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Thursday, January 8, 2015

Now would be a new cadre of Varanasi Ganga Arti

दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती का रंग, रूप और भी निखरेगा। इसकी अद्भुत भव्यता में सुर- लय- ताल का रंग भी जुड़ेगा। इससे देश-विदेश के ख्यात कलाकार जोड़े जाएंगे। शास्त्रीय संगीत के साथ शिव तांडव समेत विभिन्न आयोजन भी इसमें शामिल किए जाएंगे। वहां बैठने के लिए इंतजाम भी स्थायी किए जाएंगे जो बिना किसी भेदभाव पर्यटक व श्रद्धालु को 'पहले आओ -पहले पाओÓ की तर्ज पर उपलब्ध होंगे।

घाटों के सौंदर्य को निखारने के लिए केंद्र व प्रदेश सरकार की रूचि को देखते हुए पर्यटन विभाग ने अपनी गतिविधियों को विस्तार देने का मन बनाया है। इसके लिए पर्यटन विभाग ने पिछले दिनों प्रदेश शासन को प्रस्ताव भेजा था। इस पर सैद्धांतिक सहमति मिल गई है। अब महज स्वीकृति आदेश व बजट के कागजात आने बाकी हैं। इसे लेकर पर्यटन विभाग ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। समझा जाता है कि इसी माह से योजना को मूर्त रूप दे दिया जाएगा।

Wednesday, January 7, 2015

Now would be a new cadre of Varanasi Ganga Arti

दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती का रंग, रूप और भी निखरेगा। इसकी अद्भुत भव्यता में सुर- लय- ताल का रंग भी जुड़ेगा। इससे देश-विदेश के ख्यात कलाकार जोड़े जाएंगे। शास्त्रीय संगीत के साथ शिव तांडव समेत विभिन्न आयोजन भी इसमें शामिल किए जाएंगे। वहां बैठने के लिए इंतजाम भी स्थायी किए जाएंगे जो बिना किसी भेदभाव पर्यटक व श्रद्धालु को 'पहले आओ -पहले पाओÓ की तर्ज पर उपलब्ध होंगे। 

घाटों के सौंदर्य को निखारने के लिए केंद्र व प्रदेश सरकार की रूचि को देखते हुए पर्यटन विभाग ने अपनी गतिविधियों को विस्तार देने का मन बनाया है। इसके लिए पर्यटन विभाग ने पिछले दिनों प्रदेश शासन को प्रस्ताव भेजा था। इस पर सैद्धांतिक सहमति मिल गई है।

 अब महज स्वीकृति आदेश व बजट के कागजात आने बाकी हैं। इसे लेकर पर्यटन विभाग ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। समझा जाता है कि इसी माह से योजना को मूर्त रूप दे दिया जाएगा। 

Morning-e-Benaras increased demand platform

अस्सी घाट पर सुर राग से पगे सुबह-ए-बनारस के मंच की मांग, अब राष्ट्रीय संस्थाओं की ओर से भी आने लगी है। राष्ट्रीय संस्था स्पीक मैके ने इसके लिए जिला सांस्कृतिक समिति से सहमति मांगी है। 

दिल्ली स्थित एक संगीत संस्थान ने शास्त्रीय रागों से सुबह की अगवानी के लिए सात दिन मंच संभालने का प्रस्ताव दिया है। संस्था की ओर से इसके लिए समिति को कलाकारों की सूची भी सौंप दी गई है। इसमें उनका जीवन वृत्त संलग्न करते हुए उनकी संबंधित राग में सिद्धहस्तता का भी उल्लेख किया है। 

स्पीक मैके ने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय ख्याति के कलाकारों के काशी में प्रस्तुतिकरण के लिए आगमन पर मंच साझा करने का प्रस्ताव दिया है। समिति सचिव डा. रत्नेश वर्मा ने बताया कि आयोजन की शुरुआत से पहले ही एक साल के लिए कलाकारों की सूची तैयार कर ली गई थी। अब नए प्रस्तावों पर समय निकाल कर अवसर दिया जाएगा। 

