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Thursday, December 25, 2014

Why can not the celebrated Festival

खिचरी स्वाद अरुसि रही रसना, दृग अरुझो पिय रूप गौर तन।

दुहुं विधि आतुर रसिक-पुरंदर, सजनी समुझि निरखि प्रमुदित मन।।

गान सुनत श्रवननि नव-नव रुचि, परस होत रोमांचित अंगन।

वृंदावन हित रूप जाउं बलि, अस कछु रस बस निपट घनी-घानी।।

शीत ऋतु में साधक अपने आराध्य राधाबल्लभ लाल को पंचमेवा युक्त खिचड़ी प्रसाद परोसकर कुछ इन पंक्तियों का गायन करते हैं, तो मंदिर में भक्ति और आस्था का एहसास ही निराला दिखने लगता है। भोर होते ही मंगला आरती के दौरान औलाई वेश में दर्शन देते ठाकुरजी को देख खुद ही ठंड का एहसास होने लगता है, तो ठाकुरजी को गर्म खिचड़ी उसमें तैरता घी और पंचमेवा का प्रसाद गर्माहट देने के लिए परोसा जाता है।

हेमंत ऋतु में खिचड़ी उत्सव के आयोजन की परंपरा राधाबल्लभीय संप्रदाय में काफी प्राचीन है। 18वीं शताब्दी में संत-भक्तों द्वारा रचित साहित्य से यहां की इस परंपरा के प्राचीन संदर्भ उद्घाटित होते देखे जा सकते हैं। कालांतर में इस मनोरथ को केंद्र में रखकर अलग-अलग रचनाकारों ने विपुल साहित्य रचा, जिसकी पाण्डुलिपियां न केवल ब्रजमंडल बल्कि भारत के हस्तलिखित ग्रंथागारों में भी मिलती हैं।

मंदिर सेवायत हित राधेशलाल गोस्वामी एवं मोहित मराल गोस्वामी ने बताया कि ठा. राधाबल्लभ मंदिर में पौष मास के शुक्ल पक्ष की दौज से माघ मास की एकदशी प्रभात तक ठाकुरजी को नित्य सुबह खिचड़ी प्रसाद लगाया जाएगा। जो 21 जनवरी तक चलेगा। खिचड़ी महोत्सव ठाकुरजी का प्राचीनतम एवं प्रिय उत्सव है।

खिचड़ी के साथ इनका भी लगता प्रसाद- ठाकुरजी को परोसे जाने वाली खिचड़ी में दाल-चावल के अनुपात का घी, काजू, बाजाम, जायफल, जावित्री, केसर, चिरौंजी समेत पंचमेवा और खीरसा की कुलिया, श्रीखंड, अचार, ग्वार की फरी, मुरब्बा, सेम का अचार, आलू की सब्जी, राई आलू भी शामिल है। इसमें हींग, लालमिर्च का प्रयोग नहीं होता।

Monday, December 22, 2014

Lddoogopal 'look at winter

जब न्यूनतम पारा सात डिग्री पर घूम रहा हो तो आम ब्रजवासी के साथ उनके प्यारे ‘लड्डू गोपाल’ को भी शीत के प्रभाव से परेशानी होने लगी है। ऐसे में ब्रजवासी ठाकुर को रजाई-गद्दे, तकिया और ऊनी पोशाक पहनाकर प्रसन्न रखने का प्रयास कर रहे हैं। इतना ही नहीं लाला को शीत से बचाने को भाव सेवा के तहत केसर, चिरौंजी, बादाम व पिस्तायुक्त गर्म दूध शयन भोग में परोसा जा रहा है।

शहर में प्रमुख मंदिरों, कुंज-निकुंज और घरों में विराजे लड्डूगोपाल को गर्म पोशाक और ऊनी वस्त्र में एहतियात के साथ रखा जा रहा है। उन्हें रजाई-गद्दे और तकिया में शयन कराया जा रहा। ब्रजवासी घरों में विराजे ठाकुरजी को नित नई ऊनी पोशाक धारण कराते हैं। 

Sunday, December 21, 2014

Grand devotees rotation inundation

अमावस पर कड़ी सर्दी के बावजूद श्रद्धालुओं ने श्रीधाम में आकर बड़ी संख्या में पंचकोसी परिक्रमा लगाई। जबकि साल के अंतिम दिनों में बांके बिहारी समेत अन्य मंदिरों के दर्शन को भीड़ का हुजूम टूटता रहा।

