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Wednesday, January 7, 2015

Morning-e-Benaras increased demand platform

अस्सी घाट पर सुर राग से पगे सुबह-ए-बनारस के मंच की मांग, अब राष्ट्रीय संस्थाओं की ओर से भी आने लगी है। राष्ट्रीय संस्था स्पीक मैके ने इसके लिए जिला सांस्कृतिक समिति से सहमति मांगी है। 

दिल्ली स्थित एक संगीत संस्थान ने शास्त्रीय रागों से सुबह की अगवानी के लिए सात दिन मंच संभालने का प्रस्ताव दिया है। संस्था की ओर से इसके लिए समिति को कलाकारों की सूची भी सौंप दी गई है। इसमें उनका जीवन वृत्त संलग्न करते हुए उनकी संबंधित राग में सिद्धहस्तता का भी उल्लेख किया है। 

स्पीक मैके ने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय ख्याति के कलाकारों के काशी में प्रस्तुतिकरण के लिए आगमन पर मंच साझा करने का प्रस्ताव दिया है। समिति सचिव डा. रत्नेश वर्मा ने बताया कि आयोजन की शुरुआत से पहले ही एक साल के लिए कलाकारों की सूची तैयार कर ली गई थी। अब नए प्रस्तावों पर समय निकाल कर अवसर दिया जाएगा। 

Monday, December 22, 2014

Now Kapialdhara just resort to Ram

स्कंद पुराण के काशी खंड में कपिलधारा तीर्थ, कुंड और कपिलेश्वर महादेव का उल्लेख आता है। मान्यता है कि भगवान शिव ने काशी बसाई तो पहले यहां ही आए। कपिल मुनि ने यहां साधना की और देवों-ऋषियों के भी चरण पड़े। ऐसा महात्म्य लेकिन दुखद यह कि इतनी बड़ी धरोहर को हम नहीं संजो पाए।

अद्भूत मंदिरों की श्रृंखला- कपिलेश्वर महादेव तो यहां विराजमान हैं ही आठ भुजाओं वाले भगवान गणेश का विग्रह अपनी तरह का अलग और अनूठा है। चंडी देवी और मां दुर्गा भवानी की प्रतिमा के साथ ही तपस्यारत कपिल मुनि भी यहां विराजमान हैं। लोकगायन की बिरहा विधा के पुरोधा माने जाने वाले गुरु पत्तू, गुरु बिहारी व गुरु अक्षयवर का भी मंदिर स्थित है।

पंचकोशी यात्रा का पांचवां व अंतिम पड़ाव कपिलधारा, जिसका जिक्र आते ही हाथ जुड़ जाते हों, अब दशा देख पैरों तले से जमीन खिसक जाएगी। कभी 52 बीघा का परिसर, आज तिनका-तिनकाकर बिखर गया। इन पर अट्टालिकाएं तन गईं और निजी आशियाने बन गए। यात्रियों के ठहरने के लिए बनाई गई एक दर्जन धर्मशालाओं में एक-दो बची भी तो आधी अधूरी शेष पर अतिक्रमणकारियों की नजर गड़ गई। मंदिर का परिसर खंडहर की तरह ढह रहा है। इसे संवारने के नाम पर लंबी चौड़ी कागजी कवायद लेकिन सरकारी पैसा बिना किसी योजना के पानी की तरह बह रहा है।

