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Thursday, January 8, 2015

Sarnath is the historical and national heritage glass enclosure

सम्राट अशोक की ऐतिहासिक व राष्ट्रीय धरोहर अशोक की लाट के संरक्षण की कवायद पूरी कर ली गई है। काशी के महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल व बौद्ध धर्मावलंबियों के आस्था के केंद्र सारनाथ के खंडहर में स्थित इस लाट के खंड को अब चारों ओर से शीशे के द्वारा सुरक्षित कर दिया गया है। 

गुरुवार को इसे शीशे द्वारा सुरक्षित करने का काम अंतिम चरण में था। 

दरअसल, अब तक एकदम खुले में रहने की वजह से सम्राट अशोक की इस लाट पर मौसम की मार का असर साफ दिखने लगा था। इसके चलते लाट पर कई जगह दरारें झलकने लगी थीं। हालत यह थी कि कोई रोक न होने की वजह से सारनाथ आने वाले तमाम पर्यटक इसे हाथों से छू छूकर इसकी चिकनाई का अंदाजा लगाते थे। 

इन सबका दुष्परिणाम यह हुआ कि लाट का क्षरण शुरू हो गया और उसमें दरारें दिखने लगीं। अंतत: राष्ट्रीय धरोहर के संरक्षण के क्रम में इस मसले को दैनिक जागरण ने पहली बार 18 अप्रैल सन 2012 को पूरी प्रमुखता से प्रकाशित किया। इसके बाद तो समय समय पर इस मसले को प्रकाशित किया जाता रहा। हालिया दिनों में धरोहर संरक्षण के क्रम में भी इस महत्वपूर्ण मामले को उठाया गया। 

From any corner of the world, the faithful will be able to donate online

बोधगया महाबोधि मंदिर प्रबंधकारिणी समिति की एक बैठक बुधवार को पदेन अध्यक्ष डीम संजय कुमार अग्रवाल की अध्यक्षता में हुई। बैठक में समिति ने मंदिर को दान देने के लिए आन लाइन दान देने का निर्णय लिया। इसके तहत दान दाताओं को महाबोधि मंदिर आने की जरूरत नहीं। 

बल्कि वे विश्व के किसी कोने से ही आन लाइन दान कर सकते हैं। यह पहली बार हुआ है कि बौद्ध धर्म के अनुयायी व इस धर्म को अंगीकार कर चुके लोग बोधगया के महाबोधि मंदिर में आन लाइन दान कर सकते हैं। उन्हें बोधगया आने की जरूरत नहीं होगी। 

Now would be a new cadre of Varanasi Ganga Arti

दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती का रंग, रूप और भी निखरेगा। इसकी अद्भुत भव्यता में सुर- लय- ताल का रंग भी जुड़ेगा। इससे देश-विदेश के ख्यात कलाकार जोड़े जाएंगे। शास्त्रीय संगीत के साथ शिव तांडव समेत विभिन्न आयोजन भी इसमें शामिल किए जाएंगे। वहां बैठने के लिए इंतजाम भी स्थायी किए जाएंगे जो बिना किसी भेदभाव पर्यटक व श्रद्धालु को 'पहले आओ -पहले पाओÓ की तर्ज पर उपलब्ध होंगे।

घाटों के सौंदर्य को निखारने के लिए केंद्र व प्रदेश सरकार की रूचि को देखते हुए पर्यटन विभाग ने अपनी गतिविधियों को विस्तार देने का मन बनाया है। इसके लिए पर्यटन विभाग ने पिछले दिनों प्रदेश शासन को प्रस्ताव भेजा था। इस पर सैद्धांतिक सहमति मिल गई है। अब महज स्वीकृति आदेश व बजट के कागजात आने बाकी हैं। इसे लेकर पर्यटन विभाग ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। समझा जाता है कि इसी माह से योजना को मूर्त रूप दे दिया जाएगा।

Wednesday, January 7, 2015

Now would be a new cadre of Varanasi Ganga Arti

दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती का रंग, रूप और भी निखरेगा। इसकी अद्भुत भव्यता में सुर- लय- ताल का रंग भी जुड़ेगा। इससे देश-विदेश के ख्यात कलाकार जोड़े जाएंगे। शास्त्रीय संगीत के साथ शिव तांडव समेत विभिन्न आयोजन भी इसमें शामिल किए जाएंगे। वहां बैठने के लिए इंतजाम भी स्थायी किए जाएंगे जो बिना किसी भेदभाव पर्यटक व श्रद्धालु को 'पहले आओ -पहले पाओÓ की तर्ज पर उपलब्ध होंगे। 

घाटों के सौंदर्य को निखारने के लिए केंद्र व प्रदेश सरकार की रूचि को देखते हुए पर्यटन विभाग ने अपनी गतिविधियों को विस्तार देने का मन बनाया है। इसके लिए पर्यटन विभाग ने पिछले दिनों प्रदेश शासन को प्रस्ताव भेजा था। इस पर सैद्धांतिक सहमति मिल गई है।

 अब महज स्वीकृति आदेश व बजट के कागजात आने बाकी हैं। इसे लेकर पर्यटन विभाग ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। समझा जाता है कि इसी माह से योजना को मूर्त रूप दे दिया जाएगा। 

Morning-e-Benaras increased demand platform

अस्सी घाट पर सुर राग से पगे सुबह-ए-बनारस के मंच की मांग, अब राष्ट्रीय संस्थाओं की ओर से भी आने लगी है। राष्ट्रीय संस्था स्पीक मैके ने इसके लिए जिला सांस्कृतिक समिति से सहमति मांगी है। 

दिल्ली स्थित एक संगीत संस्थान ने शास्त्रीय रागों से सुबह की अगवानी के लिए सात दिन मंच संभालने का प्रस्ताव दिया है। संस्था की ओर से इसके लिए समिति को कलाकारों की सूची भी सौंप दी गई है। इसमें उनका जीवन वृत्त संलग्न करते हुए उनकी संबंधित राग में सिद्धहस्तता का भी उल्लेख किया है। 

स्पीक मैके ने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय ख्याति के कलाकारों के काशी में प्रस्तुतिकरण के लिए आगमन पर मंच साझा करने का प्रस्ताव दिया है। समिति सचिव डा. रत्नेश वर्मा ने बताया कि आयोजन की शुरुआत से पहले ही एक साल के लिए कलाकारों की सूची तैयार कर ली गई थी। अब नए प्रस्तावों पर समय निकाल कर अवसर दिया जाएगा। 

Thursday, December 25, 2014

Vishwanath temple bomb on information disclosure

प्रधान मंत्री की काशी यात्रा पर दो ऐसी घटनाएं हुईं जिसे लेकर सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठ खड़े हुए हैं। पहली घटना बाबतपुर एयरपोर्ट पर सुबह पार्किंग एरिया में गोली चलने की तब हुई जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पीएम के विमान का इंतजार कर रहे थे।