इस दौरान अनेक स्थानों पर घंटो जाम के हालात बने रहे। पुलिस जाम हटाने को मशक्कत करती देखी गई।

सुबह दस बजे- विद्यापीठ चौराहे पर दो पुलिस कर्मी एक ओर खड़े थे जबकि भीड़ चौराहे के चारों दिखाई दे रही थी। कारें और दुपहिया वाहन यहां रेंगे-रेंग कर निकल रहे थे जबकि श्रद्धालु कारों और वाहनों के बीच से निकल कर सड़क पार करते रहे। यहां जाम के हालात दोपहर बारह बजे तक बने रहे।

ग्यारह बजे-ग्यारह बजे के करीब अटल्ला चौराहे की स्थिति सोचनीय बनी हुई थी। पुलिस जाम हटाने को मशक्कत कर रही थी। जबकि वाहनों का रेला टूटने का नाम नहीं ले रहा था। आसपास के दुकानदारों ने बताया कि जाम सुबह नौ बजे से लगा है। इस दौरान मथुरा और मांट रोड से आने वाले वाहनों का सिलसिला जारी था। सड़कों पर कारों की कतारें- सुबह साढ़ दस बजे रमणरेती मार्ग पर फोगला आश्रम, होटल बसेरा और हरिनिकुंज चौराहे के आसपास, बन महाराज कॉलेज, इस्कॉन मंदिर के निकट दर्जनों कारें सड़क किनारे खड़ी थीं। इनमें बैठे चालकों ने बताया कि जाम के कारण यहां पर कारें खड़ी करनी पड़ीं। जबकि कार स्वामी पैदल बांके बिहारी मंदिर में दर्शन को गये हैं।वृंदावन: अमावस पर कड़ी सर्दी के बावजूद श्रद्धालुओं ने श्रीधाम में आकर बड़ी संख्या में पंचकोसी परिक्रमा लगाई। जबकि साल के अंतिम दिनों में बांके बिहारी समेत अन्य मंदिरों के दर्शन को भीड़ का हुजूम टूटता रहा। इस दौरान अनेक स्थानों पर घंटो जाम के हालात बने रहे। पुलिस जाम हटाने को मशक्कत करती देखी गई।

Saturday, December 20, 2014

Cold wave had enormous faith

भले ही हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा हो, सड़क पर नंगे पांव चलने पर कंकड़ों की चुभन का भी उन्हें एहसास नहीं हो रहा था, कारण यह कि यमुना स्नान के बाद सीधे पंचकोसी परिक्रमा शुरू कर दी थी।

पौष माह की कड़कड़ाती ठंड और पिछले तीन दिनों से चल रही शीतलहर में हजारों आस्थावान पुरुष और महिलाओं के शरीर शीत से शुन्न से हो रहे थे लेकिन प्रभु बांके बिहारी के प्रति आस्था में कोई कमी नहीं दिखाई दी।

ऐसा नहीं कि इन्हें ठंड नहीं लग रही थी, लेकिन आस्थावानों में इसकी कतई परवाह नहीं दिखी। दोपहर ग्यारह बजे के करीब जगन्नाथ घाट के निकट कुछ महिलाएं सड़क किनारे जल रही फूंस के अलाव को देखकर रुक गयीं। कुछ ने कहा कि हाथ सेंक लें, और कुछ ही पलों में झुंड आग के चारों ओर फैल गया।

Source: Weekly Horoscope 2015

Thursday, December 18, 2014

Banke Bihari temple on New Year flocked

नए साल का स्वागत बांके बिहारी के चरणों में करने को देश-दुनिया के हजारों श्रद्धालु हफ्तेभर वृंदावन में डेरा जमाएंगे। दो जनवरी तक लाखों भक्त बांके बिहारी के दर्शन करने को आते रहेंगे। शहर के होटल, गेस्टहाउस लगभग फुल हो चुके हैं।