Thursday, December 18, 2014

Kashi Vishwanath temple priest Sewadar also become

काशी विश्वनाथ मंदिर में अब योग्य सेवादार भी पुजारी बनाए जाएंगे,

उनके साथ ही नि:शुल्क शास्त्रियों को भी अवसर मिलेगा। वाहन चालक व परिचारक भी योग्यता अनुसार इस पद पर प्रोन्नति पाएंगे। परिसर स्थित विग्रहों में पूजन आदि सुचारू बनाए रखने के लिए मंदिर प्रशासन ने शासन को इस संबंध में प्रस्ताव भेजा है।

मंदिर में फिलहाल 51 के सापेक्ष 21 पुजारी ही तैनात हैं। इनमें से नौ पुजारी

तीन पालियों में गर्भगृह में ड्यूटी देते हैं। इससे परिसर स्थित 12 विग्रहों के

लिए एक-एक पुजारी ही बचते हैं। उन्हें मंदिर खुलने से शयन आरती तक यानी भोर के चार बजे से रात 11 बजे तक लगातार ड्यूटी देनी होती है। उनके बीमार होने या किसी कारण से अवकाश पर जाने से विग्रह पूरी तरह खाली रह जाता है। हालांकि ऐसे समय में मंदिर की रीति नीति और पूजन विधि जानने वाले सेवादार इसकी कमान संभालते रहे हैं। पिछले दिनों मंदिर प्रशासन ने पुजारियों की कमी के संबंध में शासन का ध्यान दिलाया। वहां से प्रस्ताव मांगे जाने पर अधिकारियों को ऐसे सेवादारों का भी ध्यान आया। तय किया गया कि मंदिर में तैनात 20 सेवादारों में से पुजारी बनने की योग्यता रखने वालों को भी यह मौका दिया जाएगा। नि:शुल्क सेवा देने वाले शास्त्रियों से भी कमी पूरी की जाएगी, साथ ही वाहन चालक और परिचारकों को भी प्रोन्नत कर यह जिम्मेदारी दी जाएगी। बाद में सेवादार, परिचारक व वाहन चालक समेत रिक्त पदों को खुली भर्ती के तहत भरा जाएगा।

व्यवस्था सुचारू करने का प्रयास -

शासन को भेजे गए प्रस्ताव में गर्भगृह में तीन पालियों में नौ, 12 विग्रहों के

लिए तीन पालियों के लिए 36 और छह रिजर्व पुजारी की मांग की गई है। इन 51 पदों पर रीति नीति से परिचित सेवादारों व अन्य को तैनात करने का भी प्रस्ताव है।

-अजय अवस्थी, मुख्य कार्यपालक अधिकारी, श्रीविश्वनाथ दरबार। 

The model will ferry Dshashwmed Mumbai industrialist

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर दशाश्वमेध घाट को मॉडल घाट के

तौर पर विकसित करने व सुंदर बनाने की जिम्मेदारी मुंबई के उद्योगपतियों को

सौंपी गई है। यह काम उद्योगपति अजय पीरामल की द ब्रज फाउंडेशन के माध्यम से

किया जाएगा। इसके लिए गुरुवार को मुंबई व गुजरात के इंजीनियरों का दल दशाश्वमेध घाट का निरीक्षण करने भी पहुंचा।

दल में आर्किटेक्ट सुजग मोहंती, पीवीके रामेश्वर, जल विशेषज्ञ सुधीर जैन व

प्रोजेक्ट कोआर्डिनेटर गौरव गोला शामिल थे। बताते हैं कि एक सप्ताह में डीपीआर

बन जाएगा, इसके बाद जरूरी कोरम पूरा कर फरवरी माह से कार्य शुरू होगा। संस्था

से जुड़े पदाधिकारी विनीत नारायण ने बताया कि संस्था द्वारा वृंदावन में

सुंदरीकरण का कार्य किया गया है। अभी तक संस्था, भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े

धरोहरों को सुंदर बनाने का कार्य करती रही है। इस दौरान वृंदावन का ब्रह्मकुंड,

सेवा कुंज व गोवर्धन पर्वत की तलहटी में रुद्रकुंड का जीर्णोद्धार किया गया है।

पहली बार गंगा किनारे काशी के दशाश्वमेध घाट को सुंदर बनाकर माडल के तौर पर पेश करना है। बताया कि संस्था द्वारा सुंदरीकरण कार्य खुद के बजट से कराया जाता है,द ब्रज फाउंडेशन ने ब्रज क्षेत्र के पर्यटन विकास का पहली बार संपूर्ण मास्टर

