रामलला के प्राकट्य की तारीख महज उत्सव ही नहीं बल्कि रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की दृष्टि से भी तवारीखी (ऐतिहासिक) है। वह सन् 1949 की 22-23 दिसंबर की अर्धरात्रि का ही वक्त था, जब विवादित इमारत में रामलला का प्राकट्य हुआ।
यदि हिंदू संगठनों की ओर से इसे चमत्कारिक घटना बताकर शिरोधार्य किया गया, तो बाबरी मस्जिद की वकालत करने वालों ने रामलला के प्राकट्य को साजिशपूर्ण बताया एवं बाबरी मस्जिद स्वतंत्र कराने की मांग जारी रखी। गत 66 वर्षों से इसी तारीख को राम प्राकट्योत्सव का आयोजन करती आई रामजन्मभूमि सेवा समिति का गठन प्राकट्य की तारीख के कुछ ही दिन बाद किया गया और वे सेवा समिति के महामंत्री गोपाल सिंह विशारद ही थे, जिन्होंने सन् 1950 में पहला वाद दायर करते हुए विवादित इमारत में कथित रूप से प्रकट हुए रामलला की पूजा-अर्चना की इजाजत मांगी, तो दूसरे पक्ष ने इस मांग का प्रतिवाद किया। इसी वर्ष ही रामचंद्रदास परमहंस ने श्रद्धालुओं के लिए रामलला के दर्शन की इजाजत मांगी।
परस्पर विरोधी दावेदारी का परिणाम यह हुआ कि प्रशासन ने विवादित इमारत को कुर्क कर लिया। हालांकि यदि निर्मोही अखाड़ा के पंच पुजारी रामदास की मानें तो निर्मोही अखाड़ा बाबर के पूर्व से ही रामजन्मभूमि का प्रबंध करती आ रही थी और बाबर के सेनापति द्वारा मंदिर तोड़े जाने के समय भी रामजन्मभूमि का प्रबंधन निर्मोही अखाड़ा की ही देख-रेख में था और रामजन्मभूमि की स्वतंत्रता के लिए निर्मोही अखाड़ा ने भरपूर प्रयास किया। विवाद के चलते ही एक दौर ऐसा आया जब रामलला की मूर्ति वहां से हटाकर फैजाबाद स्थित गुप्तारगढ़ी में संरक्षित की गई। निर्मोही अखाड़ा के साधु प्रत्येक सुबह रामलला की मूर्ति को हाथी पर रखकर रामजन्मभूमि तक ले जाते थे और पूरे दिन पूजा अर्चना के बाद सायं वापस गुप्तारगढ़ी पर ले आते थे। यह विडंबना अकबर के दरबार तक पहुंची और अकबर ने विवादित इमारत के सम्मुख रामचबूतरा पर रामलला को स्थाई रूप से विराजमान कर वहां पूजन-अर्चन की इजाजत दी। इसी के बाद से यदि रामचबूतरा पर रामलला की पूजा शुरू हुई, तो गर्भगृह के लिए लड़ाई भी जारी रही।
यदि हिंदू संगठनों की ओर से इसे चमत्कारिक घटना बताकर शिरोधार्य किया गया, तो बाबरी मस्जिद की वकालत करने वालों ने रामलला के प्राकट्य को साजिशपूर्ण बताया एवं बाबरी मस्जिद स्वतंत्र कराने की मांग जारी रखी। गत 66 वर्षों से इसी तारीख को राम प्राकट्योत्सव का आयोजन करती आई रामजन्मभूमि सेवा समिति का गठन प्राकट्य की तारीख के कुछ ही दिन बाद किया गया और वे सेवा समिति के महामंत्री गोपाल सिंह विशारद ही थे, जिन्होंने सन् 1950 में पहला वाद दायर करते हुए विवादित इमारत में कथित रूप से प्रकट हुए रामलला की पूजा-अर्चना की इजाजत मांगी, तो दूसरे पक्ष ने इस मांग का प्रतिवाद किया। इसी वर्ष ही रामचंद्रदास परमहंस ने श्रद्धालुओं के लिए रामलला के दर्शन की इजाजत मांगी।
परस्पर विरोधी दावेदारी का परिणाम यह हुआ कि प्रशासन ने विवादित इमारत को कुर्क कर लिया। हालांकि यदि निर्मोही अखाड़ा के पंच पुजारी रामदास की मानें तो निर्मोही अखाड़ा बाबर के पूर्व से ही रामजन्मभूमि का प्रबंध करती आ रही थी और बाबर के सेनापति द्वारा मंदिर तोड़े जाने के समय भी रामजन्मभूमि का प्रबंधन निर्मोही अखाड़ा की ही देख-रेख में था और रामजन्मभूमि की स्वतंत्रता के लिए निर्मोही अखाड़ा ने भरपूर प्रयास किया। विवाद के चलते ही एक दौर ऐसा आया जब रामलला की मूर्ति वहां से हटाकर फैजाबाद स्थित गुप्तारगढ़ी में संरक्षित की गई। निर्मोही अखाड़ा के साधु प्रत्येक सुबह रामलला की मूर्ति को हाथी पर रखकर रामजन्मभूमि तक ले जाते थे और पूरे दिन पूजा अर्चना के बाद सायं वापस गुप्तारगढ़ी पर ले आते थे। यह विडंबना अकबर के दरबार तक पहुंची और अकबर ने विवादित इमारत के सम्मुख रामचबूतरा पर रामलला को स्थाई रूप से विराजमान कर वहां पूजन-अर्चन की इजाजत दी। इसी के बाद से यदि रामचबूतरा पर रामलला की पूजा शुरू हुई, तो गर्भगृह के लिए लड़ाई भी जारी रही।
Source: Daily Horoscope 2015
No comments:
Post a Comment