गुजरे साल की विदाई और नये साल का स्वागत ठा. श्रीबांके बिहारीजी की शरण में करने हर साल लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से वृंदावन आते हैं। ये लोग 25 दिसंबर से जुटने शुरू होंगे। 2 जनवरी तक शहर के मंदिरों में अपने तरीके से नये साल का स्वागत करेंगे। सैलानियों के स्वागत-सत्कार को होटल, गेस्टहाउस और आश्रमों में व्यवस्था शुरू हो चुकी है। कमरों को विशेष तौर पर सजाया संवारा जा रहा है। लगभग दो महीने पहले ही होटल, गेस्टहाउसों में शुरू हुई बुकिंग पूरी होने को है।

वहीं, ठा. श्रीबांके बिहारी मंदिर, प्रेम मंदिर, इस्कॉन मंदिर, राधा बल्लभ मंदिर समेत सैकड़ों प्राचीन मंदिरों में श्रद्धालुओं को सुविधा देने के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं। भारी भीड़ के दौरान श्रद्धालुओं की सहूलियत के लिए प्रवेश और निकास द्वार पर सुरक्षाकर्मियों की संख्या में इजाफा करने के साथ मंदिर के आसपास अतिक्रमण हटाने पर भी जोर दिया जा रहा है। इससे बाजार में भीड़ से व्यवस्था न बिगड़ सके।

Wednesday, December 17, 2014

Has the effect of freezing on the Banke Bihari

शीत लहर से भगवान बांके बिहारी को बचाने के लिए पूरे इंतजाम हैं। चांदी की अंगीठी में आग जलाई जा रही है और सनिल के गर्म वस्त्र उन्हें पहनाए जा रहे हैं। इसके साथ ही भोग में भी ठंड का पूरा ध्यान है। सूखे मेवे, केसर युक्त हलवा और गर्म दूध का भोग लगाया जा रहा है, ताकि बिहारी जी को सर्दी न लग जाए।

बदलते मौसम के साथ ठाकुर बांके बिहारीजी के पहनावे, खान-पान और दर्शन-आरती के समय में बदलाव हो चुका है। गर्मी के दिनों में जहां शीतल पेय पदार्थों का भोग में प्रयोग होता है, फूल बंगले सजाये जाते हैं। वहीं शरद ऋतु आते ही उन्हें गर्म तासीर वाली खाद्य सामग्री का प्रसाद लगाया जाता है।

चार पहर परोसा जा रहा भोग- ठा. बांके बिहारीजी को सुबह श्रृंगार आरती के दौरान बालभोग, दोपहर को राजभोग, शाम को मंदिर के पट खुलने पर उत्थापन भोग और रात को शयन भोग परोसे जाते हैं। इसके अलावा रात को मंदिर के पट बंद होने के दौरान केसर दूध और पान का बीड़ा भी परोसा जाता है। सर्दी के दिनों में भोग में काजू, बादाम, चिलगोजा, पिस्ता समेत पंचमेवा प्रयोग में लायी जा रही है । वहीं दूध, खीर और हलवा में केसर की मात्र बढ़ा दी गई है।

हिना इत्र का हो रहा प्रयोग- बांके बिहारीजी को स्नान और श्रृंगार में हिना इत्र का प्रयोग हो रहा है। सर्द मौसम में हिना इत्र से गर्माहट देने की कोशिश की जा रही है।

सनिल की रजाई, गद्दा, तकिया- दिनभर भक्तों को दर्शन देने के बाद रात को भगवान को सुख सेज पर शनील की रजाई, गद्दा व तकिया पर ही आराम करवाया जा रहा है, जिससे ठाकुरजी को सर्दी से बचाया जा सके।

भक्तों के लिए बिछी कारपेट- मंदिर में अपने आराध्य के दर्शन करने पहुंच रहे भक्तों को सर्दी से राहत देने को प्रबंधन ने मंदिर प्रांगण में कारपेट बिछाया है।

Tuesday, December 9, 2014

Mathura was 65 years Nirankari Mission

शांति के संदेशवाहक निरंकारी बाबा हरदेव सिंह का जन्म 1954 में बाबा गुरवचन सिंह एवं राजमाता कुलवंत कौर के पुत्र के रूप में हुआ था। उनको बचपन से ही आध्यात्मिक वातावरण मिला। 27 अप्रैल 1980 से बाबा हरदेव सिंह सतगुरु के रूप में सबका मार्ग दर्शन कर रहे हैं। ब्रज क्षेत्र में संत निरंकारी मिशन की लहर लाने का श्रेय माता राम कौर को जाता है।