प्लान उप्र सरकार के लिए वर्ष 2008 में बनाया था, जिसपर अब कार्य हो रहा है। आओ सजाएं कान्हा का ब्रज-सीरियल में यू-ट्यूब पर संस्था के प्रयासों की झलक देखी जा सकती है।

घाट का निरीक्षण करने के बाद सीडीओ विशाख जी के नेतृत्व में प्रशासनिक

अधिकारियों संग बैठक की। इसमें शांतिलाल जैन, राकेश मिड्ढा, बाबू महाराज, मनीष

आदि उपस्थित थे।

पीएम मोदी को दिखाएंगे योजना -

डीपीआर बनने के बाद संस्था द्वारा इसे पीएम मोदी के समक्ष भी रखा जाएगा, इसके

बाद इस नक्शे को हाईकोर्ट में भी दाखिल कर अनुमति ली जाएगी। उम्मीद जाहिर की कि कोर्ट भी अनुमति दे देगा क्योंकि कोई नया निर्माण नहीं होना है।

नव निर्माण नहीं, जीर्णोद्धार -

संस्था के पदाधिकारियों ने बताया कि नव निर्माण नहीं होगा, पुराने व ऐतिहासिक

धरोहरों का जीर्णोद्धार होगा। इस दौरान आधुनिक तकनीक इस्तेमाल कर निर्माण के

मूल स्वरूप को बरकरार रखा जाएगा। घाट व निर्माण जिस पत्थर से बना है,

जीर्णोद्धार भी उसी पत्थर से होगा, सीढिय़ों व घाटों का पत्थर भी बदले जाएंगे।

घाट को बेहद आकर्षक रूप दिया जाएगा। डस्टबिन, हरियाली, वायरिंग, रंग-रोगन आदि कार्य प्रदेश सरकार के शासनादेश अनुसार होगा। 

Wednesday, December 17, 2014

Kashi Vishwanath temple priest Sewadar also become

काशी विश्वनाथ मंदिर में अब योग्य सेवादार भी पुजारी बनाए जाएंगे,

उनके साथ ही नि:शुल्क शास्त्रियों को भी अवसर मिलेगा। वाहन चालक व परिचारक भी योग्यता अनुसार इस पद पर प्रोन्नति पाएंगे। परिसर स्थित विग्रहों में पूजन आदि सुचारू बनाए रखने के लिए मंदिर प्रशासन ने शासन को इस संबंध में प्रस्ताव भेजा है।

मंदिर में फिलहाल 51 के सापेक्ष 21 पुजारी ही तैनात हैं। इनमें से नौ पुजारी

तीन पालियों में गर्भगृह में ड्यूटी देते हैं। इससे परिसर स्थित 12 विग्रहों के

लिए एक-एक पुजारी ही बचते हैं। उन्हें मंदिर खुलने से शयन आरती तक यानी भोर के चार बजे से रात 11 बजे तक लगातार ड्यूटी देनी होती है। उनके बीमार होने या किसी कारण से अवकाश पर जाने से विग्रह पूरी तरह खाली रह जाता है। हालांकि ऐसे समय में मंदिर की रीति नीति और पूजन विधि जानने वाले सेवादार इसकी कमान संभालते रहे हैं। पिछले दिनों मंदिर प्रशासन ने पुजारियों की कमी के संबंध में शासन का ध्यान दिलाया। वहां से प्रस्ताव मांगे जाने पर अधिकारियों को ऐसे सेवादारों का भी ध्यान आया। तय किया गया कि मंदिर में तैनात 20 सेवादारों में से पुजारी बनने की योग्यता रखने वालों को भी यह मौका दिया जाएगा। नि:शुल्क सेवा देने वाले शास्त्रियों से भी कमी पूरी की जाएगी, साथ ही वाहन चालक और परिचारकों को भी प्रोन्नत कर यह जिम्मेदारी दी जाएगी। बाद में सेवादार, परिचारक व वाहन चालक समेत रिक्त पदों को खुली भर्ती के तहत भरा जाएगा।