महातीर्थ का मूल स्वरूप सजोना तो दूर नाक नक्शा भी बिगड़ रहा है। जागरण टीम रविवार को कपिल मुनि और कपिलेश्वर महादेव की इस स्थली की ओर थी। सड़क से शुरू हुई भवनों की कतार के बीच एक बारगी गलत पते पर पहुंच जाने का अंदेशा हो आया। स्थानीयजनों ने जिस रास्ते वहां पहुंचाया उसे खंडहर से अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता। भवनों के मलबे से होकर मुख्य परिसर तक की यात्रा ने पर्वतारोहण का अहसास कराया। हम तो बच गए लेकिन घाट की सीढिय़ों तक जाना है और डीलडौल वाले हुए तो तीर्थ पुरोहितों की चौकियों के बीच जरूर अंड़स जाएंगे। विशाल कुंड जिसकी मान्यता गंगा सागर जल सरीखी लेकिन दशा देख कर अच्छा भला आदमी भी बीमार हो जाए। इसकी सफाई कब हुई इसकी याद तो 28 साल के बांके जवान विजय जायसवाल को भी न रही। एक बार जलनिगम ने कभी जलभराव जरूर कराया अन्यथा पानी तो इंद्रदेव की मेहरबानी पर ही है। मंदिर की सीढिय़ों पर नजर नए पत्थरों पर गड़ गई। बताया गया पंचकोशी पड़ाव जीर्णोद्धार योजना के तहत आवास विकास विभाग ने पत्थरों को बदलवा दिया लेकिन उन्हें कौन समझाए कि थोड़ी सी नादानी से एक जिम्मेदार महकमे ने मूल स्वरूप ही बिसरा दिया।

निचले हिस्से में स्थित मंदिर में श्रीहरि की नवीन संगरमरी प्रतिमा देख माथा ठनका और खुलासा हो गया कि इस धरोहरपुंज से किस तरह बिसर रहा एक एक मनका। पता चला प्रभु की अष्टधातु प्रतिमा डेढ़ दशक पहले चोर उठा ले गए। उपरी हिस्से में कपिलेश्वर महादेव का मंदिर और अन्य विशिष्ट देवालय मन को श्रद्धा से भर देता है। वहीं इसके अगले हिस्से में स्थित पुजारी कक्ष को छोड़ भी दें तो परिसर में अंदर तक खड़े हो गए मकान धरोहरों को लेकर संवेदनहीनता की कहानी बेलाग कह देता है। इससे सटा धर्मशाला के सुंदरीकरण में भी कार्यदायी एजेंसी के नीयत की खोट नजर आती है। इसकी छत से सूरज की रोशनी झांक रही लेकिन फर्श पर पत्थर बिछा दिए गए। जहां दीवारों की ईंटें निकल गई वहां सीमेंट बालू जमा दिए। छत का नजारा देख सीना चाक हो जाएगा। ताश के पत्ते फेंटने व पतंग की डोर ढीलने में मशगूल इन युवाओं को कौन बताएगा कि छत के किनारों व सीढिय़ों पर पीक और लघुशंका के निशान देख कोई श्रद्धालु या पर्यटक क्या छवि लेकर जाएगा।

गली के दूसरे छोर पर धर्मशाला अब व्यक्तिगत आवास का अहसास कराती है। सरायमोहाना की ओर बढ़ते ऐसे ध्वस्त विश्रमालयों का हश्र देख कलेजा हिल जाता है। वापसी में सड़क किनारे खड़ी धर्मशालाओं पर लगे ताले और कुछ में चल रहे खटाल सरकारी अमले की नीयत पर भी बड़ा सवाल छोड़ जाते हैं। 

Sunday, December 21, 2014

During the evening libation was sand setting Shivling

काशी की धरोहर श्रृंखला के महत्वपूर्ण तीर्थधाम व पंचकोशी परिक्रमा का तीसरा पड़ाव स्थल धर्म नगीना व आस्था का केंद्र रामेश्वर धार्मिक महत्ता का स्थल है। जहां देश के कोने-कोने से पहुंचे श्रद्धालु मन्नतें पूरी होने के लिए यहां मत्था टेकते हैं।