गोली एक गनर की लापरवाही से चली थी। दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब डीरेका में रेल इंजन का लोकार्पण करने के बाद लोगों को संबोधित कर रहे थे, केंद्रीय खुफिया एजेंसी आइबी ने एक ऐसी सूचना दी जिससे एसपीजी समेत नगर में मौजूद सुरक्षा एजेंसियों के हाथ-पांव फूल गए। खुफिया एजेंसियों को सूचना मिली कि किसी ने काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में टाइम बम लगा दिया है। हालांकि खोजबीन में कुछ नहीं मिला। हुआ यूं कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा के मद्देनजर खुफिया टीम ने अपने मुखबिरों को कैंट रेलवे स्टेशन पर भी लगा रखा था। एक मुखबिर के पास खड़े दो युवक आपस में बातचीत कर रहे थे कि विश्वनाथ मंदिर में बम लगा दिया गया है। इतना सुनते ही मुखबिर ने खुफिया अधिकारियों को सूचना दी। बम की बात सामने आते ही खुफिया तंत्र सक्रिय हो गया। एसएसपी और जिलाधिकारी को सूचना दी गई। प्रधानमंत्री की डीरेका में मौजूदगी के बीच बम की सूचना पर पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया।

एसएसपी के आदेश पर एसपी प्रोटोकाल डीपीएन पांडेय बाबा दरबार परिसर में पहुंच गए। उधर प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए डीरेका में मौजूद बम डिस्पोजल दस्ता प्रभारी, हरिश्चंद्र तिवारी तत्काल अपनी टीम के साथ मंदिर पहुंच गए।

विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में हाई अलर्ट घोषित करने व रेड जोन से सभी श्रद्धालुओं को बाहर निकालने के बाद गर्भगृह की जांच की गई। गर्भगृह के बाद मंदिर क्षेत्र का एक-एक कोना खंगाला गया। पानी टंकी, कैश बाक्स से लेकर श्रृंगार कक्ष तक की गहन जांच की गई।

अन्न क्षेत्र, अन्नपूर्णा मंदिर में भी सुरक्षाकर्मियों ने कोना-कोना छान मारा। रेड जोन का चप्पा-चप्पा तलाशने के बाद यलो जोन में सुरक्षाकर्मियों ने उन सभी दुकानदारों के यहां तलाशी कराई, जिनके यहां लॉकर की सुविधा है। दुकानदारों को आगाह किया गया कि बिना सामान की जांच किए उसे लॉकर में न रखें। साढ़े तीन बजे से लेकर देर शाम सात बजे तक तलाशी अभियान के बाद जब कुछ नहीं मिला तक सुरक्षाकर्मियों ने राहत की सांस ली। हालांकि एहतियात के तौर पर रेड जोन के प्रवेश द्वार पर जवानों की संख्या बढ़ा दी गई है। यलो जोन में कोबरा कमांडो गश्त करने के साथ ही गलियों में मौजूद वाहनों की जांच करते रहे। सात बजे जब सुरक्षा एजेंसियों ने मंदिर परिक्षेत्र को सुरक्षित घोषित किया तब जाकर पुलिस प्रशासनिक महकमे ने राहत की सांस ली। 

Why can not the celebrated Festival

खिचरी स्वाद अरुसि रही रसना, दृग अरुझो पिय रूप गौर तन।

दुहुं विधि आतुर रसिक-पुरंदर, सजनी समुझि निरखि प्रमुदित मन।।

गान सुनत श्रवननि नव-नव रुचि, परस होत रोमांचित अंगन।

वृंदावन हित रूप जाउं बलि, अस कछु रस बस निपट घनी-घानी।।

शीत ऋतु में साधक अपने आराध्य राधाबल्लभ लाल को पंचमेवा युक्त खिचड़ी प्रसाद परोसकर कुछ इन पंक्तियों का गायन करते हैं, तो मंदिर में भक्ति और आस्था का एहसास ही निराला दिखने लगता है। भोर होते ही मंगला आरती के दौरान औलाई वेश में दर्शन देते ठाकुरजी को देख खुद ही ठंड का एहसास होने लगता है, तो ठाकुरजी को गर्म खिचड़ी उसमें तैरता घी और पंचमेवा का प्रसाद गर्माहट देने के लिए परोसा जाता है।

हेमंत ऋतु में खिचड़ी उत्सव के आयोजन की परंपरा राधाबल्लभीय संप्रदाय में काफी प्राचीन है। 18वीं शताब्दी में संत-भक्तों द्वारा रचित साहित्य से यहां की इस परंपरा के प्राचीन संदर्भ उद्घाटित होते देखे जा सकते हैं। कालांतर में इस मनोरथ को केंद्र में रखकर अलग-अलग रचनाकारों ने विपुल साहित्य रचा, जिसकी पाण्डुलिपियां न केवल ब्रजमंडल बल्कि भारत के हस्तलिखित ग्रंथागारों में भी मिलती हैं।

मंदिर सेवायत हित राधेशलाल गोस्वामी एवं मोहित मराल गोस्वामी ने बताया कि ठा. राधाबल्लभ मंदिर में पौष मास के शुक्ल पक्ष की दौज से माघ मास की एकदशी प्रभात तक ठाकुरजी को नित्य सुबह खिचड़ी प्रसाद लगाया जाएगा। जो 21 जनवरी तक चलेगा। खिचड़ी महोत्सव ठाकुरजी का प्राचीनतम एवं प्रिय उत्सव है।

खिचड़ी के साथ इनका भी लगता प्रसाद- ठाकुरजी को परोसे जाने वाली खिचड़ी में दाल-चावल के अनुपात का घी, काजू, बाजाम, जायफल, जावित्री, केसर, चिरौंजी समेत पंचमेवा और खीरसा की कुलिया, श्रीखंड, अचार, ग्वार की फरी, मुरब्बा, सेम का अचार, आलू की सब्जी, राई आलू भी शामिल है। इसमें हींग, लालमिर्च का प्रयोग नहीं होता।

Stupendous sum: 30 properties found in the coil because of Banaras and Modi ...

देखा जाए तो पूरे देश में सबसे चर्चित लोक सभा सीट के रूप में वाराणसी ही है। इसका कारण देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है, वहीं काशी विश्व की धार्मिक राजधानी भी है। यहां के विकास को लेकर चारों तरफ चर्चाएं आम हैं। वजह यह कि प्राचीन नगरी के रूप में बनारस मंदिरों का शहर, शिक्षा व पर्यटन के लिहाज से देश का बहुत बड़ा अंग है।

बावजूद इसके अभी तक इसके विकास के नाम पर सौतेला व्यवहार होता रहा है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से यहां आम जनमानस में खुशियों की लहर दौड़ रही है। ज्योतिषीय परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो वृहस्पति को धार्मिक कार्यो धर्म परिक्षेत्र तथा धर्म भाव व धन का कारक ग्रह माना गया है। ज्योतिषाचार्य ऋषि द्विवेदी के अनुसार वर्तमान में आकाश में वृहस्पति का संचरण कर्क राशि पर है। यह अभी वक्रीय है। आगे कर्क पर फिर संचरण करेगा।

