Thursday, December 25, 2014

Why can not the celebrated Festival

खिचरी स्वाद अरुसि रही रसना, दृग अरुझो पिय रूप गौर तन।

दुहुं विधि आतुर रसिक-पुरंदर, सजनी समुझि निरखि प्रमुदित मन।।

गान सुनत श्रवननि नव-नव रुचि, परस होत रोमांचित अंगन।

वृंदावन हित रूप जाउं बलि, अस कछु रस बस निपट घनी-घानी।।

शीत ऋतु में साधक अपने आराध्य राधाबल्लभ लाल को पंचमेवा युक्त खिचड़ी प्रसाद परोसकर कुछ इन पंक्तियों का गायन करते हैं, तो मंदिर में भक्ति और आस्था का एहसास ही निराला दिखने लगता है। भोर होते ही मंगला आरती के दौरान औलाई वेश में दर्शन देते ठाकुरजी को देख खुद ही ठंड का एहसास होने लगता है, तो ठाकुरजी को गर्म खिचड़ी उसमें तैरता घी और पंचमेवा का प्रसाद गर्माहट देने के लिए परोसा जाता है।

हेमंत ऋतु में खिचड़ी उत्सव के आयोजन की परंपरा राधाबल्लभीय संप्रदाय में काफी प्राचीन है। 18वीं शताब्दी में संत-भक्तों द्वारा रचित साहित्य से यहां की इस परंपरा के प्राचीन संदर्भ उद्घाटित होते देखे जा सकते हैं। कालांतर में इस मनोरथ को केंद्र में रखकर अलग-अलग रचनाकारों ने विपुल साहित्य रचा, जिसकी पाण्डुलिपियां न केवल ब्रजमंडल बल्कि भारत के हस्तलिखित ग्रंथागारों में भी मिलती हैं।

मंदिर सेवायत हित राधेशलाल गोस्वामी एवं मोहित मराल गोस्वामी ने बताया कि ठा. राधाबल्लभ मंदिर में पौष मास के शुक्ल पक्ष की दौज से माघ मास की एकदशी प्रभात तक ठाकुरजी को नित्य सुबह खिचड़ी प्रसाद लगाया जाएगा। जो 21 जनवरी तक चलेगा। खिचड़ी महोत्सव ठाकुरजी का प्राचीनतम एवं प्रिय उत्सव है।

खिचड़ी के साथ इनका भी लगता प्रसाद- ठाकुरजी को परोसे जाने वाली खिचड़ी में दाल-चावल के अनुपात का घी, काजू, बाजाम, जायफल, जावित्री, केसर, चिरौंजी समेत पंचमेवा और खीरसा की कुलिया, श्रीखंड, अचार, ग्वार की फरी, मुरब्बा, सेम का अचार, आलू की सब्जी, राई आलू भी शामिल है। इसमें हींग, लालमिर्च का प्रयोग नहीं होता।

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