'जोर से बोलो भैया.. जय हो गंगा मइया.., गद्दा न रजाई, जय हो गंगा
माई..,..रे मइया तोर पानी अमरित .., और.., हर-हर गंगे..ऊं भगवते वासुदेवाय'
जैसे नारे व जयकारे स्नानार्थी लगा रहे थे। सभी के मन में जाह्नवी के
प्रति अगाध आस्था। सभी के हृदय में अमृतमयी गंगा में डूबकी लगाने की मंगल
कामना। आस्था के ज्वार में डूबते-उतराते श्रद्धालुओं का उत्साह कड़ाके की
ठंड पर बहुत भारी पड़ गया। प्रशासन के आंकड़ें को सत्यापित करते हुए दोपहर
तक करीब 50 लाख स्नानार्थियों ने गंगा-यमुना व अदृश्य सरस्वती के पावन संगम
में डुबकी लगाई। संगम के साथ त्रिवेणी व महावीर मार्ग के मध्य सिटी साइड
के घाट, रामघाट, दंडी बाडा और गंगोली शिवाला समेत सभी 12 घाटों पर 'तिल
रखने की भी जगह' नहीं थी। चहुंदिश दिख रहे थे तो केवल लाखों सिर। दान-पुण्य
में भी कोई किसी से कम नही रहा।
'ऊं नम: शिवाय, त्रिवेणी माधवं... प्रयागम् तीर्थनायकम्' जैसे
मंत्रोच्चार के बीच स्नानार्थी मौनी अमावस्या पर अपने को धन्य मानते दिखे।
1550 बीघे में चार सेक्टरों में बसी तंबुओं की नगरी श्रद्धालुओं से पटी
रही। मेला प्रशासन ने भी अपने तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी और घाटों से लेकर
संगम के रास्तों तक पर सुव्यवस्था की। किसी तरह की परेशानी होने पर पुलिस
से लगायत स्वास्थ्य विभाग की व्यवस्था भी चाक चौबंद दिखी। कश्मीर से
कन्याकुमारी तथा सिल्चर से काठियावाड़ तक के स्नानार्थियों ने पतित पावनी
गंगा में डूबकी लगाई व वर्षों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन किया।
Source: Daily Horoscope 2015
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