Thursday, January 15, 2015

संगम के रंग: उपासना, कर्म व ज्ञान में डूबा तीर्थ महान

जिसका जैसा स्वभाव होता है, वह उसी के अनुरूप कार्य करता है। यह कार्य ही उसके प्रतीक बन जाते हैं। ऐसा नजारा गुरुवार को संगम तट पर दिखा। यहां त्रिवेणी की धाराओं की प्रतीकों के अनुरूप ही तट पर तरह-तरह के अनुष्ठान चलते दिखे। यह सारा जतन पुण्य पाने के लिए हो रहा है। यहां ठंडक पर आस्था की गर्माहट भारी पड़ी।

वैसे तो प्रयाग (प्रकर्षेण याग) के नाम के अनुरूप धार्मिक अनुष्ठान की 'अग्निÓ यहां निरंतर धधकती रहती है, लेकिन कुंभ, अर्धकुंभ एवं हर साल माघ के महीने में इसकी ज्वाला काफी तेज हो जाती है। इसकी वजह यह है कि यहां पुण्य पाने के लिए सिर्फ कल्पवासी एवं आम श्रद्धालु ही नहीं आते, बल्कि मान्यता है कि सारे तीर्थ यहां आते हैं। इसीलिए इसे तीर्थराज यानी तीर्थो का राजा कहा जाता है। ईश्वर शरण डिग्री कालेज के संस्कृत विभागाध्यक्ष गिरिजा शंकर शास्त्री कहते हैं कि तुलसीदास ने रामचरित मानस में 'माघ मकर रवि गति जब होई, तीर्थराज में आव सब कोईÓ लिखा है। इसमें सब कोई का अर्थ में सारे तीर्थ भी शामिल हैं। ऐसे विशिष्ट स्थान पर बुधवार मध्यरात्रि में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही हलचल तेज हो गई है। 

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