Wednesday, January 14, 2015

मन जीतें जग जीत

जीवन भावयुद्ध की तरह है। अक्सर हम पाते हैं कि हम संग्राम में खड़े हैं। कभी मन को राहत मिलती है तो कभी संवेदनाएं भी आहत भी होती हैं। मर्म पर लगी इस चोट की वजह कभी हमारा अहंकार होता है तो कभी दूसरों का।

जीवन में कभी हम दूसरों से प्रभावित होते हैं और कभी अपनों से। समृद्ध जीवन के लिए जरूरी है कि भावनाओं के युद्ध में, विचारों और संबंधों के युद्ध में हम पराभूत न हों। लेकिन हो सकता है जिसने मनोविकार जीत लिए।

जो मानसिक विकारों से मुक्त नहीं हो पाता वह विजेता नहीं हो सकता है। जो चित्त की वृत्तियों को स्थिर नहीं कर पाता वह जीत नहीं सकता। इसलिए गुरु नानक ने कहा है,'मन जीते जग जीत'। शास्त्र कहते हैं कि मन ही मनुष्य के बंधन और मुक्ति का कारण है।

मन से बंधे हैं हम और मन की मुक्ति से ही मनुष्य मुक्त होगा। मुक्ति से अर्थ जड़ता, आलस्य, प्रमाद, संकीर्णता, भ्रम और भय से मुक्ति से है। इसलिए कभी अगर हम मुक्त हुए तो उसमें मन ही सहायक बनेगा।

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