लाड़ले-दुलारे 'ठाकुरÓ को ब्रज में कौन प्रेम नहीं करता। ब्रज के श्रीधाम में ठाकुर राधाबल्लभ को खिचड़ी खिलाकर भक्त और सेवायत निहाल हो उठे, तो 'श्रीजीÓ की सखियां भी प्रसन्न हो गईं। साढ़े तीन सौ साल पुरानी परंपरा का निर्वाह करते हुए 34 पदों का गायन कर ठाकुर राधावल्लभ को खिचड़ी का भोग लगाया गया।
पद गायन में इस बात का वृतांत हुआ कि पौष शुक्ल में यहां तीस दिनी खिचड़ी महोत्सव शुरू से मनाया जाता है। 350 साल से श्रीराधाबल्लभ मंदिर में सोमवार से इस महोत्सव का शुभारंभ हुआ, तो हजारों भक्तों की भीड़ मंदिर प्रांगण में जुट गई। इस उत्सव की विशेषता यह कि भोग के पहले दिन ठाकुरजी को तेरह बार पोशाक पहनाई जाती है। इसके बाद तीस दिनों तक प्रतिदिन दस बार तरह-तरह की पोशाक पहना कर उनका श्रृंगार किया जाता है।
चूंकि ठाकुरजी श्रीधाम में बाल रूप में पूजे जाते हैं। इसलिए ब्रजवासियों का मानना है कि बालक की पोशाक बार बार खाने-पीने से खराब हो जाती है। इसलिए उन्हें तरह-तरह की पोशाक पहनाकर श्रृंगार किया जाता है।
पद गायन में इस बात का वृतांत हुआ कि पौष शुक्ल में यहां तीस दिनी खिचड़ी महोत्सव शुरू से मनाया जाता है। 350 साल से श्रीराधाबल्लभ मंदिर में सोमवार से इस महोत्सव का शुभारंभ हुआ, तो हजारों भक्तों की भीड़ मंदिर प्रांगण में जुट गई। इस उत्सव की विशेषता यह कि भोग के पहले दिन ठाकुरजी को तेरह बार पोशाक पहनाई जाती है। इसके बाद तीस दिनों तक प्रतिदिन दस बार तरह-तरह की पोशाक पहना कर उनका श्रृंगार किया जाता है।
चूंकि ठाकुरजी श्रीधाम में बाल रूप में पूजे जाते हैं। इसलिए ब्रजवासियों का मानना है कि बालक की पोशाक बार बार खाने-पीने से खराब हो जाती है। इसलिए उन्हें तरह-तरह की पोशाक पहनाकर श्रृंगार किया जाता है।
Source: Daily Horoscope 2015
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