रामेश्वर महादेव दरबार धार्मिक आस्था का केंद्र तो है ही, मंदिर का कला शिल्प किसी का भी मन मोह लेने के लिए काफी है। 18वीं शताब्दी की इस खास कलाकृति की विलक्षणता को देखते हुए इसके विस्तार की जरूरत भक्तजनों द्वारा महसूस की जा रही है। अति प्राचीन मंदिरों में एक रामेश्वर महादेव मंदिर अति प्राचीन मंदिरों में से एक है। जहां रावणवध के बाद पाप से मुक्ति की कामना को लेकर भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम वरुणा तट आए थे। उन्होंने एक रात्रि विश्राम के दौरान संध्या तर्पण में एक मु_ी रेत से शिवलिंग की स्थापना की थी। इसी शिवलिंग पर विशाल मंदिर व वरुणा नदी तट पर घाट और बारजा का निर्माण जनकोजी राव सिंधिया ने शुरू कराया। इसे जीवाजी राव सिंधिया ने पूर्ण कराया। ग्वालियर में तराशे गए लाल पत्थरों से मंदिर का निर्माण कराया गया है। सिंधिया परिवार के साथ-साथ किला के निर्माण में अहिल्याबाई ने भी योगदान दिया।

संस्कृति विभाग ने किया था प्रयास- रामेश्वर महादेव मंदिर अपनी प्राचीनता को समेटे हुए है लेकिन प्रकृति की मार से जगह-जगह कमजोर हो रहा है। मंदिर के चारों ओर पत्थरों के ऊपर चारों दिशाओं में पीतल के कंगूरे और पत्थरों के अवशेष पीपल, नीम, वट व जंगली घास का शिकार होकर गिर रहा है। चार वर्ष पूर्व पर्यटन विभाग ने कुछ जीर्णोद्धार कराया लेकिन मंदिर, घाट, किला, बारजा फिर से टूटने लगे। संस्कृति विभाग द्वारा एक वर्ष से मंदिर भवन व बारजा का जीर्णोद्धार कराया जा रहा है लेकिन जरूरत है मंदिर के बाहरी कलाकृतियों एवं कंगूरे, त्रिशूल सहित पत्थरों के नक्काशी के बीच पड़ी दरारों को हटाने और मजबूती देने की।

देव पंचायत लिंग भी स्थापित- रामेश्वर महादेव तीर्थधाम में भगवान श्रीराम, भरत, शत्रुध्न, लक्ष्मण व हनुमान के हाथों शिवलिंग स्थापित हैं। मंदिर परिसर में सोमेश्वर, अग्नेश्वर, धावाभूमिश्वर नहुषेश्वर, भरतेश्वर, लक्ष्मणोश्वर, शस्त्रुध्नेश्वर, देव पंचायत लिंग (16 शिवलिंग एक साथ) स्थापित हैं। वरुणा तट पर असंख्यात शिवलिंग व झाड़ी महादेव शिवलिंग स्थापित है जहां आदिगंगा व वरुणा का जल ताम्र पात्र में बेल पत्र, चंदन, पुष्प, चावल (अक्षत), चढ़ाकर दुग्धविशेष व रुद्राविशेषक की परंपरा है।

रामेश्वर धार्मिक तीर्थ धाम में शैव संप्रदाय के साथ वैष्णव संप्रदाय का अद्भूत मिलन केंद्र है।

ऊरामेश्वर तीर्थ- शिवालय का अद्भुत कला शिल्प नष्ट होने के कगार पर, ग्वालियर के लाल पत्थरों का भी हो रहा क्षरण

मां तुलजा-दुर्गा दरबार रामेश्वर तीर्थ धाम में ही महाराष्ट्र के मराठों की देवी मां तुलजा व साथ में दुर्गा मंदिर है जहां आस्था का संगम मिलता है। जन-जन दुखियारी मत्था टेकते हैं। इन्हें कल्याणदायिनी अंबे नाम से पुकारा जाता है। यहां औरंगजेब मुगल भी शक्ति के प्रभाव के आगे पनाह मान भाग खड़ा हुआ था। ऐसी मान्यता है कि इस धर्म स्थल पर हाजिरी लगाने वाले की मुराद पूरी होती है।