ज्योतिष शास्त्र में वृहस्पति को कर्क राशि में उच्च का माना जाता है। इस वजह से जब जब वृहस्पति कर्क राशि का होता है तो उस समय धर्म स्थल, धार्मिक नगरी, धर्म की जय-जयकार चारों तरफ होती है। वहीं मोदी की कुंडली में भी चंद्रमा की महादशा में वृहस्पति का अंतर आ गया है। यह 30 अक्टूबर 2014 से दो मार्च 2016 तक रहेगा। वृहस्पति शिक्षा, ज्ञान, विज्ञान, आचार-विचार, सर्वधर्म व यश का कारक भी है।

फलस्वरूप बनारस सहित पूरे देश में शिक्षा, धर्म-ज्ञान से जुड़े जो भी कार्य रुके हुए हैं, उन सभी कार्यो को वृहस्पति पूरा कराएंगे। साथ ही चल रही मोदी की कुंडली में चंद्र की महादशा में वृहस्पति का अंतर, यह योग गजकेशरी योग का फल दे रहा है। फलत: बनारस का विकास कार्य तेजी से होने लगा है।

आगे देखा जाए तो बनारस व मोदी की कुंडली में 30 गुण मिलते हैं। यह बनारस के विकास के लिए अद्भूत योग है। वाराणसी की वृष राशि है। राशि से सप्तम में बैठा शनि चतुर्दिक विकास की ओर उन्मुख कर रहा है। इसी कुंडली में पराक्रम में बैठा गोचर का वृहस्पति विकास के पथ पर सर्व अग्रणी रखेगा। सब मिलाकर बनारस, मोदी तथा गोचर में कर्क पर वृहस्पति का संचरण, काशी के विकास के लिए शुभ होगा।

Tuesday, December 23, 2014

God's grace was expressed ramlalla

रामलला के प्राकट्य की तारीख महज उत्सव ही नहीं बल्कि रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की दृष्टि से भी तवारीखी (ऐतिहासिक) है। वह सन् 1949 की 22-23 दिसंबर की अर्धरात्रि का ही वक्त था, जब विवादित इमारत में रामलला का प्राकट्य हुआ।

यदि हिंदू संगठनों की ओर से इसे चमत्कारिक घटना बताकर शिरोधार्य किया गया, तो बाबरी मस्जिद की वकालत करने वालों ने रामलला के प्राकट्य को साजिशपूर्ण बताया एवं बाबरी मस्जिद स्वतंत्र कराने की मांग जारी रखी। गत 66 वर्षों से इसी तारीख को राम प्राकट्योत्सव का आयोजन करती आई रामजन्मभूमि सेवा समिति का गठन प्राकट्य की तारीख के कुछ ही दिन बाद किया गया और वे सेवा समिति के महामंत्री गोपाल सिंह विशारद ही थे, जिन्होंने सन् 1950 में पहला वाद दायर करते हुए विवादित इमारत में कथित रूप से प्रकट हुए रामलला की पूजा-अर्चना की इजाजत मांगी, तो दूसरे पक्ष ने इस मांग का प्रतिवाद किया। इसी वर्ष ही रामचंद्रदास परमहंस ने श्रद्धालुओं के लिए रामलला के दर्शन की इजाजत मांगी।

परस्पर विरोधी दावेदारी का परिणाम यह हुआ कि प्रशासन ने विवादित इमारत को कुर्क कर लिया। हालांकि यदि निर्मोही अखाड़ा के पंच पुजारी रामदास की मानें तो निर्मोही अखाड़ा बाबर के पूर्व से ही रामजन्मभूमि का प्रबंध करती आ रही थी और बाबर के सेनापति द्वारा मंदिर तोड़े जाने के समय भी रामजन्मभूमि का प्रबंधन निर्मोही अखाड़ा की ही देख-रेख में था और रामजन्मभूमि की स्वतंत्रता के लिए निर्मोही अखाड़ा ने भरपूर प्रयास किया। विवाद के चलते ही एक दौर ऐसा आया जब रामलला की मूर्ति वहां से हटाकर फैजाबाद स्थित गुप्तारगढ़ी में संरक्षित की गई। निर्मोही अखाड़ा के साधु प्रत्येक सुबह रामलला की मूर्ति को हाथी पर रखकर रामजन्मभूमि तक ले जाते थे और पूरे दिन पूजा अर्चना के बाद सायं वापस गुप्तारगढ़ी पर ले आते थे। यह विडंबना अकबर के दरबार तक पहुंची और अकबर ने विवादित इमारत के सम्मुख रामचबूतरा पर रामलला को स्थाई रूप से विराजमान कर वहां पूजन-अर्चन की इजाजत दी। इसी के बाद से यदि रामचबूतरा पर रामलला की पूजा शुरू हुई, तो गर्भगृह के लिए लड़ाई भी जारी रही। 

Monday, December 22, 2014

Lddoogopal 'look at winter

जब न्यूनतम पारा सात डिग्री पर घूम रहा हो तो आम ब्रजवासी के साथ उनके प्यारे ‘लड्डू गोपाल’ को भी शीत के प्रभाव से परेशानी होने लगी है। ऐसे में ब्रजवासी ठाकुर को रजाई-गद्दे, तकिया और ऊनी पोशाक पहनाकर प्रसन्न रखने का प्रयास कर रहे हैं। इतना ही नहीं लाला को शीत से बचाने को भाव सेवा के तहत केसर, चिरौंजी, बादाम व पिस्तायुक्त गर्म दूध शयन भोग में परोसा जा रहा है।

शहर में प्रमुख मंदिरों, कुंज-निकुंज और घरों में विराजे लड्डूगोपाल को गर्म पोशाक और ऊनी वस्त्र में एहतियात के साथ रखा जा रहा है। उन्हें रजाई-गद्दे और तकिया में शयन कराया जा रहा। ब्रजवासी घरों में विराजे ठाकुरजी को नित नई ऊनी पोशाक धारण कराते हैं। 

The government has come up on the promise of restoration of temples

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेपाल यात्रा के बाद वहां के प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार एवं संरक्षण के लिए भारतीय मदद के वादे पर सरकार बढ़ चली है। एएसआई और मंदिर के सहमति पत्र को विदेश मंत्रालय के पास भेजा जा चुका है। इसी तर्ज पर दक्षिण-पूर्व एशिया के प्राचीन मंदिरों के संरक्षण संबंधी वर्षों पुराने प्रोजेक्टों के संबंध में भी इस वित्तीय वर्ष में धन मुहैया कराया जाएगा-

काठमांडू में प्राचीनतम मंदिर है। इसका अस्तित्व 400 ईस्वी के आस-पास से माना जाता है। शिव के प्रमुख मंदिरों में शुमार। शिवलिंग स्थापित है, हर रोज पांच हजार भारतीय श्रद्धालु मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

यूनेस्को की वैश्विक विरासत स्थल की सूची में शामिल है

वादा-अगस्त में सरकार ने वहां पर धर्मशाला बनाने के साथ पुराने स्मारकों के संरक्षण और मंदिर परिसर में साफ-सफाई की सुविधा प्रदान करने के लिए मदद का वादा किया था

इरादा- विदेश मंत्रालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) से इस संबंध में आग्रह किया। एएसआइ ने पशुपतिनाथ मंदिर ट्रस्ट के साथ मिलकर सहमति पत्र बनाकर मंत्रालय के पास स्वीकृति के लिए भेजा है। उसमें जीर्णोद्धार के लिए 24.26 करोड़ रुपये की मांग की गई है। स्वीकृति मिलते ही काम शुरू हो जाएगा।