व्यवस्था सुचारू करने का प्रयास -

शासन को भेजे गए प्रस्ताव में गर्भगृह में तीन पालियों में नौ, 12 विग्रहों के

लिए तीन पालियों के लिए 36 और छह रिजर्व पुजारी की मांग की गई है। इन 51 पदों पर रीति नीति से परिचित सेवादारों व अन्य को तैनात करने का भी प्रस्ताव है।

-अजय अवस्थी, मुख्य कार्यपालक अधिकारी, श्रीविश्वनाथ दरबार। 

Tuesday, December 9, 2014

Have not seen a picture of the morning-e-Benaras Facebook page

फेसबुक पर नहीं हैं सुबह-ए-बनारस की तस्वीरें। इस काम में पर्यटन विभाग महज रस्म अदायगी कर रहा है। सुबह-ए-बनारस के फेसबुक पेज पर दिसंबर माह की एक भी तस्वीर अपडेट नहीं है।

गंगा आरती के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों की तस्वीर व गतिविधियों को फेसबुक पर अपडेट करने का जिम्मा पर्यटन विभाग का है। यह काम विभाग बेहतर ढंग से नहीं कर रहा है। देश दुनिया के लोग इंटरनेट पर सुबह-ए-बनारस देखना चाहते हैं, उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया है।

24 नवंबर को अस्सी घाट पर सुबह-ए-बनारस में गंगा आरती होने के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन हुआ किंतु कार्यक्रम का लुफ्त इंटरनेट पर उठा पाना संभव नहीं होगा क्योंकि तस्वीरें अपलोड नहीं हैं।

छात्रों ने संभाली कमान- सुबह-ए-बनारस देखने वालों में बीएचयू के छात्रों की संख्या अधिक है। वे कार्यक्रम देखने के साथ ही वहां की तस्वीर फेसबुक पर अपडेट करते हैं। तस्वीर को अपडेट करने का काम पर्यटन विभाग को करना चाहिए था किंतु यह काम दर्शक की भूमिका में वहां मौजूद बीएचयू के छात्र कर रहे हैं।

Why, Varanasi's Vishwanath temple

मोक्ष नगरी काशी में मुक्ति के लिए तारक मंत्र देने वाले देवाधिदेव के ही दरबार की दीवारें कमजोर हो गईं। महारानी अहिल्याबाई द्वारा बनवाए गए वही शिखर जिनपर महाराजा रणजीत सिंह ने 880 किलो सोना मढ़वाया। आज शेष शिखरों पर नाम मात्र सोना चढ़वाने में प्रशासन की सांस फूली जा रही है। इसके लिए दीवारों की मजबूती परखी जा रही है।

इसके लिए चार माह पहले रुड़की की संस्था सीबीआरआइ को जिम्मेदारी दी गई लेकिन रिपोर्ट का अब तक इंतजार है। गौर करने की बात यह कि आखिर यह स्थित आई ही क्यों। वर्ष 1983 में दुस्साहसिक चोरी के बाद महंती परंपरा खत्म कर दी गई। काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम 1983 के तहत अधिग्रहण कर निगरानी के लिए न्यास का गठन कर दिया गया। साथ ही व्यवस्थापन के लिए कार्यपालक समिति बना दी गई। तर्क हो सकता है कि सुरक्षा या संरक्षा का भला भोले भाले पुरोहितों को क्या ज्ञान लेकिन गौर करने की बात यह कि विशेषीकृत विभाग व विशेषज्ञों की टीम के बाद भी बिना समझे-बुझे एक दशक पहले रासायनिक केमिकल दीवार पर पोत दिए गए। सैंड स्टोन जिसे मंदिर की दीवारें बनी हैं, वह पोरस होता है। इस कारण वह कैपिलरी एक्शन के कारण जमीन से पानी सोख लेता है। घुलनशील लवण भी इसमें साथ आते हैं जब इसका वाष्पीकरण होता है पानी तो उड़ जाता है लेकिन लवण रह जाता है। यह बरसात होने पर उसमें घुलकर दीवारों से बाहर आता है लेकिन एनामिल पेंट पोताई के कारण वाष्पीकरण बंद हो गया और लवण उसमें ही जमने लगे।