उन्होंने सर्वप्रथम अपने परिवार को गुरु चरणों से जोड़ा। 65 वर्ष पूर्व होलीगेट स्थित एक छोटे से घर में निरंकारी सत्संग शुरू हुआ। संत निरंकारी मंडल के मीडिया प्रभारी किशोर स्वर्ण ने बताया कि 60 के दशक में कृष्णानगर में संत निरंकारी सत्संग भवन का निर्माण हुआ। इसके बाद मुख्य सत्संग भवन का उद्घाटन नबादा में अप्रैल 2005 में हुआ।

जैसे-जैसे गुरु और भक्त के मिलन की घड़ी नजदीक आ रही है, निरंकारी भक्तों का उत्साह दुगना होता जा रहा है। भारतीय संस्कृति में गुरु को भगवान से भी बड़ा दर्जा प्राप्त है। सभी भक्त गुरुभक्ति की डोर में बंधकर रविवार से धौली-प्याऊ स्थित रेलवे इंस्टीट्यूट पर होने वाले निरंकारी संत समागम की तैयारियों में जुटे हैं।

निरंकारी भक्त अपने सद्गुरु बाबा हरदेव सिंह महाराज के दर्शन को जुटने लगे हैं। राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, यूपी से आ रहे भक्तों में गजब का उत्साह है। गुरु भक्ति की हिलौरें समुद्र से भी गहरी हैं और आस्था का विश्वास आसमान को छू रहा है। समागम की तैयारियां तीन दिन पहले विधि-विधान से शुरू हुईं। सोमवार को दिनभर कार्यकर्ता सत्संग की तैयारियों में जुटे रहे। मंच के निर्माण से लेकर झाड़ लगाने का कार्य भक्त ही कर रहे थे। समागम मंगलवार को सुबह दस बजे शुरू होगा। इसमें प्रवचन, संकीर्तन आदि के कार्यक्रम होंगे। दोपहर एक बजे से बाबा हरदेव सिंह के प्रवचन होंगे।

Radha Krishna in Vrindavan millions of Ó business

भगवान श्रीकृष्ण एक, उनके नाम अनेक। वह किसी के कान्हा तो किसी के गिरधारी, श्रीकृष्ण, छलिया, मनमोहना और बांके बिहारी हैं। कोई कन्हाई के नाम पर तो कोई कृष्ण और श्री बांके बिहारी मानकर उनकी सेवा-पूजा करता है। लेकिन राधा-श्याम के इन चित्रों के संसार से लाखों का करोबार यहां हो रहा है।

वृंदावन में राधा-श्याम, ठाकुरजी और अन्य देवी-देवताओं की तस्वीरों की सैकड़ो दुकानें हैं। यहां तस्वीर और मूर्तियों की बिक्री का प्रति माह लाखों का कारोबार है। पद्मश्री कृष्णा चित्रकार, द्वारिका चित्रकार, दंपत किशोर, नित्य गोपाल शर्मा, आदि वृंदावन के चित्रकारों की पहचान देश में प्रसिद्धि ठाकुर जी की तस्वीरें बनाने से ही है। इन नगरी की दुकानों पर बिकने वाली तस्वीरें यह साबित करती हैं कि वृंदावन आने वाले देश-दुनिया के श्रद्धालुओं में राधा-श्याम के दीवाने अधिक हैं।

यदि किसी प्रतिष्ठान पर देवी-देवताओं की सौ तस्वीरें बिकती हैं तो उनमें तकरीबन 70 राधा-श्याम और ठा. बांके बिहारी की होती हैं। बनखंडी क्षेत्र में तस्वीरों के विक्रेता उमेश के अनुसार, श्रीराधा-कृष्ण, बांके बिहारी की तस्वीरों की डिमांड रहती है। दूसरे विक्रेता श्याम शर्मा भी इसी की पुष्टि करते हैं।

बोले पद्मश्री कृष्णा चित्रकार- पद्मश्री प्राप्त विख्यात चित्रकार कृष्ण कन्हाई कहते हैं कि भगवान कृष्ण और श्रीराधाजी के चित्र बनाने से भक्ति भाव का उदय होता है। ठाकुरजी की पेंटिंग बनाते समय वह जैसे खो से जाते हैं।