पशुपति नाथ मंदिर, चाम मंदिर

इन मंदिरों का निर्माण चौथी-चौदहवीं सदी के दौरान वियतनाम में हुआ था। माइ सन जीर्ण-शीर्ण हालत में यहां के प्रसिद्ध शिव मंदिरों की शृंखला है। उसको यूनेस्को की विश्व विरासत स्थलों की सूची में भी शामिल किया गया है।

प्रोजेक्ट : 2010 में इस आशय संबंधी प्रस्ताव बना था। इस साल अक्टूबर में भारत और वियतनाम ने सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। पांच वर्षों की इस परियोजना पर 14.21 करोड़ रुपये की लागत आने की संभावना है। 

66th Ram Praktyotsv: Pitcher of the deity was assigned to adorer

सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन रामजन्मभूमि के वाद में रामजन्मभूमि सेवा समिति पुन: पार्टी बनना चाहती है। यह जानकारी सेवा समिति के महामंत्री रामप्रसाद मिश्र ने दी। उन्होंने बताया कि जिन राजेंद्र सिंह विशारद ने इस वाद में सेवा समिति के प्रतिनिधि की हैसियत से रामलला के सखा का समर्थन किया था, उन्हें इसका हक ही नहीं था। वे यह वाद दाखिल करने वाले गोपाल सिंह विशारद के पुत्र तो थे पर यह वाद गोपाल सिंह विशारद का वैयक्तिक न होकर सेवा समिति के महामंत्री की हैसियत से था और सेवा समिति का सामूहिक निर्णय आज भी इस वाद में किसी का समर्थन न कर स्वयं पार्टी बने रहने का है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि रामजन्मभूमि मामले की प्रथम वादी सेवा समिति ही थी।

66वें राम प्राकट्योत्सव के उपलक्ष्य में रामजन्मभूमि सेवा समिति की ओर से रंगमहल बैरियर पर रामलला के अर्चक अशोकदास को रामजन्मभूमि सेवा समिति की ओर से पूर्वाह्न कलश सौंपा गया। कलश सौंपने वालों में सेवा समिति के महामंत्री रामप्रसाद मिश्र, संयोजक संजय शुक्ल, उपाध्यक्ष रामभद्र पाठक, मंत्री हरिशंकर सिंह, गोपीनाथ शुक्ल, रामप्रसाद यादव आदि रहे। इस मौके पर सेवा समिति के पदाधिकारियों के साथ नगर पालिकाध्यक्ष राधेश्याम गुप्त एवं सभासद ङ्क्षपटू मांझी भी रहे। समिति के पदाधिकारी बुधवार को रामलला के अर्चक से कलश वापस लेकर शोभायात्रा निकालेंगे। वह 22-23 दिसंबर सन् 1949 की अर्धरात्रि थी, जब विवादित रामजन्मभूमि पर रामलला के प्राकट्य का दावा किया गया। प्रति वर्ष इसी तारीख को ध्यान में रखकर रामजन्मभूमि सेवा समिति की ओर से राम प्राकट्योत्सव मनाया जाता है। छह दिसंबर 1992 को ढांचा ध्वंस से पूर्व तक प्राकट्योत्सव का केंद्र रामलला का गर्भगृह होता रहा पर उसके बाद से प्राकट्योत्सव के आयोजन में गतिरोध आ गया। यद्यपि पूर्व की तरह प्राकट्योत्सव के उपलक्ष्य में शोभायात्रा निकलने की परंपरा बदस्तूर है पर गर्भगृह में पूजन की परंपरा संक्रामित हुई। जहां पूर्व में सेवा समिति के पदाधिकारी गर्भगृह में जाकर प्राकट्योत्सव के कलश का पूजन करते रहे, वहीं बाद में समिति के पदाधिकारी तो रोक दिए गए पर कलश गर्भगृह में ले जाया जाता रहा। 17 अक्टूबर 2002 को विहिप की अगली कतार के तीन दर्जन से अधिक नेताओं के जबरन गर्भगृह के करीब तक प्रवेश कर जाने के बाद से अदालती आदेश का अनुपालन सख्त हुआ और उसी के परिणामस्वरूप राम प्राकट्योत्सव का कलश भी गर्भगृह तक पहुंचना प्रतिबंधित हो गया। हालांकि सेवा समिति के महामंत्री ने विश्वास जताया कि उन्होंने रामलला के अर्चक को प्राकट्योत्सव का कलश सौंपा है और वह गर्भगृह में रखा जाएगा।

Now Kapialdhara just resort to Ram

स्कंद पुराण के काशी खंड में कपिलधारा तीर्थ, कुंड और कपिलेश्वर महादेव का उल्लेख आता है। मान्यता है कि भगवान शिव ने काशी बसाई तो पहले यहां ही आए। कपिल मुनि ने यहां साधना की और देवों-ऋषियों के भी चरण पड़े। ऐसा महात्म्य लेकिन दुखद यह कि इतनी बड़ी धरोहर को हम नहीं संजो पाए।

अद्भूत मंदिरों की श्रृंखला- कपिलेश्वर महादेव तो यहां विराजमान हैं ही आठ भुजाओं वाले भगवान गणेश का विग्रह अपनी तरह का अलग और अनूठा है। चंडी देवी और मां दुर्गा भवानी की प्रतिमा के साथ ही तपस्यारत कपिल मुनि भी यहां विराजमान हैं। लोकगायन की बिरहा विधा के पुरोधा माने जाने वाले गुरु पत्तू, गुरु बिहारी व गुरु अक्षयवर का भी मंदिर स्थित है।

पंचकोशी यात्रा का पांचवां व अंतिम पड़ाव कपिलधारा, जिसका जिक्र आते ही हाथ जुड़ जाते हों, अब दशा देख पैरों तले से जमीन खिसक जाएगी। कभी 52 बीघा का परिसर, आज तिनका-तिनकाकर बिखर गया। इन पर अट्टालिकाएं तन गईं और निजी आशियाने बन गए। यात्रियों के ठहरने के लिए बनाई गई एक दर्जन धर्मशालाओं में एक-दो बची भी तो आधी अधूरी शेष पर अतिक्रमणकारियों की नजर गड़ गई। मंदिर का परिसर खंडहर की तरह ढह रहा है। इसे संवारने के नाम पर लंबी चौड़ी कागजी कवायद लेकिन सरकारी पैसा बिना किसी योजना के पानी की तरह बह रहा है।