लिहाजा पत्थरों का क्षरण और पपड़ी रूप में गिरने लगी। बाद में एनामिल पेंट हटाया गया लेकिन इसका भी दुष्प्रभाव दीवारों को झेलना पड़ा। वास्तव में समय रहते मंदिर को धरोहर घोषित कर संरक्षित कर लिया जाता तो हालत यहां तक आती ही नहीं। अन्य संरक्षित स्थलों की तरह इस मंदिर में निर्माण कार्य उसके मुताबिक ही किए जाते।

एएसआइ जागे तब बात बढ़े आगे- प्राचीन देवालयों, स्मारकों, भवनों व स्थलों को धरोहर के रूप में संरक्षित करने के लिए प्रदेश में राज्य पुरातत्व विभाग तो केंद्र में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) है। बनारस में सारनाथ उसके ही अधीन संरक्षित है। इसके अलावा इस संगठन ने कई मंदिरों, मकबरों, स्थलों व कला, श्रृंगार व सामरिक सामग्रियों को प्राचीन संस्मारक और पुरातत्वीय स्थल तथा अवशेष अधिनियम 1958 के तहत राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया है। इसके जरिए संबंधित स्थलों को संरक्षित कर मूल रूप में बरकरार रखा गया है। इस तरह की व्यवस्था होने के बाद ही विश्व धरोहर के लिए यूनाइटेड नेशन्स एजुकेशनल ऐंड कल्चरल आर्गनाइजेशन (यूनेस्को) को प्रस्ताव भेजा जा सकेगा।

Source: Rashifal 2015

Monday, December 8, 2014

The network connects many towns in the world, India is not a single city

पूरी काशी को विश्व धरोहर बनाने को वादे भले दिल को सुकून देते हों लेकिन यह जानकर हैरानी होगी कि लाखों लोगों की आस्था का केंद्र काशी विश्वनाथ मंदिर, केंद्र या राज्य स्तरीय धरोहर सूची में नहीं है जबकि राज्य पुरातत्व विभाग की धरोहर सूची में प्रदेश के 141 स्थल हैं, इनमें से महज छह काशी में हैं जिन्हें क्षेत्रीय पुरातत्व इकाई सहेजती और संरक्षित करती है।

इसमें मंदिरों के नाम पर महज कर्दमेश्वर महादेव मंदिर और गुरुधाम मंदिर शामिल हैं। इसके अलावा कबीर प्राकट्य स्थल तालाब, बकरिया कुंड का 32 खंभा और 32 खंभा सिटी स्टेशन शामिल हैं। इकाई इनकी देख रेख के साथ ही साज संवार उसके मूलरूप में करती है। इसमें गुरुधाम और कर्दमेश्वर में कार्य भी चल रहा है। जीर्ण हाल पड़े इन मंदिरों को उनके मूलरूप में उसी विधा और पदार्थो से मरम्मत की जा रही है। इसके पीछे तर्क यह कि इस स्थल को श्रद्धालु हित में निरंतर सजाया संवारा और विस्तार किया जा रहा है। ऐसे में उसका मूल स्वरूप बहुत ही बदल चुका है, वहीं भारत सरकार के अधीन पुरातत्व सर्वेक्षण की धरोहर सूची में देश भर में 3700 से अधिक स्थल हैं। इनमें से 20 बनारस में हैं, जिन्हें संरक्षित किया जा रहा। इसमें चौखंडी स्तूप, धमेख स्तूप समेत सारनाथ तो है ही, राजघाट स्थित लालखां मकबरा, संस्कृति विश्वविद्यालय के मुख्य भवन के पिछले हिस्से में स्थित स्तंभ भी शामिल है।