सबसे अधिक होती बांके बिहारी की तस्वीरों की बिक्री-

भगवान की प्रेरणा से बनती छवि-ख्याति प्राप्त द्वारिका चित्रकार कहते हैं कि चित्र बनाते-बनाते उन्हें अहसास होता कि वे जैसे ठाकुरजी के निकट होते जा रहे। उनके द्वारा बांके बिहारी की बनाई छवि एक लाख से ऊपर बिक चुकी हैं।

Monday, December 8, 2014

Maharaj took Dauji Hot Couture

बृज के राजा दाऊजी महाराज के 434 वे प्राकट्योत्सव पर उन्हें स्नान कराने के बाद श्रंगार कर शीतकालीन गरम वस्त्र धारण करा दिए गए। इस मौके पर हजारों श्रद्धालु दर्शनों को पहुंचे।

इस अवसर पर आकर्षक ढंग से सजे दाऊजी मंदिर में ही शहनाई वादन हुआ। दाऊजी महाराज का वैदिक मंत्रोच्चारण के मध्य अभिषेक किया गया और श्रृंगार में हीरे जवाहरात धारण कराये गये। 21 ब्राहृमणों ने बलभद्र सहस्त्रनाम का पाठ व यज्ञ किया। मंदिर में दिन भर दाऊजी महाराज और माता रेवती के जयकारे गूंजते रहे।

श्रृद्धालु बृज के राजा बलदाऊ के दर्शन कर निहाल हो रहे थे। सुबह से देर रात्रि तक मंदिर में दर्शनार्थियों का आने का क्रम लगा रहा। सौर सवांरि उढ़ाय, प्यारी नेक सौर संवार, सिर तो खस, पावन तर आई, शीत सतावे आए के पद के साथ रात्रि में दाऊजी महाराज और रेवती मइया को शीतकालीन वस्त्र धारण कराये गये। मंदिर में समाज गायन, आरती में भी श्रृद्धालुओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। मंदिर रिसीवर आरके पाण्डेय ने बताया कि यह मेला लगभग पांच सौ वर्ष पुराना है।


Kanha Ikram dress made from 37 years, come from many countries Order

वृंदावन में बनायी जाने वाली कान्हा की पोशाक के दीवाने पूरी दुनिया में हंै। हर साल करोड़ों रुपये का इसका कारोबार है। यह कारोबार यहां कुटीर उद्योग बन चुका है। इन दिनों ठंड के मौसम में ठाकुर जी के लिए रजाई-गद्दे आदि भी बनाए जाते हैं। हिंदू परिवार तो इस कारोबार से जुड़ा ही है, अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी कान्हा की पोशाक बनाते हैं।

धर्मनगरी में भले ही मुस्लिम समाज के लोगों की संख्या कम हो, लेकिन ठाकुरजी को सजाने-संवारने का हुनर मुस्लिम समाज के कारीगरों में भी कम नहीं है। पोशाक बनाने वाली गृहणी योगमाया का कहना है कि उनके परिवार के कई लोग इस कारोबार में लगे हुए हैं। ठाकुरजी की पोशाक बनाने के लिये उन्हें मंदिरों से आर्डर मिलते हैं। इन दिनों तो ठाकुरजी के लिये रजाई-गद्दे और छोटे-छोटे तकिये भी बनाये जा रहे हैं। बताया कि पोशाक बनाने में नगीना, मोती, जापानी पोत, चाइनीज डोरी, कौरा दबका, सितारा और रेशम आदि का प्रयोग होता है। रजाई-गद्दे बनाने में सूती कपड़े का अस्तर और ऊपर से शमीम कपड़े का इस्तेमाल होता है।

मुस्लिम भी जुड़े हैं कारोबार से -गौरानगर निवासी पोशाक कारोबारी बशीर, किशोरपुरा निवासी रफीक और मुन्ना ने बताया कि ठाकुरजी की पोशाक व मुकुट-श्रंगार के आयटम तैयार करने से उन्हें रोजगार मिला है। यह उनके ऊपर ठाकुर जी की कृपा का परिणाम है।