महातीर्थ का मूल स्वरूप सजोना तो दूर नाक नक्शा भी बिगड़ रहा है। जागरण टीम रविवार को कपिल मुनि और कपिलेश्वर महादेव की इस स्थली की ओर थी। सड़क से शुरू हुई भवनों की कतार के बीच एक बारगी गलत पते पर पहुंच जाने का अंदेशा हो आया। स्थानीयजनों ने जिस रास्ते वहां पहुंचाया उसे खंडहर से अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता। भवनों के मलबे से होकर मुख्य परिसर तक की यात्रा ने पर्वतारोहण का अहसास कराया। हम तो बच गए लेकिन घाट की सीढिय़ों तक जाना है और डीलडौल वाले हुए तो तीर्थ पुरोहितों की चौकियों के बीच जरूर अंड़स जाएंगे। विशाल कुंड जिसकी मान्यता गंगा सागर जल सरीखी लेकिन दशा देख कर अच्छा भला आदमी भी बीमार हो जाए। इसकी सफाई कब हुई इसकी याद तो 28 साल के बांके जवान विजय जायसवाल को भी न रही। एक बार जलनिगम ने कभी जलभराव जरूर कराया अन्यथा पानी तो इंद्रदेव की मेहरबानी पर ही है। मंदिर की सीढिय़ों पर नजर नए पत्थरों पर गड़ गई। बताया गया पंचकोशी पड़ाव जीर्णोद्धार योजना के तहत आवास विकास विभाग ने पत्थरों को बदलवा दिया लेकिन उन्हें कौन समझाए कि थोड़ी सी नादानी से एक जिम्मेदार महकमे ने मूल स्वरूप ही बिसरा दिया।

निचले हिस्से में स्थित मंदिर में श्रीहरि की नवीन संगरमरी प्रतिमा देख माथा ठनका और खुलासा हो गया कि इस धरोहरपुंज से किस तरह बिसर रहा एक एक मनका। पता चला प्रभु की अष्टधातु प्रतिमा डेढ़ दशक पहले चोर उठा ले गए। उपरी हिस्से में कपिलेश्वर महादेव का मंदिर और अन्य विशिष्ट देवालय मन को श्रद्धा से भर देता है। वहीं इसके अगले हिस्से में स्थित पुजारी कक्ष को छोड़ भी दें तो परिसर में अंदर तक खड़े हो गए मकान धरोहरों को लेकर संवेदनहीनता की कहानी बेलाग कह देता है। इससे सटा धर्मशाला के सुंदरीकरण में भी कार्यदायी एजेंसी के नीयत की खोट नजर आती है। इसकी छत से सूरज की रोशनी झांक रही लेकिन फर्श पर पत्थर बिछा दिए गए। जहां दीवारों की ईंटें निकल गई वहां सीमेंट बालू जमा दिए। छत का नजारा देख सीना चाक हो जाएगा। ताश के पत्ते फेंटने व पतंग की डोर ढीलने में मशगूल इन युवाओं को कौन बताएगा कि छत के किनारों व सीढिय़ों पर पीक और लघुशंका के निशान देख कोई श्रद्धालु या पर्यटक क्या छवि लेकर जाएगा।

गली के दूसरे छोर पर धर्मशाला अब व्यक्तिगत आवास का अहसास कराती है। सरायमोहाना की ओर बढ़ते ऐसे ध्वस्त विश्रमालयों का हश्र देख कलेजा हिल जाता है। वापसी में सड़क किनारे खड़ी धर्मशालाओं पर लगे ताले और कुछ में चल रहे खटाल सरकारी अमले की नीयत पर भी बड़ा सवाल छोड़ जाते हैं। 

Sunday, December 21, 2014

During the evening libation was sand setting Shivling

काशी की धरोहर श्रृंखला के महत्वपूर्ण तीर्थधाम व पंचकोशी परिक्रमा का तीसरा पड़ाव स्थल धर्म नगीना व आस्था का केंद्र रामेश्वर धार्मिक महत्ता का स्थल है। जहां देश के कोने-कोने से पहुंचे श्रद्धालु मन्नतें पूरी होने के लिए यहां मत्था टेकते हैं।

रामेश्वर महादेव दरबार धार्मिक आस्था का केंद्र तो है ही, मंदिर का कला शिल्प किसी का भी मन मोह लेने के लिए काफी है। 18वीं शताब्दी की इस खास कलाकृति की विलक्षणता को देखते हुए इसके विस्तार की जरूरत भक्तजनों द्वारा महसूस की जा रही है। अति प्राचीन मंदिरों में एक रामेश्वर महादेव मंदिर अति प्राचीन मंदिरों में से एक है। जहां रावणवध के बाद पाप से मुक्ति की कामना को लेकर भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम वरुणा तट आए थे। उन्होंने एक रात्रि विश्राम के दौरान संध्या तर्पण में एक मु_ी रेत से शिवलिंग की स्थापना की थी। इसी शिवलिंग पर विशाल मंदिर व वरुणा नदी तट पर घाट और बारजा का निर्माण जनकोजी राव सिंधिया ने शुरू कराया। इसे जीवाजी राव सिंधिया ने पूर्ण कराया। ग्वालियर में तराशे गए लाल पत्थरों से मंदिर का निर्माण कराया गया है। सिंधिया परिवार के साथ-साथ किला के निर्माण में अहिल्याबाई ने भी योगदान दिया।

संस्कृति विभाग ने किया था प्रयास- रामेश्वर महादेव मंदिर अपनी प्राचीनता को समेटे हुए है लेकिन प्रकृति की मार से जगह-जगह कमजोर हो रहा है। मंदिर के चारों ओर पत्थरों के ऊपर चारों दिशाओं में पीतल के कंगूरे और पत्थरों के अवशेष पीपल, नीम, वट व जंगली घास का शिकार होकर गिर रहा है। चार वर्ष पूर्व पर्यटन विभाग ने कुछ जीर्णोद्धार कराया लेकिन मंदिर, घाट, किला, बारजा फिर से टूटने लगे। संस्कृति विभाग द्वारा एक वर्ष से मंदिर भवन व बारजा का जीर्णोद्धार कराया जा रहा है लेकिन जरूरत है मंदिर के बाहरी कलाकृतियों एवं कंगूरे, त्रिशूल सहित पत्थरों के नक्काशी के बीच पड़ी दरारों को हटाने और मजबूती देने की।

देव पंचायत लिंग भी स्थापित- रामेश्वर महादेव तीर्थधाम में भगवान श्रीराम, भरत, शत्रुध्न, लक्ष्मण व हनुमान के हाथों शिवलिंग स्थापित हैं। मंदिर परिसर में सोमेश्वर, अग्नेश्वर, धावाभूमिश्वर नहुषेश्वर, भरतेश्वर, लक्ष्मणोश्वर, शस्त्रुध्नेश्वर, देव पंचायत लिंग (16 शिवलिंग एक साथ) स्थापित हैं। वरुणा तट पर असंख्यात शिवलिंग व झाड़ी महादेव शिवलिंग स्थापित है जहां आदिगंगा व वरुणा का जल ताम्र पात्र में बेल पत्र, चंदन, पुष्प, चावल (अक्षत), चढ़ाकर दुग्धविशेष व रुद्राविशेषक की परंपरा है।

रामेश्वर धार्मिक तीर्थ धाम में शैव संप्रदाय के साथ वैष्णव संप्रदाय का अद्भूत मिलन केंद्र है।

ऊरामेश्वर तीर्थ- शिवालय का अद्भुत कला शिल्प नष्ट होने के कगार पर, ग्वालियर के लाल पत्थरों का भी हो रहा क्षरण