केंद्रीय इकाई बना रही डेटा बैंक -इन सबके बीच सुकून देने वाली खबर यह है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इकाई बनारस में महत्वपूर्ण स्थलों का डेटा बैंक बना रही है। भारत सरकार की योजना के तहत इसकी कवायद शुरू कर दी गई है। पहले चरण में रामनगर व बीएचयू से खोजवा तक को रखा गया है। इसमें कुछ घाट भी शामिल किए गए हैं। अगले चरण में क्रमश: पूरा शहर और अंचल इसकी जद में होगा। इनमें प्राचीन धरोहरों को सूचीबद्ध किया जाएगा और उनके संरक्षण के बारे में विचार किया जाएगा। अधीक्षण पुरातत्वविद अजय श्रीवास्तव के अनुसार प्रयास है कि फिलहाल सभी ऐसे स्थलों को सूचीबद्ध करने का प्रयास किया जा रहा है जो धरोहर का रुतबा पा सकते हैं।

शताब्दियों से पुष्पित पल्लवित परंपरा की थाती या कहें समूची काशी यहां के रहनवारों के दिल-दिमाग में धरोहर से बड़ा रुतबा रखती है। इसकी एक झलक पाने की आस परदेसियों तक में जगती है जो उन्हें यहां बार बार खींच ले आती है। तमाम देवालय, इमारतें, धर्म-अध्यात्म, तीज त्योहार, रीति रिवाज, बात-व्यवहार, परंपरा, खानपान व लोक कला की छाप हर एक के हृदय पर उतर जाती है। इतना सब होने के बाद भी बात केवल मान लेने तक रह जाती है। वास्तव में इसके लिए अब तक दिल से प्रयास ही नहीं किए गए कि हेरिटेज बनारस के दावे पर वैश्विक मुहर लगे। केवल बात और जज्बात से भी आगे की उम्मीद जगे। गौर करने की बात यह कि बनारस में ले देकर महज सारनाथ को ही विश्व हेरिटेज के लिए एक दशक पहले भेजा गया। इसमें भी अभी तक सफलता नहीं मिल सकी है।

हालांकि वल्र्ड हेरिटेज के संबंध में यूनेस्को के दिशा निर्देशों के हवाले से विशेषज्ञों का मानना है कि बनारस की कुछ मूर्त थातियों के साथ ही अमूर्त धरोहरें इस सूची में सहज ही स्थान बना सकती हैं। मुरीदों के दिलों से आगे बढ़कर उस मुकाम तक जा सकती हैं।

अमूर्त धरोहर - रीति रिवाज, खानपान, भाषा व बोली, लोक कला, तीज त्योहार, वाचिक परंपरा, शिल्प, पारिवेशिक कला के साथ ही व्यवहार, मान्यता, ज्ञान, कौशल और संगीत समेत वह सभी अनूठापन जिसे हम देख भले न पाएं लेकिन महसूस कर मगन हो जाएं। इसका आकलन करें तो बनारसीपन और बतकही का काशिका अंदाज, बनारसी घराना, शिष्य परंपरा और अनूठे सुर साज इसमें जगह पा सकते हैं। भला रामनगर व चित्रकूट समेत इस मोहल्ले से उस मोहल्ले तक घूमती बनारस की रामलीला, नाटी इमली का भरत मिलाप, चेतगंज समेत अन्य कई मोहल्लों की नक्कटैया, तुलसीघाट की नागनथैया लीला समेत ऐसी परंपराएं जो आधुनिकता की दौड़ में अपनी जगह से इंच भर डिगी नहीं, ये सभी जगह बना सकती हैं।

ऐसे ही खानपान और उन्हें जीमने का अंदाज, शिल्प और अनूठे रीति रिवाज भी जगह बना सकते हैं। इसमेंईंट पत्थर की दीवारों भले न हों लेकिन अपने अंदाज से बनारस तो होगा ही।

नेटवर्क में शामिल होने के बाद विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र शहर बन जाएगा। इससे इस उद्यम में भी विकास होगा। इसके अलावा कई और फायदे हैं जो इस नेटवर्क में जुड़े शहरों को फायदा मिलेगा। बताया कि इस नेटवर्क में 10 से अधिक देशों के शहर जुड़े हैं। हालांकि भारत का एक भी शहर नहीं शामिल है। भरोसा जताया कि आगे विस्तारित होगा तो इस कड़ी में बनारस के भी शामिल होने की प्रबल संभावना रहेगी।

You know, now just a click Kashi appeared on ...