हर दिन चलता भक्तों का पर्व-मंदिर परिसर में आदिकालीन पाषाण युग की दुलर्भ मूर्तियां स्थापित हैं। दत्तात्रय जी, राम-लक्ष्मण जानकी, हनुमान, गणोश, नर्सिग, काल भैरव, सूर्य नारायण, साक्षी विनायक विद्यमान हैं। रामेश्वर महादेव तीर्थधाम में प्रमुख लोटा-भंटा मेला, शिवरात्रि मेला सहित हर दिन पर्व चलता रहता है। जन-जन के कल्याण का केंद्र रामेश्वर महादेव तीर्थ धाम बन गया है। एनामिल पेंट से पत्थरों को क्षति-मोक्ष नगरी काशी में मुक्ति के लिए तारक मंत्र देने वाले रामेश्वर महादेव (देवाधिदेव) के दरबार को संरक्षण की जरूरत है। पुरानी धरोहरों को पर्यटन विभाग, पुरातत्व विभाग, संस्कृति विभाग मिलकर संयुक्त योजनाएं बनाएं। पुरानी शैली को मजबूती व जीवंतता देने का कार्य करें। सबसे बड़ा खतरा जंगली वट, पीपल, नीम, बबूल व अन्य जंगली घासों से है।

Thursday, December 18, 2014

Kashi Vishwanath temple priest Sewadar also become

काशी विश्वनाथ मंदिर में अब योग्य सेवादार भी पुजारी बनाए जाएंगे,

उनके साथ ही नि:शुल्क शास्त्रियों को भी अवसर मिलेगा। वाहन चालक व परिचारक भी योग्यता अनुसार इस पद पर प्रोन्नति पाएंगे। परिसर स्थित विग्रहों में पूजन आदि सुचारू बनाए रखने के लिए मंदिर प्रशासन ने शासन को इस संबंध में प्रस्ताव भेजा है।

मंदिर में फिलहाल 51 के सापेक्ष 21 पुजारी ही तैनात हैं। इनमें से नौ पुजारी

तीन पालियों में गर्भगृह में ड्यूटी देते हैं। इससे परिसर स्थित 12 विग्रहों के

लिए एक-एक पुजारी ही बचते हैं। उन्हें मंदिर खुलने से शयन आरती तक यानी भोर के चार बजे से रात 11 बजे तक लगातार ड्यूटी देनी होती है। उनके बीमार होने या किसी कारण से अवकाश पर जाने से विग्रह पूरी तरह खाली रह जाता है। हालांकि ऐसे समय में मंदिर की रीति नीति और पूजन विधि जानने वाले सेवादार इसकी कमान संभालते रहे हैं। पिछले दिनों मंदिर प्रशासन ने पुजारियों की कमी के संबंध में शासन का ध्यान दिलाया। वहां से प्रस्ताव मांगे जाने पर अधिकारियों को ऐसे सेवादारों का भी ध्यान आया। तय किया गया कि मंदिर में तैनात 20 सेवादारों में से पुजारी बनने की योग्यता रखने वालों को भी यह मौका दिया जाएगा। नि:शुल्क सेवा देने वाले शास्त्रियों से भी कमी पूरी की जाएगी, साथ ही वाहन चालक और परिचारकों को भी प्रोन्नत कर यह जिम्मेदारी दी जाएगी। बाद में सेवादार, परिचारक व वाहन चालक समेत रिक्त पदों को खुली भर्ती के तहत भरा जाएगा।

व्यवस्था सुचारू करने का प्रयास -

शासन को भेजे गए प्रस्ताव में गर्भगृह में तीन पालियों में नौ, 12 विग्रहों के

लिए तीन पालियों के लिए 36 और छह रिजर्व पुजारी की मांग की गई है। इन 51 पदों पर रीति नीति से परिचित सेवादारों व अन्य को तैनात करने का भी प्रस्ताव है।