मां तुलजा-दुर्गा दरबार रामेश्वर तीर्थ धाम में ही महाराष्ट्र के मराठों की देवी मां तुलजा व साथ में दुर्गा मंदिर है जहां आस्था का संगम मिलता है। जन-जन दुखियारी मत्था टेकते हैं। इन्हें कल्याणदायिनी अंबे नाम से पुकारा जाता है। यहां औरंगजेब मुगल भी शक्ति के प्रभाव के आगे पनाह मान भाग खड़ा हुआ था। ऐसी मान्यता है कि इस धर्म स्थल पर हाजिरी लगाने वाले की मुराद पूरी होती है।

हर दिन चलता भक्तों का पर्व-मंदिर परिसर में आदिकालीन पाषाण युग की दुलर्भ मूर्तियां स्थापित हैं। दत्तात्रय जी, राम-लक्ष्मण जानकी, हनुमान, गणोश, नर्सिग, काल भैरव, सूर्य नारायण, साक्षी विनायक विद्यमान हैं। रामेश्वर महादेव तीर्थधाम में प्रमुख लोटा-भंटा मेला, शिवरात्रि मेला सहित हर दिन पर्व चलता रहता है। जन-जन के कल्याण का केंद्र रामेश्वर महादेव तीर्थ धाम बन गया है। एनामिल पेंट से पत्थरों को क्षति-मोक्ष नगरी काशी में मुक्ति के लिए तारक मंत्र देने वाले रामेश्वर महादेव (देवाधिदेव) के दरबार को संरक्षण की जरूरत है। पुरानी धरोहरों को पर्यटन विभाग, पुरातत्व विभाग, संस्कृति विभाग मिलकर संयुक्त योजनाएं बनाएं। पुरानी शैली को मजबूती व जीवंतता देने का कार्य करें। सबसे बड़ा खतरा जंगली वट, पीपल, नीम, बबूल व अन्य जंगली घासों से है।

Thursday, December 18, 2014

Banke Bihari temple on New Year flocked

नए साल का स्वागत बांके बिहारी के चरणों में करने को देश-दुनिया के हजारों श्रद्धालु हफ्तेभर वृंदावन में डेरा जमाएंगे। दो जनवरी तक लाखों भक्त बांके बिहारी के दर्शन करने को आते रहेंगे। शहर के होटल, गेस्टहाउस लगभग फुल हो चुके हैं।

गुजरे साल की विदाई और नये साल का स्वागत ठा. श्रीबांके बिहारीजी की शरण में करने हर साल लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से वृंदावन आते हैं। ये लोग 25 दिसंबर से जुटने शुरू होंगे। 2 जनवरी तक शहर के मंदिरों में अपने तरीके से नये साल का स्वागत करेंगे। सैलानियों के स्वागत-सत्कार को होटल, गेस्टहाउस और आश्रमों में व्यवस्था शुरू हो चुकी है। कमरों को विशेष तौर पर सजाया संवारा जा रहा है। लगभग दो महीने पहले ही होटल, गेस्टहाउसों में शुरू हुई बुकिंग पूरी होने को है।

वहीं, ठा. श्रीबांके बिहारी मंदिर, प्रेम मंदिर, इस्कॉन मंदिर, राधा बल्लभ मंदिर समेत सैकड़ों प्राचीन मंदिरों में श्रद्धालुओं को सुविधा देने के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं। भारी भीड़ के दौरान श्रद्धालुओं की सहूलियत के लिए प्रवेश और निकास द्वार पर सुरक्षाकर्मियों की संख्या में इजाफा करने के साथ मंदिर के आसपास अतिक्रमण हटाने पर भी जोर दिया जा रहा है। इससे बाजार में भीड़ से व्यवस्था न बिगड़ सके।

Kashi Vishwanath temple priest Sewadar also become

काशी विश्वनाथ मंदिर में अब योग्य सेवादार भी पुजारी बनाए जाएंगे,

उनके साथ ही नि:शुल्क शास्त्रियों को भी अवसर मिलेगा। वाहन चालक व परिचारक भी योग्यता अनुसार इस पद पर प्रोन्नति पाएंगे। परिसर स्थित विग्रहों में पूजन आदि सुचारू बनाए रखने के लिए मंदिर प्रशासन ने शासन को इस संबंध में प्रस्ताव भेजा है।

मंदिर में फिलहाल 51 के सापेक्ष 21 पुजारी ही तैनात हैं। इनमें से नौ पुजारी

तीन पालियों में गर्भगृह में ड्यूटी देते हैं। इससे परिसर स्थित 12 विग्रहों के

लिए एक-एक पुजारी ही बचते हैं। उन्हें मंदिर खुलने से शयन आरती तक यानी भोर के चार बजे से रात 11 बजे तक लगातार ड्यूटी देनी होती है। उनके बीमार होने या किसी कारण से अवकाश पर जाने से विग्रह पूरी तरह खाली रह जाता है। हालांकि ऐसे समय में मंदिर की रीति नीति और पूजन विधि जानने वाले सेवादार इसकी कमान संभालते रहे हैं। पिछले दिनों मंदिर प्रशासन ने पुजारियों की कमी के संबंध में शासन का ध्यान दिलाया। वहां से प्रस्ताव मांगे जाने पर अधिकारियों को ऐसे सेवादारों का भी ध्यान आया। तय किया गया कि मंदिर में तैनात 20 सेवादारों में से पुजारी बनने की योग्यता रखने वालों को भी यह मौका दिया जाएगा। नि:शुल्क सेवा देने वाले शास्त्रियों से भी कमी पूरी की जाएगी, साथ ही वाहन चालक और परिचारकों को भी प्रोन्नत कर यह जिम्मेदारी दी जाएगी। बाद में सेवादार, परिचारक व वाहन चालक समेत रिक्त पदों को खुली भर्ती के तहत भरा जाएगा।

व्यवस्था सुचारू करने का प्रयास -

शासन को भेजे गए प्रस्ताव में गर्भगृह में तीन पालियों में नौ, 12 विग्रहों के

लिए तीन पालियों के लिए 36 और छह रिजर्व पुजारी की मांग की गई है। इन 51 पदों पर रीति नीति से परिचित सेवादारों व अन्य को तैनात करने का भी प्रस्ताव है।

-अजय अवस्थी, मुख्य कार्यपालक अधिकारी, श्रीविश्वनाथ दरबार। 

The model will ferry Dshashwmed Mumbai industrialist

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर दशाश्वमेध घाट को मॉडल घाट के

तौर पर विकसित करने व सुंदर बनाने की जिम्मेदारी मुंबई के उद्योगपतियों को

सौंपी गई है। यह काम उद्योगपति अजय पीरामल की द ब्रज फाउंडेशन के माध्यम से

किया जाएगा। इसके लिए गुरुवार को मुंबई व गुजरात के इंजीनियरों का दल दशाश्वमेध घाट का निरीक्षण करने भी पहुंचा।

दल में आर्किटेक्ट सुजग मोहंती, पीवीके रामेश्वर, जल विशेषज्ञ सुधीर जैन व

प्रोजेक्ट कोआर्डिनेटर गौरव गोला शामिल थे। बताते हैं कि एक सप्ताह में डीपीआर

बन जाएगा, इसके बाद जरूरी कोरम पूरा कर फरवरी माह से कार्य शुरू होगा। संस्था

से जुड़े पदाधिकारी विनीत नारायण ने बताया कि संस्था द्वारा वृंदावन में

सुंदरीकरण का कार्य किया गया है। अभी तक संस्था, भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े