पोशाक कारोबारी इकराम बताते हैं कि इस्कॉन मंदिर के जरिए उन्हें पोशाक बनाने का आर्डर अमेरिका से लेकर ऑस्टेलिया, सिंगापुर, मलेशिया, साउथ अफ्रीका, ब्राजील, न्यूजीलैंड आदि देशों से मिलते रहते हैं। अमेरिका में न्यू वृंदावन के नाम से बड़ा मंदिर है। इस मंदिर के प्रबंधन से जुड़े लोग भी पोशाक-मुकुट के आर्डर देते हैं।

मथुरा दरवाजा मार्ग स्थित एक धर्मस्थल के एक कमरे में अल्पसंख्यक समुदाय के इकराम कुरैशी ठाकुरजी की पोशाक 15 साल की उम्र से बना रहे हैं। 37 साल हो गये उनको यह कारोबार करते-करते। इस कारोबार में अब वह अपने तीन पुत्रों आशिक, जावेद और साजिद का भी मार्गदर्शन कर रहे हैं। 

Saturday, December 6, 2014

Why would God holds winter wear today

ठंड का अहसास ब्रजवासियों को ही नहीं, ब्रज के राजा दाऊजी महाराज को भी होने लगा है। अगहन पूर्णिमा पर उनको शीतकालीन वस्त्र धारण कराने के साथ ही शनिवार से श्री दाऊजी महाराज पाटोत्सव व पूर्णिमा मेला का शुभारंभ हो जाएगा।

एक माह तक बलदेव नगरी श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रहेगी। दाऊजी महाराज को इसी दिन सर्दी से बचाने के लिए रजाई-गद्दा धारण कराए जाएंगे। मेले के दौरान मंदिर रोशनी से जगमगायेंगे। दाऊजी महाराज मंदिर में विग्रह का श्रंगार, विशेष श्रंगार व हीरे-जवाहरात धारण कराये जायेंगे तथा प्रात: धार्मिक कार्यक्रम, महाभिषेक, शहनाई वादन होगा तथा बलभद्र सहस्त्रनाम का पाठ मंदिर प्रांगण में होगा। शोभायात्रा निकाली जाएगी, शाम को मंदिर प्रांगण में भजन संध्या होगी। मंदिर के पुजारी रामनिवास शर्मा ने बताया कि इस दिन भगवान दाऊजी महाराज को शीतकालीन पोशाक धारण कराई जाएगी।

पांच शताब्दियों से प्रचलित यह मेला ब्रज मंडल का एकमात्र पर्व है जो निरंतर एक माह चलता है।

संवत 1638 में हुआ था प्राकट्य- हिंदू मान्यताओं के अनुसार दाऊजी महाराज के विग्रह का चमत्कारिक प्राकट्य मार्गशीर्ष पूर्णिमा संवत 1638 में हुआ था। इसी उपलक्ष्य में इस मेला का आयोजन किया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मंदिर का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र ब्रजनाभ ने कराया था, मंदिर में भगवान बलराम की आठ फुट ऊंची व तीन फुट चौड़ी मूर्ति है, जिसकी छाया शेषनाग कर रहे हैं। मंदिर के पीछे बलभद्र कुंड है, जिसे क्षीरसागर के नाम से भी जाना जाता है। इसी पूर्णिमा के दिन ठाकुरजी की प्रतिष्ठा मंदिर में हुई, इस उपलक्ष्य में बड़े उत्सव का आयोजन किया गया जो मेले के रूप में प्रसिद्ध हो गया। दाऊजी महाराज को इसी दिन सर्दी से बचाने के लिए रजाई-गद्दा धारण कराए जाते ।

अर्थ व्यवस्था को भी मजबूत करता मेला- एक माह के इस मेले में आस्था की बयार तो बहती है साथ ही लोगों की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होती है। ब्रज में हजारों लोगों का जीवन यापन मेले के द्वारा ही हो रहा है। इन मेलों का साल भर यह लोग इंतजार करते रहते हैं।

अवकाश की मांग-अगहन पूर्णिमा मेला को लेकर प्रतिवर्ष परिषदीय विद्यालयों में विकास खंड बल्देव में अवकाश रहता है, लेकिन इस बार अवकाश घोषित नहीं किया गया है। इसको लेकर प्राथमिक शिक्षक संघ के ब्लॉक अध्यक्ष ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी से अवकाश घोषित किए जाने की मांग की है।