काशी की महत्ता को वैश्विक स्तर पर पहुंचाने की दिशा में काशी हिंदू विश्वविद्यालय व महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के विद्यार्थियों ने पहल की है। इन्होंने इस शहर की हर छोटी बड़ी जानकारी जुटाई और इसे वेबसाइट पर डाल दिया है। बस एक क्लिक पर उपलब्ध होंगे जरूरी फोन नंबर, कार्यक्रम, बनारस की ऐतिहासिक व पौराणिक जानकारी।

छात्रों का कहना है कि इसे चार प्रमुख भागों में बांटा गया है। जीवंत नगरी काशी को इंटरनेट पर नवीन तरीके से लाना बड़ी उपलब्धि है।

नाम- छात्रों की यह वेबसाइट है ''kashiyama.com, इनका कहना है कि काशी वैश्विक महत्व की नगरी है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र भी है। इसे तैयार करने वाले छात्रों में शामिल हैं सुमित, अंकुर सिंह, अजित शुक्ला और सुदीप्त मणि। विद्यापीठ के डा. अनिल कुमार उपाध्याय, डा. प्रभाशंकर मिश्र, डा. केशरीनंदन शर्मा आदि ने इन विद्यार्थियों को प्रेरित किया और सुझाव भी दिए।

वेबसाइट पर सुबह-ए-बनारस, गीत-नृत्य व वाद्य की होगी गूंज-

कबीरचौरा मठ में सहेज कर रखी गई 700 पांडुलिपियों का केंद्रीय संस्कृति विभाग डिजिटलाइजेशन कराएगा। इसमें कबीर की वाणियों के साथ ही रामायण की भी पांडुलिपि शामिल है। निरीक्षण के लिए पहुंचे संस्कृति सचिव ने मठ का कोना कोना देखा। फिजी के भक्तों द्वारा 1033 में बनवाए गए साधना स्थल के बारे में जानकारी ली और कबीर से जुड़ी वस्तुओं को देखा। चोरी गई माला के बारे में भी आचार्य विवेकदास से जानकारी ली। नीरू नीमा टीला पर बनाए जा रहे कबीर झोपड़ी स्थल के बारे में भी जानकारी ली।

प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र काशी में संगीत नाटक अकादमी अनूठा बनारस उत्सव सजाएगा। बनारस से जुड़े गीत-संगीत तो होंगे ही लोक नृत्य, ललित कला व साहित्यिक थाती सजी संवरी नजर आएगी। माह के अंत में 25 से 27 दिसंबर तक आयोजन होगा जिसकी झलक बीएचयू से सारनाथ तक नजर आएगी। बनारस के सांसद व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस दौरान अपने संसदीय क्षेत्र में मौजूद होंगे, ऐसे में इस अनूठे उत्सव का श्रीगणेश भी उनके हाथों हो सकता है।

संस्कृति सचिव रवींद्र सिंह ने शनिवार को काशी हिंदू विश्वविद्यालय से सारनाथ तक विभिन्न स्थलों का निरीक्षण किया, इसका खाका भी खींचा। इसमें तय किया गया कि सांस्कृतिक आयोजन बीएचयू और सामने घाट स्थित ज्ञानप्रवाह में होंगे। इसमें काशी की विलुप्त हो रही परंपराओं को भी खास तौर पर स्थान दिया जाएगा। इसका समापन सारनाथ स्थित धमेख स्तूप के सामने होगा। इस बीच बनारस से जुड़े अन्य स्थलों पर भी विभिन्न आयोजन किए जाएंगे। इन्हें हरी झंडी अभी सोमवार तक मिल पाएगी। अधिकारियों के साथ बैठक में संस्कृति सचिव ने अस्सी घाट पर सुर राग से संवर रहे सुबह ए बनारस को केंद्रीय संस्कृति विभाग की वेबसाइट पर रोजाना अपडेट करने का निर्देश दिया। इसमें गंगा आरती, वेद मंत्रोच्चार, सुर साज और पूरा आयोजन समाहित होगा। इसी तर्ज पर सारनाथ में भी उन्होंने नैत्यिक आयोजन का निर्देश दिया।

