आप सब छोड़ सकते हैं, पर अपनी पहचान को नहीं, अपनी बुद्धि को नहीं छोड़ सकते। अपने प्रेम को नहीं छोड़ सकते, अपनी अभिव्यक्ति को नहीं छोड़ सकते। ऐसा इसलिए, क्योंकि यह तुम्हारी अपनी दुनिया है। इसे आपने मान लिया है, पर यह भी सत्य है कि यह आपकी बाहर की यात्रा है।
आप किनारे की ओर जा रहे हैं। उस किनारे पहुंचकर आप लौटना चाहें भी तो नहीं लौट सकेंगे। एक यात्रा है, जो बाहर की यात्रा है, दुनियादारी की यात्रा है, भोग की यात्रा है। यह आपकी अधोगामी यात्रा है। आप अपने केंद्र से अधोगामी हो गए हैं। आपकी जाग्रति तो हुई है, पर आप जाग कर अपनी सीमा की ओर नहीं जा रहे हैं। आपकी सीमा उध्र्वगमन की अंतिम यात्रा में है। आपकी सीमा मस्तिष्क के केंद्र में है। आपका केंद्र ऊपर मस्तिष्क में है और आपकी शक्ति मूलाधार चक्र के निकट है। इसलिए आप दो दिशाओं में बंटें हों। उन दो दिशाओं के दो लक्ष्य हंै। एक भीतर की ओर की दिशा, जो आपको जाग्रत करती है। यह आत्म-बोध का जागरण है। यह स्वयं की अंतर्यात्रा है, जिसकी सीमा ही आप हो। एक बाहर की ओर की दिशा, जहां आप जा रहे हो, जिसे आपने स्वीकार कर लिया है। यह भोग की यात्रा है। यह निर्माण की यात्रा है। यह वह किनारा है जहां समन्वय है, संबंध है, संपर्क है, पहचान है।
यहां आप उस स्थिति में होते हो, जहां भोग ही भोग है। पशु और आपमें कोई अंतर नहीं है। इस यात्रा में आपकी वृत्ति पशुवत होती है। पेड़ पौधे की तरह का जीवन, पर यह अन्य जीवों की अंतिम यात्रा है। यह पशु पक्षियों के जीवन की अंतिम सीमा है, पर यह आपकी पहली सीढ़ी है। यह आपकी प्रथम सीमा है। पहला जागरण है। आप में और पशु में कोई अंतर नहीं है। उस धरातल पर खड़े होकर आप भी पशु हो जाते हैं। यह अधोगमन की यात्रा है। यह भोग की यात्रा है। आपके लिए एक दूसरी यात्रा भी है, जो बुद्धि के पार जाती है, जहां बुद्धि सीमा नहीं है, बुद्धि छोर नहीं है। बुद्धि के बाद ही आपकी चेतना है, परमात्मा है। परमात्मा के तल पर जाकर फिर आप, आप नहीं होते हो। तब आप परमात्मामय हो जाते हो, आत्ममय हो जाते हो। तो यह है आपका जागरण। यह है आपकी दो दिशाओं की जाग्रति और इसी के बीच में आपकी शक्ति और आधार है। यही आपके जीवन का केंद्र है।
आप किनारे की ओर जा रहे हैं। उस किनारे पहुंचकर आप लौटना चाहें भी तो नहीं लौट सकेंगे। एक यात्रा है, जो बाहर की यात्रा है, दुनियादारी की यात्रा है, भोग की यात्रा है। यह आपकी अधोगामी यात्रा है। आप अपने केंद्र से अधोगामी हो गए हैं। आपकी जाग्रति तो हुई है, पर आप जाग कर अपनी सीमा की ओर नहीं जा रहे हैं। आपकी सीमा उध्र्वगमन की अंतिम यात्रा में है। आपकी सीमा मस्तिष्क के केंद्र में है। आपका केंद्र ऊपर मस्तिष्क में है और आपकी शक्ति मूलाधार चक्र के निकट है। इसलिए आप दो दिशाओं में बंटें हों। उन दो दिशाओं के दो लक्ष्य हंै। एक भीतर की ओर की दिशा, जो आपको जाग्रत करती है। यह आत्म-बोध का जागरण है। यह स्वयं की अंतर्यात्रा है, जिसकी सीमा ही आप हो। एक बाहर की ओर की दिशा, जहां आप जा रहे हो, जिसे आपने स्वीकार कर लिया है। यह भोग की यात्रा है। यह निर्माण की यात्रा है। यह वह किनारा है जहां समन्वय है, संबंध है, संपर्क है, पहचान है।
यहां आप उस स्थिति में होते हो, जहां भोग ही भोग है। पशु और आपमें कोई अंतर नहीं है। इस यात्रा में आपकी वृत्ति पशुवत होती है। पेड़ पौधे की तरह का जीवन, पर यह अन्य जीवों की अंतिम यात्रा है। यह पशु पक्षियों के जीवन की अंतिम सीमा है, पर यह आपकी पहली सीढ़ी है। यह आपकी प्रथम सीमा है। पहला जागरण है। आप में और पशु में कोई अंतर नहीं है। उस धरातल पर खड़े होकर आप भी पशु हो जाते हैं। यह अधोगमन की यात्रा है। यह भोग की यात्रा है। आपके लिए एक दूसरी यात्रा भी है, जो बुद्धि के पार जाती है, जहां बुद्धि सीमा नहीं है, बुद्धि छोर नहीं है। बुद्धि के बाद ही आपकी चेतना है, परमात्मा है। परमात्मा के तल पर जाकर फिर आप, आप नहीं होते हो। तब आप परमात्मामय हो जाते हो, आत्ममय हो जाते हो। तो यह है आपका जागरण। यह है आपकी दो दिशाओं की जाग्रति और इसी के बीच में आपकी शक्ति और आधार है। यही आपके जीवन का केंद्र है।
Source: Weekly Horoscope 2015
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