Friday, January 30, 2015

When the uncle went against

मद्र देश के राजा शल्य, नकुल-सहदेव की मां माद्री के भाई थे। जब उन्हें ये खबर मिली कि पांडव उपप्लव्य के नगर में युद्ध की तैयारियां कर रहे हैं। तो उन्होंने एक भारी सेना एकत्रित की, और उसे लेकर पांडवों की सहायता के लिए उपप्लव्य की ओर रवाना हो गए।

राजा शल्य की सेना बहुत बड़ी थी। उपप्लव्य की ओर जाते हुए रास्ते में जहां कहीं भी शल्य विश्राम करने के लिए डेरा डालते , तो उनकी सेना का पड़ाव कोई डेढ़ योजन (एक योजन करीब नौ मील का होता है) तक लंबा फैल जाता था।

जब दुर्योधन ने सुना कि राजा शल्य विशाल सेना लेकर पांडवों की सहायता के लिए जा रहे हैं तो उसने किसी प्रकार इस सेना को अपनी ओर हासिल करने का निर्णल लिया। अपने कुशल कर्मचारियों को दुर्योधन ने आदेश दिया कि जहां कहीं भी सेना रुके उसे पूरी सुविधाएं मुहैया करवाईं जाएं।

जहां भी शल्य की सेना ठहरती वहां सेना का सत्कार किया जाता। मद्रराज तथा उनकी सेना के लिए पूरी तरह से बहलाने का प्रबंध किया गया। लेकिन रास्ते भर राजा शल्य यही सोचते रहे क सत्कार के सभी आयोजन मेरे भानजें युधिष्ठिर ने किए हैं। तब उन्होंने स्वागतकर्ताओं को उपहार देने का विचार किया। वह उनसे बोले कि, कुंती पुत्र युधिष्ठिर ने काफी अच्छी व्यवस्था की है।

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