Wednesday, January 28, 2015

At a time when the emperor is also beggars

सूफी फकीर फरीद से एक बार उनके गांव के व्यक्ति ने कहा कि गांव में मदरसे की जरूरत है। बादशाह तुम्हारी बात मानते हैं, इसलिए तुम उनसे कहो।

फरीद ने कहा कि, ठीक में चला जाउंगा। फरीद सुबह के वक्त गए। उनके लिए कोई रोक-टोक नहीं थी। उन्हें सीधे महल में ले जाया गया। उस समय बादशाह खुदा को याद कर रहा था। और दोनों हाथ उठाकर याचक की तरह परमात्मा से कुछ मांग रहा था।

फरीद तत्काल लौट पड़े। बादशाह की इबादत पूरी हो चुकी थी। किसी ने लौटने पर बादशाह ने पूछा कौन आया था। उत्तर मिला फरीद आकर चले गए हैं। बादशाह ने सोचा आज फरीद खुद चलकर आए हैं तो जरूर कोई खास बात होगी।

वह फरीद के करीब जाकर बोला, मुझसे कुछ भूल हुई है क्या? फरीद ने कहा कि न भूल तुमसे हुए न मुझस। दरअसल मैं तुमसे गांव के लिए एक स्कूल मांगने आया था। लेकिन देखा कि तुम खुद खुदा से भीख मांग रहे हो तो सोचा कि जिससे तुम खुद मांग रहे हो उसी से मैं भी मांग लूंगा।

अब तक मैनें समझा कि तुम एक सम्राट हो, लेकिन मेरा वह भ्रम आज टूट गया। दरअसल, जब तक मांग है, तब तक कोई सम्राट नहीं। जब तुम खुद मांगने वाले हो तो दोगे कैसे ?

अगर दोगे भी तो वह सौदा होगा, कुछ पाने के लिए तुम्हारे दान में कुछ पाने की आकांक्षा होगी। इसलिए चाह से भरा हुआ आदमी भिखारी होता है।

Source:  Horoscope 2015

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