संवरेगा भारत माता मंदिर- संस्कृति सचिव भारत माता मंदिर देख अचंभित हो उठे। इसका ठीक रख रखाव न होते देख हैरान भी हुए। प्रस्ताव लेकर इसमें हुई टूट फूट दूर करने का अधीक्षण पुरातत्वविद् अजय श्रीवास्तव को निर्देश दिया।

तिब्बती आयुर्वेद पद्धति का विस्तार-संस्कृति सचिव ने केंद्रीय तिब्बती विश्वविद्यालय में पारंपरिक कला थंका, तिब्बती काष्ठ कला के नमूने और भोट भाषा के ग्रंथ देखे। तिब्बती आयुर्वेद पद्धति सोवा रिग्पा पद्धति को विस्तार का निर्देश दिया।

Saturday, December 6, 2014

Buried in the walls full of Baba Vishwanath

बाबा दरबार में ही देवाधिदेव महादेव का बखान करते चित्र और ब्योरे छोटी-छोटी दीवारों के पीछे दफन हो गए। बाबा के गर्भगृह व रानी भवानी मंदिर के बीच श्रद्धालुओं को जप के लिए दो बरामदे बनाए गए थे। इनकी दीवारों पर लाखों रुपये खर्च कर तीन बाई छह के मार्बल पर भित्ति चित्र लगाए गए थे। शिव पार्वती और गंगा तो थीं ही महादेव का काशी आगमन व मर्णिकर्णिका का महात्म्य बताते चित्र और श्लोक लिखे गए थे। इन्हें कलात्मक तरीके से सजाया गया था और हिंदी में अर्थ भी बताया गया था। अब विभिन्न प्रयोजनों के लिए छोटे छोटे काउंटर बना दिए गए और इसके पीछे बड़ा उद्देश्य धरा रह गया। 

दिसंबर 2008 में तत्कालीन जिलाधिकारी नितिन रमेश गोकर्ण ने 9.50 लाख रुपये की लागत से इसका निर्माण कराया था। इसका उद्देश्य था कि श्रद्धालुओं की जिज्ञासा का समाधान हो और ज्ञान भी बढ़े। यही नहीं रानी भवानी परिसर को इसी आशय से खरीदा भी गया था कि मंदिर और इसके बीच की दीवार तोड़ कर श्रद्धालुओं को पूजा पाठ व जाप के लिए स्थान उपलब्ध कराया जा सके। इसके लिए रानी भवानी के बीच दो मंदिर और उत्तर व दक्षिण में दो बरामदे बनाए गए। अब उत्तर के बरामदे में सिर्फ केबिन और काउंटर भरे हैं। मंदिर के दक्षिणी निकास द्वार व रानी भवानी निकास द्वार के पास एक एक काउंटर तो तारकेश्वर मंदिर के पास कैंप कार्यालय बना दिया गया। वह भी तब जबकि मंदिर का एक बड़ा दफ्तर सरस्वती फाटक पर है। पहले यहां ही दान या चढ़ावे में मिला कैश वगैरह गिना जाता रहा। अब यह सब भी इसी बरामदे में किया जा रहा है। आफिस, कैश काउंटर, कैश गिनती केबिन, प्रसाद केबिन के अलावा कई केबिन ऐसे भी जो निष्प्रयोज्य हैं। यही नहीं इसी हिस्से में बनाया गया लंगर हाल भी सीसीटीवी रूम के रूप में उपयोग किया जा रहा है। 
 
ध्यान में बाधा - रानी भवानी परिसर को मंदिर में मिलाने के लिए दीवार तोड़े जाने का धर्म गुरुओं ने विरोध किया था। उनका मानना था कि मंदिर का मूलरूप प्रभावित होगा लेकिन श्रद्धालु हित को ध्यान में रखते हुए यह किया गया। व्यवस्था कुछ सालों तक चली अब मंदिर प्रशासन ने किए धरे पर पानी फेर दिया। ऐसे में श्रद्धालु बाबा दरबार में जप कर पाना तो दूर हाथ जोड़े दो मिनट खड़े तक नहीं हो सकते।