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Tuesday, December 23, 2014

God's grace was expressed ramlalla

रामलला के प्राकट्य की तारीख महज उत्सव ही नहीं बल्कि रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की दृष्टि से भी तवारीखी (ऐतिहासिक) है। वह सन् 1949 की 22-23 दिसंबर की अर्धरात्रि का ही वक्त था, जब विवादित इमारत में रामलला का प्राकट्य हुआ।

यदि हिंदू संगठनों की ओर से इसे चमत्कारिक घटना बताकर शिरोधार्य किया गया, तो बाबरी मस्जिद की वकालत करने वालों ने रामलला के प्राकट्य को साजिशपूर्ण बताया एवं बाबरी मस्जिद स्वतंत्र कराने की मांग जारी रखी। गत 66 वर्षों से इसी तारीख को राम प्राकट्योत्सव का आयोजन करती आई रामजन्मभूमि सेवा समिति का गठन प्राकट्य की तारीख के कुछ ही दिन बाद किया गया और वे सेवा समिति के महामंत्री गोपाल सिंह विशारद ही थे, जिन्होंने सन् 1950 में पहला वाद दायर करते हुए विवादित इमारत में कथित रूप से प्रकट हुए रामलला की पूजा-अर्चना की इजाजत मांगी, तो दूसरे पक्ष ने इस मांग का प्रतिवाद किया। इसी वर्ष ही रामचंद्रदास परमहंस ने श्रद्धालुओं के लिए रामलला के दर्शन की इजाजत मांगी।

परस्पर विरोधी दावेदारी का परिणाम यह हुआ कि प्रशासन ने विवादित इमारत को कुर्क कर लिया। हालांकि यदि निर्मोही अखाड़ा के पंच पुजारी रामदास की मानें तो निर्मोही अखाड़ा बाबर के पूर्व से ही रामजन्मभूमि का प्रबंध करती आ रही थी और बाबर के सेनापति द्वारा मंदिर तोड़े जाने के समय भी रामजन्मभूमि का प्रबंधन निर्मोही अखाड़ा की ही देख-रेख में था और रामजन्मभूमि की स्वतंत्रता के लिए निर्मोही अखाड़ा ने भरपूर प्रयास किया। विवाद के चलते ही एक दौर ऐसा आया जब रामलला की मूर्ति वहां से हटाकर फैजाबाद स्थित गुप्तारगढ़ी में संरक्षित की गई। निर्मोही अखाड़ा के साधु प्रत्येक सुबह रामलला की मूर्ति को हाथी पर रखकर रामजन्मभूमि तक ले जाते थे और पूरे दिन पूजा अर्चना के बाद सायं वापस गुप्तारगढ़ी पर ले आते थे। यह विडंबना अकबर के दरबार तक पहुंची और अकबर ने विवादित इमारत के सम्मुख रामचबूतरा पर रामलला को स्थाई रूप से विराजमान कर वहां पूजन-अर्चन की इजाजत दी। इसी के बाद से यदि रामचबूतरा पर रामलला की पूजा शुरू हुई, तो गर्भगृह के लिए लड़ाई भी जारी रही। 

Monday, December 22, 2014

66th Ram Praktyotsv: Pitcher of the deity was assigned to adorer

सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन रामजन्मभूमि के वाद में रामजन्मभूमि सेवा समिति पुन: पार्टी बनना चाहती है। यह जानकारी सेवा समिति के महामंत्री रामप्रसाद मिश्र ने दी। उन्होंने बताया कि जिन राजेंद्र सिंह विशारद ने इस वाद में सेवा समिति के प्रतिनिधि की हैसियत से रामलला के सखा का समर्थन किया था, उन्हें इसका हक ही नहीं था। वे यह वाद दाखिल करने वाले गोपाल सिंह विशारद के पुत्र तो थे पर यह वाद गोपाल सिंह विशारद का वैयक्तिक न होकर सेवा समिति के महामंत्री की हैसियत से था और सेवा समिति का सामूहिक निर्णय आज भी इस वाद में किसी का समर्थन न कर स्वयं पार्टी बने रहने का है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि रामजन्मभूमि मामले की प्रथम वादी सेवा समिति ही थी।

66वें राम प्राकट्योत्सव के उपलक्ष्य में रामजन्मभूमि सेवा समिति की ओर से रंगमहल बैरियर पर रामलला के अर्चक अशोकदास को रामजन्मभूमि सेवा समिति की ओर से पूर्वाह्न कलश सौंपा गया। कलश सौंपने वालों में सेवा समिति के महामंत्री रामप्रसाद मिश्र, संयोजक संजय शुक्ल, उपाध्यक्ष रामभद्र पाठक, मंत्री हरिशंकर सिंह, गोपीनाथ शुक्ल, रामप्रसाद यादव आदि रहे। इस मौके पर सेवा समिति के पदाधिकारियों के साथ नगर पालिकाध्यक्ष राधेश्याम गुप्त एवं सभासद ङ्क्षपटू मांझी भी रहे। समिति के पदाधिकारी बुधवार को रामलला के अर्चक से कलश वापस लेकर शोभायात्रा निकालेंगे। वह 22-23 दिसंबर सन् 1949 की अर्धरात्रि थी, जब विवादित रामजन्मभूमि पर रामलला के प्राकट्य का दावा किया गया। प्रति वर्ष इसी तारीख को ध्यान में रखकर रामजन्मभूमि सेवा समिति की ओर से राम प्राकट्योत्सव मनाया जाता है। छह दिसंबर 1992 को ढांचा ध्वंस से पूर्व तक प्राकट्योत्सव का केंद्र रामलला का गर्भगृह होता रहा पर उसके बाद से प्राकट्योत्सव के आयोजन में गतिरोध आ गया। यद्यपि पूर्व की तरह प्राकट्योत्सव के उपलक्ष्य में शोभायात्रा निकलने की परंपरा बदस्तूर है पर गर्भगृह में पूजन की परंपरा संक्रामित हुई। जहां पूर्व में सेवा समिति के पदाधिकारी गर्भगृह में जाकर प्राकट्योत्सव के कलश का पूजन करते रहे, वहीं बाद में समिति के पदाधिकारी तो रोक दिए गए पर कलश गर्भगृह में ले जाया जाता रहा। 17 अक्टूबर 2002 को विहिप की अगली कतार के तीन दर्जन से अधिक नेताओं के जबरन गर्भगृह के करीब तक प्रवेश कर जाने के बाद से अदालती आदेश का अनुपालन सख्त हुआ और उसी के परिणामस्वरूप राम प्राकट्योत्सव का कलश भी गर्भगृह तक पहुंचना प्रतिबंधित हो गया। हालांकि सेवा समिति के महामंत्री ने विश्वास जताया कि उन्होंने रामलला के अर्चक को प्राकट्योत्सव का कलश सौंपा है और वह गर्भगृह में रखा जाएगा।