Thursday, January 29, 2015

it was also valuable copper coin million

महात्मा गांधी जी देश भर में भ्रमण कर चरखा संघ के लिए धन इकठ्ठा कर रहे थे। अपने दौरे में वे उड़ीसा में एक सभा को संबोधित करने पहुंचे। उनके भाषण के बाद एक बूढ़ी गरीब महिला खड़ी हुई, उसके बाल सफ़ेद हो चुके थे, कपड़े फटे थे और वह झुक कर चल रही थी, किसी तरह वह भीड़ से होते हुए गांधी जी के पास तक पहुचीं।

उसने कहा, 'मुझे गांधी जी को देखना है' उसने आग्रह किया और उन तक पहुंच कर उनके पैर छुए। फिर उसने अपने साड़ी के पल्लू में बंधा एक तांबे का सिक्का निकाला और गांधी जी के चरणों में रख दिया।

महात्मा गांधी जी ने सावधानी से सिक्का उठाया और अपने पास रख लिया। उस समय चरखा संघ का कोष जमनालाल बजाज संभाल रहे थे। उन्होंने गांधी जे से वो सिक्का मांगा, लेकिन गांधी जी ने उसे देने से मना कर दिया।

ऐसा देखकर जमनालाल जी हंसते हुए कहा 'मैं चरखा संघ के लिए हजारों रुपए के चेक संभालता हूं, फिर भी आप मुझ पर इस सिक्के को लेकर यकीन नहीं कर रहे हैं।' महात्मा गांधी जी ने उत्तर दिया कि 'यह तांबे का सिक्का उन हजारों रुपए से कहीं ज्‍यादा कीमती है।'

यदि किसी के पास लाखों हैं और वो हजार-दो हजार दे देता है तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन ये सिक्का शायद उस औरत की कुल जमा-पूंजी थी। उसने अपना सारा धन दान दे दिया। कितनी उदारता दिखाई उसने कितना बड़ा बलिदान दिया! इसीलिए इस तांबे के सिक्के का मूल्य मेरे लिए एक करोड़ से भी अधिक है।'

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