ विजू
विजू ने अपनी नवजात बच्ची का नाम तेजस्वनी रखा. यह इसी नाम की एक बॉलीवुड फ़िल्म, जो भ्रष्टाचार से लड़ने वाली ईमानदार महिला पुलिस अधिकारी पर आधारित था. लेकिन उसी रात अस्पताल के कर्मचारियों ने उसे एक और नाम दिया.
वो बताती हैं कि बच्ची के पैदा होने के बाद आधे घंटे तक उसे स्तनपान कराती रहीं. इस दौरान डॉक्टरों ने कहा, ''आपको अपनी बच्ची का नाम गोली रखना चाहिए.''
इसके बाद तेजस्वनी नाम कहीं पीछे छूट गया और वह 'गोली' के नाम से मशहूर हो गई.
'गोली' का जन्म अख़बारों की सुर्खियां बनीं और बच्ची शहर के लिए उम्मीद का प्रतीक बन गई. जन्म के बाद बहुत से लोग उसे देखने आए और उसके पुकार का नाम मशहूर हो गया.
विजू बताती हैं, ''पड़ोस के सभी लोग उसे गोली कहकर बुलाते हैं. बहुत से लोग उसे एके-47 भी कहते हैं (हमलावरों के पास असाल्ट क्लाशिनोकोव राइफ़लें थीं.) इस तरह वह काफ़ी मशहूर हो गई.''
इस इंटरव्यू के दौरान 'गोली' अपने माँ-बाप के साथ बैठी रही, उसने कहा कि उसे यह नाम पसंद है.
नहीं मनाया जन्मदिन
चाव्हाण इस बात के लिए आभारी हैं कि सब लोग इस स्थिति से सुरक्षित बाहर निकल आए. लेकिन उन्होंने जो भी देखा, वह उनका अभी भी पीछा करता है. अस्पताल के अंदर सात और बाहर नौ लोग मारे गए थे. इसमें कुछ पुलिस अधिकारी भी शामिल थे.
वो बताते हैं, ''मेरे सामने ही एक बहुत ही वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को गोली मारी गई. यह बहुत दर्दनाक था. उसे मैं कभी भूल नहीं पाउंगा, क्योंकि उन्हीं पुलिस अधिकारियों की वजह से हम आज ज़िंदा हैं. ''
इस अस्पताल पर हमला करने वालों में पाकिस्तानी नागरिक मोहम्मद अज़मल आमिर क़साब शामिल थे. उन्हें पकड़ लिया गया था. उसे मई 2010 में मौत की सज़ा सुनाई गई थी और 21 नवंबर 2012 को फांसी दी गई.
इस परिवार ने कभी गोली का जन्मदिन नहीं मनाया. विजू कहती हैं, ''हम यह जानते हैं कि बहुत से लोगों के लिए यह एक दुखद दिन है.''
इस परिवार का विस्वास उन्हें उस रात की घटना से निपटने में मदद करता है.
Source: Hindi News
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