-अजय अवस्थी, मुख्य कार्यपालक अधिकारी, श्रीविश्वनाथ दरबार। 

Wednesday, December 17, 2014

Kashi Vishwanath temple priest Sewadar also become

काशी विश्वनाथ मंदिर में अब योग्य सेवादार भी पुजारी बनाए जाएंगे,

उनके साथ ही नि:शुल्क शास्त्रियों को भी अवसर मिलेगा। वाहन चालक व परिचारक भी योग्यता अनुसार इस पद पर प्रोन्नति पाएंगे। परिसर स्थित विग्रहों में पूजन आदि सुचारू बनाए रखने के लिए मंदिर प्रशासन ने शासन को इस संबंध में प्रस्ताव भेजा है।

मंदिर में फिलहाल 51 के सापेक्ष 21 पुजारी ही तैनात हैं। इनमें से नौ पुजारी

तीन पालियों में गर्भगृह में ड्यूटी देते हैं। इससे परिसर स्थित 12 विग्रहों के

लिए एक-एक पुजारी ही बचते हैं। उन्हें मंदिर खुलने से शयन आरती तक यानी भोर के चार बजे से रात 11 बजे तक लगातार ड्यूटी देनी होती है। उनके बीमार होने या किसी कारण से अवकाश पर जाने से विग्रह पूरी तरह खाली रह जाता है। हालांकि ऐसे समय में मंदिर की रीति नीति और पूजन विधि जानने वाले सेवादार इसकी कमान संभालते रहे हैं। पिछले दिनों मंदिर प्रशासन ने पुजारियों की कमी के संबंध में शासन का ध्यान दिलाया। वहां से प्रस्ताव मांगे जाने पर अधिकारियों को ऐसे सेवादारों का भी ध्यान आया। तय किया गया कि मंदिर में तैनात 20 सेवादारों में से पुजारी बनने की योग्यता रखने वालों को भी यह मौका दिया जाएगा। नि:शुल्क सेवा देने वाले शास्त्रियों से भी कमी पूरी की जाएगी, साथ ही वाहन चालक और परिचारकों को भी प्रोन्नत कर यह जिम्मेदारी दी जाएगी। बाद में सेवादार, परिचारक व वाहन चालक समेत रिक्त पदों को खुली भर्ती के तहत भरा जाएगा।

व्यवस्था सुचारू करने का प्रयास -

शासन को भेजे गए प्रस्ताव में गर्भगृह में तीन पालियों में नौ, 12 विग्रहों के

लिए तीन पालियों के लिए 36 और छह रिजर्व पुजारी की मांग की गई है। इन 51 पदों पर रीति नीति से परिचित सेवादारों व अन्य को तैनात करने का भी प्रस्ताव है।

-अजय अवस्थी, मुख्य कार्यपालक अधिकारी, श्रीविश्वनाथ दरबार। 

Monday, December 8, 2014

You know, now just a click Kashi appeared on ...

काशी की महत्ता को वैश्विक स्तर पर पहुंचाने की दिशा में काशी हिंदू विश्वविद्यालय व महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के विद्यार्थियों ने पहल की है। इन्होंने इस शहर की हर छोटी बड़ी जानकारी जुटाई और इसे वेबसाइट पर डाल दिया है। बस एक क्लिक पर उपलब्ध होंगे जरूरी फोन नंबर, कार्यक्रम, बनारस की ऐतिहासिक व पौराणिक जानकारी।

छात्रों का कहना है कि इसे चार प्रमुख भागों में बांटा गया है। जीवंत नगरी काशी को इंटरनेट पर नवीन तरीके से लाना बड़ी उपलब्धि है।

नाम- छात्रों की यह वेबसाइट है ''kashiyama.com, इनका कहना है कि काशी वैश्विक महत्व की नगरी है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र भी है। इसे तैयार करने वाले छात्रों में शामिल हैं सुमित, अंकुर सिंह, अजित शुक्ला और सुदीप्त मणि। विद्यापीठ के डा. अनिल कुमार उपाध्याय, डा. प्रभाशंकर मिश्र, डा. केशरीनंदन शर्मा आदि ने इन विद्यार्थियों को प्रेरित किया और सुझाव भी दिए।