धरोहरों को सुंदर बनाने का कार्य करती रही है। इस दौरान वृंदावन का ब्रह्मकुंड,

सेवा कुंज व गोवर्धन पर्वत की तलहटी में रुद्रकुंड का जीर्णोद्धार किया गया है।

पहली बार गंगा किनारे काशी के दशाश्वमेध घाट को सुंदर बनाकर माडल के तौर पर पेश करना है। बताया कि संस्था द्वारा सुंदरीकरण कार्य खुद के बजट से कराया जाता है,द ब्रज फाउंडेशन ने ब्रज क्षेत्र के पर्यटन विकास का पहली बार संपूर्ण मास्टर

प्लान उप्र सरकार के लिए वर्ष 2008 में बनाया था, जिसपर अब कार्य हो रहा है। आओ सजाएं कान्हा का ब्रज-सीरियल में यू-ट्यूब पर संस्था के प्रयासों की झलक देखी जा सकती है।

घाट का निरीक्षण करने के बाद सीडीओ विशाख जी के नेतृत्व में प्रशासनिक

अधिकारियों संग बैठक की। इसमें शांतिलाल जैन, राकेश मिड्ढा, बाबू महाराज, मनीष

आदि उपस्थित थे।

पीएम मोदी को दिखाएंगे योजना -

डीपीआर बनने के बाद संस्था द्वारा इसे पीएम मोदी के समक्ष भी रखा जाएगा, इसके

बाद इस नक्शे को हाईकोर्ट में भी दाखिल कर अनुमति ली जाएगी। उम्मीद जाहिर की कि कोर्ट भी अनुमति दे देगा क्योंकि कोई नया निर्माण नहीं होना है।

नव निर्माण नहीं, जीर्णोद्धार -

संस्था के पदाधिकारियों ने बताया कि नव निर्माण नहीं होगा, पुराने व ऐतिहासिक

धरोहरों का जीर्णोद्धार होगा। इस दौरान आधुनिक तकनीक इस्तेमाल कर निर्माण के

मूल स्वरूप को बरकरार रखा जाएगा। घाट व निर्माण जिस पत्थर से बना है,

जीर्णोद्धार भी उसी पत्थर से होगा, सीढिय़ों व घाटों का पत्थर भी बदले जाएंगे।

घाट को बेहद आकर्षक रूप दिया जाएगा। डस्टबिन, हरियाली, वायरिंग, रंग-रोगन आदि कार्य प्रदेश सरकार के शासनादेश अनुसार होगा। 

Wednesday, December 17, 2014

Kashi Vishwanath temple priest Sewadar also become

काशी विश्वनाथ मंदिर में अब योग्य सेवादार भी पुजारी बनाए जाएंगे,

उनके साथ ही नि:शुल्क शास्त्रियों को भी अवसर मिलेगा। वाहन चालक व परिचारक भी योग्यता अनुसार इस पद पर प्रोन्नति पाएंगे। परिसर स्थित विग्रहों में पूजन आदि सुचारू बनाए रखने के लिए मंदिर प्रशासन ने शासन को इस संबंध में प्रस्ताव भेजा है।

मंदिर में फिलहाल 51 के सापेक्ष 21 पुजारी ही तैनात हैं। इनमें से नौ पुजारी

तीन पालियों में गर्भगृह में ड्यूटी देते हैं। इससे परिसर स्थित 12 विग्रहों के

लिए एक-एक पुजारी ही बचते हैं। उन्हें मंदिर खुलने से शयन आरती तक यानी भोर के चार बजे से रात 11 बजे तक लगातार ड्यूटी देनी होती है। उनके बीमार होने या किसी कारण से अवकाश पर जाने से विग्रह पूरी तरह खाली रह जाता है। हालांकि ऐसे समय में मंदिर की रीति नीति और पूजन विधि जानने वाले सेवादार इसकी कमान संभालते रहे हैं। पिछले दिनों मंदिर प्रशासन ने पुजारियों की कमी के संबंध में शासन का ध्यान दिलाया। वहां से प्रस्ताव मांगे जाने पर अधिकारियों को ऐसे सेवादारों का भी ध्यान आया। तय किया गया कि मंदिर में तैनात 20 सेवादारों में से पुजारी बनने की योग्यता रखने वालों को भी यह मौका दिया जाएगा। नि:शुल्क सेवा देने वाले शास्त्रियों से भी कमी पूरी की जाएगी, साथ ही वाहन चालक और परिचारकों को भी प्रोन्नत कर यह जिम्मेदारी दी जाएगी। बाद में सेवादार, परिचारक व वाहन चालक समेत रिक्त पदों को खुली भर्ती के तहत भरा जाएगा।

व्यवस्था सुचारू करने का प्रयास -

शासन को भेजे गए प्रस्ताव में गर्भगृह में तीन पालियों में नौ, 12 विग्रहों के

लिए तीन पालियों के लिए 36 और छह रिजर्व पुजारी की मांग की गई है। इन 51 पदों पर रीति नीति से परिचित सेवादारों व अन्य को तैनात करने का भी प्रस्ताव है।

-अजय अवस्थी, मुख्य कार्यपालक अधिकारी, श्रीविश्वनाथ दरबार। 

Has the effect of freezing on the Banke Bihari

शीत लहर से भगवान बांके बिहारी को बचाने के लिए पूरे इंतजाम हैं। चांदी की अंगीठी में आग जलाई जा रही है और सनिल के गर्म वस्त्र उन्हें पहनाए जा रहे हैं। इसके साथ ही भोग में भी ठंड का पूरा ध्यान है। सूखे मेवे, केसर युक्त हलवा और गर्म दूध का भोग लगाया जा रहा है, ताकि बिहारी जी को सर्दी न लग जाए।

बदलते मौसम के साथ ठाकुर बांके बिहारीजी के पहनावे, खान-पान और दर्शन-आरती के समय में बदलाव हो चुका है। गर्मी के दिनों में जहां शीतल पेय पदार्थों का भोग में प्रयोग होता है, फूल बंगले सजाये जाते हैं। वहीं शरद ऋतु आते ही उन्हें गर्म तासीर वाली खाद्य सामग्री का प्रसाद लगाया जाता है।

चार पहर परोसा जा रहा भोग- ठा. बांके बिहारीजी को सुबह श्रृंगार आरती के दौरान बालभोग, दोपहर को राजभोग, शाम को मंदिर के पट खुलने पर उत्थापन भोग और रात को शयन भोग परोसे जाते हैं। इसके अलावा रात को मंदिर के पट बंद होने के दौरान केसर दूध और पान का बीड़ा भी परोसा जाता है। सर्दी के दिनों में भोग में काजू, बादाम, चिलगोजा, पिस्ता समेत पंचमेवा प्रयोग में लायी जा रही है । वहीं दूध, खीर और हलवा में केसर की मात्र बढ़ा दी गई है।

हिना इत्र का हो रहा प्रयोग- बांके बिहारीजी को स्नान और श्रृंगार में हिना इत्र का प्रयोग हो रहा है। सर्द मौसम में हिना इत्र से गर्माहट देने की कोशिश की जा रही है।