सर्दी में बांकेबिहारी की सेवा में भी होते बदलाव -

शीत का प्रभाव बढ़ते ही सेवायतों द्वारा बांकेबिहारी को राहत देने के उपाय करने शुरू कर दिए जाते हैं। ढका बदन और फूलों से परहेज अब आराध्य की पूजा में होने लगा है। सनील की गर्म पोशाक और हीरे-जवाहरात का श्रृंगार बिहारीजी का आकर्षण का बढ़ा रहा है।

बांकेबिहारी के भक्त अपने आराध्य की सेवा में बदलते मौसम के साथ अहम बदलाव भी करते रहते हैं। सर्द हवाओं का प्रभाव बढ़ा तो ठाकुरजी की सेवा में फूलों से परहेज हो गया। नम फूलों से झरते पानी के कारण कहीं बांकेबिहारी को शीत का प्रभाव न हो इसी सोच ने उन्हें नमी वाले फूलों से दूर रखा जाने लगा है। हालांकि श्रद्धालु अब भी कमल और गुलाब की आकर्षक मालाओं का उपयोग उनकी पूजा में कर रहे हैं, लेकिन इन मालाओं का उपयोग सेवायत मात्र चरण स्पर्श करवा कर रहे हैं।

श्रृंगार किए बांकेबिहारी ने रंगबिरंगी सनील की गर्म पोशाक में भक्तों को दर्शन दिऐ तो भक्त निहाल हो गए। हीरे-जवाहरात के चमकते हार और मोती की मालाएं उनके गले में थी। सेवायतों ने बताया कि उन्हें टीका लगाने को चंदन में केसर का मिश्रण बढ़ा दिया गया है। बताया गया कि शीत के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए मंदिर के गर्भगृह में फूलों की सजावट से परहेज एक महीने कर दिया गया था। किंतु उनकी पूजा-अर्चना में फूलों का प्रयोग जरूर हो रहा है।

Vrindavan by helicopter circled new beginning

श्रीधाम में गुरुवार को हेलीकॉप्टर सेवा पुन: शुरू कर दी गई। छटीकरा मार्ग स्थित अक्षय पात्र से हेलीकॉप्टर ने पहले दिन 33 श्रद्धालुओं को लेकर 11 उड़ान भरीं। आसमान से वृंदावन की परिक्रमा लगाई। सिर्फ पांच मिनट में यह पंचकोसीय परिक्रमा पूरी करा दी। पहले दिन परिक्रमा को शानदार रेस्पांस मिला माना जा रहा है। 

अक्षयपात्र परिसर में गुरुवार को जेट स्टार एयर चार्टर एंड हेलीकॉप्टर सर्विस प्राइवेट लिमिटेड के पांच सीटर हेलीकॉप्टर में श्रद्धालुओं ने वृंदावन की पंचकोसीय परिक्रमा लगाई। कंपनी के निदेशक योगेश चौधरी ने बताया कि सुबह 12.10 बजे हेलीकॉप्टर ने पर्यटकों व श्रद्धालुओं को लेकर पहली उड़ान भरी। बताया कि गोवर्धन की सात कोस और ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा भी हेलीकॉप्टर से कराने की कंपनी की योजना है। इसके लिए पर्यटकों के रुझान के बाद प्रशासन से अनुमति ली जाएगी। शीघ्र ही इस योजना पर काम शुरू कर दिया जाएगा।

बुकिंग काउंटर हेलीपैड के निकट-हेलीकॉप्टर सेवा का बुकिंग काउंटर अभी नहीं बन पाया है। भीड़ कम होने की दशा में हेलीपैड के निकट ही बुकिंग की जा रही है। दिल्ली व आगरा में बुकिंग ऑनलाइन भी की जा रही है। 

चुनाव के कारण रुकी थी
पिछले जून महीने में शुरू की गई हेलीकाप्टर सेवा लोकसभा चुनाव के कारण रोकी थी। इसे बंद नहीं किया। कंपनी के निदेशक ने बताया कि चुनाव आयोग के निर्देश मिलने के बाद प्रशासन की ओर से अनुमति न मिल पाने की वजह से हेलीकॉप्टर सेवा को रोका गया। अब यह सुचारू रूप से जारी रहेगी।
कितना किराया-हेलीकॉप्टर सेवा के लिए किराया 2700 रुपये रखा गया है।