Monday, December 22, 2014

Now Kapialdhara just resort to Ram

स्कंद पुराण के काशी खंड में कपिलधारा तीर्थ, कुंड और कपिलेश्वर महादेव का उल्लेख आता है। मान्यता है कि भगवान शिव ने काशी बसाई तो पहले यहां ही आए। कपिल मुनि ने यहां साधना की और देवों-ऋषियों के भी चरण पड़े। ऐसा महात्म्य लेकिन दुखद यह कि इतनी बड़ी धरोहर को हम नहीं संजो पाए।

अद्भूत मंदिरों की श्रृंखला- कपिलेश्वर महादेव तो यहां विराजमान हैं ही आठ भुजाओं वाले भगवान गणेश का विग्रह अपनी तरह का अलग और अनूठा है। चंडी देवी और मां दुर्गा भवानी की प्रतिमा के साथ ही तपस्यारत कपिल मुनि भी यहां विराजमान हैं। लोकगायन की बिरहा विधा के पुरोधा माने जाने वाले गुरु पत्तू, गुरु बिहारी व गुरु अक्षयवर का भी मंदिर स्थित है।

पंचकोशी यात्रा का पांचवां व अंतिम पड़ाव कपिलधारा, जिसका जिक्र आते ही हाथ जुड़ जाते हों, अब दशा देख पैरों तले से जमीन खिसक जाएगी। कभी 52 बीघा का परिसर, आज तिनका-तिनकाकर बिखर गया। इन पर अट्टालिकाएं तन गईं और निजी आशियाने बन गए। यात्रियों के ठहरने के लिए बनाई गई एक दर्जन धर्मशालाओं में एक-दो बची भी तो आधी अधूरी शेष पर अतिक्रमणकारियों की नजर गड़ गई। मंदिर का परिसर खंडहर की तरह ढह रहा है। इसे संवारने के नाम पर लंबी चौड़ी कागजी कवायद लेकिन सरकारी पैसा बिना किसी योजना के पानी की तरह बह रहा है।

महातीर्थ का मूल स्वरूप सजोना तो दूर नाक नक्शा भी बिगड़ रहा है। जागरण टीम रविवार को कपिल मुनि और कपिलेश्वर महादेव की इस स्थली की ओर थी। सड़क से शुरू हुई भवनों की कतार के बीच एक बारगी गलत पते पर पहुंच जाने का अंदेशा हो आया। स्थानीयजनों ने जिस रास्ते वहां पहुंचाया उसे खंडहर से अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता। भवनों के मलबे से होकर मुख्य परिसर तक की यात्रा ने पर्वतारोहण का अहसास कराया। हम तो बच गए लेकिन घाट की सीढिय़ों तक जाना है और डीलडौल वाले हुए तो तीर्थ पुरोहितों की चौकियों के बीच जरूर अंड़स जाएंगे। विशाल कुंड जिसकी मान्यता गंगा सागर जल सरीखी लेकिन दशा देख कर अच्छा भला आदमी भी बीमार हो जाए। इसकी सफाई कब हुई इसकी याद तो 28 साल के बांके जवान विजय जायसवाल को भी न रही। एक बार जलनिगम ने कभी जलभराव जरूर कराया अन्यथा पानी तो इंद्रदेव की मेहरबानी पर ही है। मंदिर की सीढिय़ों पर नजर नए पत्थरों पर गड़ गई। बताया गया पंचकोशी पड़ाव जीर्णोद्धार योजना के तहत आवास विकास विभाग ने पत्थरों को बदलवा दिया लेकिन उन्हें कौन समझाए कि थोड़ी सी नादानी से एक जिम्मेदार महकमे ने मूल स्वरूप ही बिसरा दिया।

निचले हिस्से में स्थित मंदिर में श्रीहरि की नवीन संगरमरी प्रतिमा देख माथा ठनका और खुलासा हो गया कि इस धरोहरपुंज से किस तरह बिसर रहा एक एक मनका। पता चला प्रभु की अष्टधातु प्रतिमा डेढ़ दशक पहले चोर उठा ले गए। उपरी हिस्से में कपिलेश्वर महादेव का मंदिर और अन्य विशिष्ट देवालय मन को श्रद्धा से भर देता है। वहीं इसके अगले हिस्से में स्थित पुजारी कक्ष को छोड़ भी दें तो परिसर में अंदर तक खड़े हो गए मकान धरोहरों को लेकर संवेदनहीनता की कहानी बेलाग कह देता है। इससे सटा धर्मशाला के सुंदरीकरण में भी कार्यदायी एजेंसी के नीयत की खोट नजर आती है। इसकी छत से सूरज की रोशनी झांक रही लेकिन फर्श पर पत्थर बिछा दिए गए। जहां दीवारों की ईंटें निकल गई वहां सीमेंट बालू जमा दिए। छत का नजारा देख सीना चाक हो जाएगा। ताश के पत्ते फेंटने व पतंग की डोर ढीलने में मशगूल इन युवाओं को कौन बताएगा कि छत के किनारों व सीढिय़ों पर पीक और लघुशंका के निशान देख कोई श्रद्धालु या पर्यटक क्या छवि लेकर जाएगा।

गली के दूसरे छोर पर धर्मशाला अब व्यक्तिगत आवास का अहसास कराती है। सरायमोहाना की ओर बढ़ते ऐसे ध्वस्त विश्रमालयों का हश्र देख कलेजा हिल जाता है। वापसी में सड़क किनारे खड़ी धर्मशालाओं पर लगे ताले और कुछ में चल रहे खटाल सरकारी अमले की नीयत पर भी बड़ा सवाल छोड़ जाते हैं। 

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