वेबसाइट पर सुबह-ए-बनारस, गीत-नृत्य व वाद्य की होगी गूंज-

कबीरचौरा मठ में सहेज कर रखी गई 700 पांडुलिपियों का केंद्रीय संस्कृति विभाग डिजिटलाइजेशन कराएगा। इसमें कबीर की वाणियों के साथ ही रामायण की भी पांडुलिपि शामिल है। निरीक्षण के लिए पहुंचे संस्कृति सचिव ने मठ का कोना कोना देखा। फिजी के भक्तों द्वारा 1033 में बनवाए गए साधना स्थल के बारे में जानकारी ली और कबीर से जुड़ी वस्तुओं को देखा। चोरी गई माला के बारे में भी आचार्य विवेकदास से जानकारी ली। नीरू नीमा टीला पर बनाए जा रहे कबीर झोपड़ी स्थल के बारे में भी जानकारी ली।

प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र काशी में संगीत नाटक अकादमी अनूठा बनारस उत्सव सजाएगा। बनारस से जुड़े गीत-संगीत तो होंगे ही लोक नृत्य, ललित कला व साहित्यिक थाती सजी संवरी नजर आएगी। माह के अंत में 25 से 27 दिसंबर तक आयोजन होगा जिसकी झलक बीएचयू से सारनाथ तक नजर आएगी। बनारस के सांसद व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस दौरान अपने संसदीय क्षेत्र में मौजूद होंगे, ऐसे में इस अनूठे उत्सव का श्रीगणेश भी उनके हाथों हो सकता है।

संस्कृति सचिव रवींद्र सिंह ने शनिवार को काशी हिंदू विश्वविद्यालय से सारनाथ तक विभिन्न स्थलों का निरीक्षण किया, इसका खाका भी खींचा। इसमें तय किया गया कि सांस्कृतिक आयोजन बीएचयू और सामने घाट स्थित ज्ञानप्रवाह में होंगे। इसमें काशी की विलुप्त हो रही परंपराओं को भी खास तौर पर स्थान दिया जाएगा। इसका समापन सारनाथ स्थित धमेख स्तूप के सामने होगा। इस बीच बनारस से जुड़े अन्य स्थलों पर भी विभिन्न आयोजन किए जाएंगे। इन्हें हरी झंडी अभी सोमवार तक मिल पाएगी। अधिकारियों के साथ बैठक में संस्कृति सचिव ने अस्सी घाट पर सुर राग से संवर रहे सुबह ए बनारस को केंद्रीय संस्कृति विभाग की वेबसाइट पर रोजाना अपडेट करने का निर्देश दिया। इसमें गंगा आरती, वेद मंत्रोच्चार, सुर साज और पूरा आयोजन समाहित होगा। इसी तर्ज पर सारनाथ में भी उन्होंने नैत्यिक आयोजन का निर्देश दिया।

संवरेगा भारत माता मंदिर- संस्कृति सचिव भारत माता मंदिर देख अचंभित हो उठे। इसका ठीक रख रखाव न होते देख हैरान भी हुए। प्रस्ताव लेकर इसमें हुई टूट फूट दूर करने का अधीक्षण पुरातत्वविद् अजय श्रीवास्तव को निर्देश दिया।

तिब्बती आयुर्वेद पद्धति का विस्तार-संस्कृति सचिव ने केंद्रीय तिब्बती विश्वविद्यालय में पारंपरिक कला थंका, तिब्बती काष्ठ कला के नमूने और भोट भाषा के ग्रंथ देखे। तिब्बती आयुर्वेद पद्धति सोवा रिग्पा पद्धति को विस्तार का निर्देश दिया।