सनिल की रजाई, गद्दा, तकिया- दिनभर भक्तों को दर्शन देने के बाद रात को भगवान को सुख सेज पर शनील की रजाई, गद्दा व तकिया पर ही आराम करवाया जा रहा है, जिससे ठाकुरजी को सर्दी से बचाया जा सके।

भक्तों के लिए बिछी कारपेट- मंदिर में अपने आराध्य के दर्शन करने पहुंच रहे भक्तों को सर्दी से राहत देने को प्रबंधन ने मंदिर प्रांगण में कारपेट बिछाया है।

Monday, December 15, 2014

As the woman is a Hanuman temple worship

आपको सुनकर आश्चर्य लगेगा, लेकिन दुनिया में एक मंदिर ऐसा भी है जहां हनुमान पुरुष नहीं बल्कि स्त्री के वेश में नजर आते हैं। यह प्राचीन मंदिर बिलासपुर के पास है। हनुमानजी के स्त्री वेश में आने की यह कथा कोई सौ दौ सौ नहीं बल्कि दस हजार साल पुरानी मानी जाती है।

बिलासपुर से 25 कि. मी. दूर एक स्थान है रतनपुर। इसे महामाया नगरी भी कहते हैं। यह देवस्थान पूरे भारत में सबसे अलग है। इसकी मुख्य वजह मां महामाया देवी और गिरजाबंध में स्थित हनुमानजी का मंदिर है। खास बात यह है कि विश्व में हनुमान जी का यह अकेला ऐसा मंदिर है जहां हनुमान नारी स्वरूप में हैं। इस दरबार से कोई निराश नहीं लौटता। भक्तों की मनोकामना अवश्य पूरी होती है।

रतनपुर के राजा पृथ्वी देवजू ने करवाया था निर्माण-

पौराणिक और एतिहासिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण इस देवस्थान के बारे में ऐसी मान्यता है कि यह लगभग दस हजार वर्ष पुराना है। एक दिन रतनपुर के राजा पृथ्वी देवजू क़ा ध्यान अपनी शारीरिक अस्वस्थता की ओर गया। वे विचार करने लगे-मैं इतना बडा राजा हूं मगर किसी काम का नहीं। मुझे कोढ़ का रोग हो गया है। अनेक इलाज करवाया पर कोई दवा काम नहीं आई। इस रोग के रहते न मैं किसी को स्पर्श कर सकता हूं। न ही किसी के साथ रमण कर सकता हूं, इस त्रास भरे जीवन से मर जाना अच्छा है। सोचते सोचते राजा को नींद आ गयी।

राजा ने सपने में देखा कि संकटमोचन हनुमान जी उनके सामने हैं, भेष देवी सा है, पर देवी है नहीं, लंगूर हैं पर पूंछ नहीं जिनके एक हाथ में लड्डू से भरी थाली है तो दूसरे हाथ में राम मुद्रा अंकित है। कानों में भव्य कुंडल हैं। माथे पर सुंदर मुकुट माला। अष्ट सिंगार से युक्त हनुमान जी की दिव्य मंगलमयी मूर्ति ने राजा से एक बात कही। हनुमानजी ने राजा से कहा कि हे राजन् मैं तेरी भक्ति से प्रसन्न हूं। तुम्हारा कष्ट अवश्य दूर होगा। तू मंदिर का निर्माण करवा कर उसमें मुझे बैठा। मंदिर के पीछे तालाब खुदवाकर उसमें स्नान कर और मेरी विधिवत् पूजा कर। इससे तुम्हारे शरीर में हुए कोढ़ का नाश हो जाएगा। इसके बाद राजा ने विद्धानों से सलाह ली। उन्होंने राजा को मंदिर बनाने की सलाह दी। राजा ने गिरजाबन्ध में मंदिर बनवाया। जब मंदिर पूरा हुआ तो राजा ने सोचा मूर्ति कहां से लायी जाए। एक रात स्वप्न में फिर हनुमान जी आए और कहा मां महामाया के कुण्ड में मेरी मूर्ति रखी हुई है। तू कुण्ड से उसी मूर्ति को यहां लाकर मंदिर में स्थापित करवा। दूसरे दिन राजा अपने परिजनों और पुरोहितों को साथ देवी महामाया के दरबार में गए। वहां राजा व उनके साथ गए लोगों ने कुण्ड में मूर्ति की तलाश की पर उन्हें मूर्ति नहीं मिली। हताश हो राजा महल में लौट आए।

संध्या आरती पूजन कर विश्राम करने लगे। मन बैचेन हनुमान जी के दर्शन देकर कुण्ड से मूर्ति लाकर मंदिर में स्थापित करने को कहा है। और कुण्ड में मूर्ति मिली नहीं इसी उधेड़ बुन में राजा को नींद आ गई। नींद का झोंका आते ही सपने में फिर हनुमान जी आ गए और करने लगे- राजा तू हताश न हो मैं वहीं हूं तूने ठीक से तलाश नहीं किया। जाकर वहां घाट में देखो जहां लोग पानी लेते हैं, स्नान करते हैं उसी में मेरी मूर्ति पड़ी हुई है। राजा ने दूसरे दिन जाकर देखा तो सचमुच वह अदभुत मूर्ति उनको घाट में मिल गई। यह वही मूर्ति थी जिसे राजा ने स्वप्न में देखा था। जिसके अंग प्रत्यंग से तेज पुंज की छटा निकल रही थी। अष्ट सिंगार से युक्त मूर्ति के बायें कंधे पर श्री राम लला और दायें पर अनुज लक्ष्मण के स्वरूप विराजमान, दोनों पैरों में निशाचरों दो दबाये हुए। इस अदभुत मूर्ति को देखकर राजा मन ही मन बड़े प्रसन्न हुए। फिर विधिविधान पूर्वक मूर्ति को मंदिर में लाकर प्रतिष्ठित कर दी और मंदिर के पीछे तालाब खुदवाया जिसका नाम गिरजाबंद रख दिया। मनवांछित फल पाकर राजा ने हनुमान जी से वरदान मांगा कि हे प्रभु, जो यहां दर्शन करने को आये उसका सभी मनोरथ सफल हो। इस तरह राजा प्रृथ्वी देवजू द्वारा बनवाया यह मंदिर भक्तों के कष्ट निवारण का एसा केंद्र हो गया, जहां के प्रति ये आम धारणा है कि हनुमान जी का यह स्वरूप राजा के ही नहीं प्रजा के कष्ट भी दूर करने के लिए स्वयं हनुमानी महाराज ने राजा को प्रेरित करके बनवाया है।

दक्षिण मुखी हनुमान जी की मूर्ति में पाताल लोक का चित्रण हैं। रावण के पुत्र अहिरावण का संहार करते हुए उनके बाएं पैर के नीचे अहिरावण और दाये पैर के नीचे कसाई दबा है। हनुमान जी के कंधों पर भगवान राम और लक्ष्मण को बैठाया है। एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में लड्डू से भरी थाली है।

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 84 किलोमीटर दूर रमई पाट में भी एक ऐसी ही हनुमान प्रतिमा है।