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Tuesday, December 23, 2014

Three-hundred-year-old tradition is maintained

लाड़ले-दुलारे 'ठाकुरÓ को ब्रज में कौन प्रेम नहीं करता। ब्रज के श्रीधाम में ठाकुर राधाबल्लभ को खिचड़ी खिलाकर भक्त और सेवायत निहाल हो उठे, तो 'श्रीजीÓ की सखियां भी प्रसन्न हो गईं। साढ़े तीन सौ साल पुरानी परंपरा का निर्वाह करते हुए 34 पदों का गायन कर ठाकुर राधावल्लभ को खिचड़ी का भोग लगाया गया।

पद गायन में इस बात का वृतांत हुआ कि पौष शुक्ल में यहां तीस दिनी खिचड़ी महोत्सव शुरू से मनाया जाता है। 350 साल से श्रीराधाबल्लभ मंदिर में सोमवार से इस महोत्सव का शुभारंभ हुआ, तो हजारों भक्तों की भीड़ मंदिर प्रांगण में जुट गई। इस उत्सव की विशेषता यह कि भोग के पहले दिन ठाकुरजी को तेरह बार पोशाक पहनाई जाती है। इसके बाद तीस दिनों तक प्रतिदिन दस बार तरह-तरह की पोशाक पहना कर उनका श्रृंगार किया जाता है।

चूंकि ठाकुरजी श्रीधाम में बाल रूप में पूजे जाते हैं। इसलिए ब्रजवासियों का मानना है कि बालक की पोशाक बार बार खाने-पीने से खराब हो जाती है। इसलिए उन्हें तरह-तरह की पोशाक पहनाकर श्रृंगार किया जाता है। 

Monday, December 22, 2014

Lddoogopal 'look at winter

जब न्यूनतम पारा सात डिग्री पर घूम रहा हो तो आम ब्रजवासी के साथ उनके प्यारे ‘लड्डू गोपाल’ को भी शीत के प्रभाव से परेशानी होने लगी है। ऐसे में ब्रजवासी ठाकुर को रजाई-गद्दे, तकिया और ऊनी पोशाक पहनाकर प्रसन्न रखने का प्रयास कर रहे हैं। इतना ही नहीं लाला को शीत से बचाने को भाव सेवा के तहत केसर, चिरौंजी, बादाम व पिस्तायुक्त गर्म दूध शयन भोग में परोसा जा रहा है।

शहर में प्रमुख मंदिरों, कुंज-निकुंज और घरों में विराजे लड्डूगोपाल को गर्म पोशाक और ऊनी वस्त्र में एहतियात के साथ रखा जा रहा है। उन्हें रजाई-गद्दे और तकिया में शयन कराया जा रहा। ब्रजवासी घरों में विराजे ठाकुरजी को नित नई ऊनी पोशाक धारण कराते हैं।