पूरी काशी को विश्व धरोहर बनाने को वादे भले दिल को सुकून देते हों लेकिन यह जानकर हैरानी होगी कि लाखों लोगों की आस्था का केंद्र काशी विश्वनाथ मंदिर, केंद्र या राज्य स्तरीय धरोहर सूची में नहीं है जबकि राज्य पुरातत्व विभाग की धरोहर सूची में प्रदेश के 141 स्थल हैं, इनमें से महज छह काशी में हैं जिन्हें क्षेत्रीय पुरातत्व इकाई सहेजती और संरक्षित करती है।
इसमें मंदिरों के नाम पर महज कर्दमेश्वर महादेव मंदिर और गुरुधाम मंदिर शामिल हैं। इसके अलावा कबीर प्राकट्य स्थल तालाब, बकरिया कुंड का 32 खंभा और 32 खंभा सिटी स्टेशन शामिल हैं। इकाई इनकी देख रेख के साथ ही साज संवार उसके मूलरूप में करती है। इसमें गुरुधाम और कर्दमेश्वर में कार्य भी चल रहा है। जीर्ण हाल पड़े इन मंदिरों को उनके मूलरूप में उसी विधा और पदार्थो से मरम्मत की जा रही है। इसके पीछे तर्क यह कि इस स्थल को श्रद्धालु हित में निरंतर सजाया संवारा और विस्तार किया जा रहा है। ऐसे में उसका मूल स्वरूप बहुत ही बदल चुका है, वहीं भारत सरकार के अधीन पुरातत्व सर्वेक्षण की धरोहर सूची में देश भर में 3700 से अधिक स्थल हैं। इनमें से 20 बनारस में हैं, जिन्हें संरक्षित किया जा रहा। इसमें चौखंडी स्तूप, धमेख स्तूप समेत सारनाथ तो है ही, राजघाट स्थित लालखां मकबरा, संस्कृति विश्वविद्यालय के मुख्य भवन के पिछले हिस्से में स्थित स्तंभ भी शामिल है।
केंद्रीय इकाई बना रही डेटा बैंक -इन सबके बीच सुकून देने वाली खबर यह है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इकाई बनारस में महत्वपूर्ण स्थलों का डेटा बैंक बना रही है। भारत सरकार की योजना के तहत इसकी कवायद शुरू कर दी गई है। पहले चरण में रामनगर व बीएचयू से खोजवा तक को रखा गया है। इसमें कुछ घाट भी शामिल किए गए हैं। अगले चरण में क्रमश: पूरा शहर और अंचल इसकी जद में होगा। इनमें प्राचीन धरोहरों को सूचीबद्ध किया जाएगा और उनके संरक्षण के बारे में विचार किया जाएगा। अधीक्षण पुरातत्वविद अजय श्रीवास्तव के अनुसार प्रयास है कि फिलहाल सभी ऐसे स्थलों को सूचीबद्ध करने का प्रयास किया जा रहा है जो धरोहर का रुतबा पा सकते हैं।
शताब्दियों से पुष्पित पल्लवित परंपरा की थाती या कहें समूची काशी यहां के रहनवारों के दिल-दिमाग में धरोहर से बड़ा रुतबा रखती है। इसकी एक झलक पाने की आस परदेसियों तक में जगती है जो उन्हें यहां बार बार खींच ले आती है। तमाम देवालय, इमारतें, धर्म-अध्यात्म, तीज त्योहार, रीति रिवाज, बात-व्यवहार, परंपरा, खानपान व लोक कला की छाप हर एक के हृदय पर उतर जाती है। इतना सब होने के बाद भी बात केवल मान लेने तक रह जाती है। वास्तव में इसके लिए अब तक दिल से प्रयास ही नहीं किए गए कि हेरिटेज बनारस के दावे पर वैश्विक मुहर लगे। केवल बात और जज्बात से भी आगे की उम्मीद जगे। गौर करने की बात यह कि बनारस में ले देकर महज सारनाथ को ही विश्व हेरिटेज के लिए एक दशक पहले भेजा गया। इसमें भी अभी तक सफलता नहीं मिल सकी है।
हालांकि वल्र्ड हेरिटेज के संबंध में यूनेस्को के दिशा निर्देशों के हवाले से विशेषज्ञों का मानना है कि बनारस की कुछ मूर्त थातियों के साथ ही अमूर्त धरोहरें इस सूची में सहज ही स्थान बना सकती हैं। मुरीदों के दिलों से आगे बढ़कर उस मुकाम तक जा सकती हैं।
अमूर्त धरोहर - रीति रिवाज, खानपान, भाषा व बोली, लोक कला, तीज त्योहार, वाचिक परंपरा, शिल्प, पारिवेशिक कला के साथ ही व्यवहार, मान्यता, ज्ञान, कौशल और संगीत समेत वह सभी अनूठापन जिसे हम देख भले न पाएं लेकिन महसूस कर मगन हो जाएं। इसका आकलन करें तो बनारसीपन और बतकही का काशिका अंदाज, बनारसी घराना, शिष्य परंपरा और अनूठे सुर साज इसमें जगह पा सकते हैं। भला रामनगर व चित्रकूट समेत इस मोहल्ले से उस मोहल्ले तक घूमती बनारस की रामलीला, नाटी इमली का भरत मिलाप, चेतगंज समेत अन्य कई मोहल्लों की नक्कटैया, तुलसीघाट की नागनथैया लीला समेत ऐसी परंपराएं जो आधुनिकता की दौड़ में अपनी जगह से इंच भर डिगी नहीं, ये सभी जगह बना सकती हैं।
ऐसे ही खानपान और उन्हें जीमने का अंदाज, शिल्प और अनूठे रीति रिवाज भी जगह बना सकते हैं। इसमेंईंट पत्थर की दीवारों भले न हों लेकिन अपने अंदाज से बनारस तो होगा ही।
नेटवर्क में शामिल होने के बाद विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र शहर बन जाएगा। इससे इस उद्यम में भी विकास होगा। इसके अलावा कई और फायदे हैं जो इस नेटवर्क में जुड़े शहरों को फायदा मिलेगा। बताया कि इस नेटवर्क में 10 से अधिक देशों के शहर जुड़े हैं। हालांकि भारत का एक भी शहर नहीं शामिल है। भरोसा जताया कि आगे विस्तारित होगा तो इस कड़ी में बनारस के भी शामिल होने की प्रबल संभावना रहेगी।
इसमें मंदिरों के नाम पर महज कर्दमेश्वर महादेव मंदिर और गुरुधाम मंदिर शामिल हैं। इसके अलावा कबीर प्राकट्य स्थल तालाब, बकरिया कुंड का 32 खंभा और 32 खंभा सिटी स्टेशन शामिल हैं। इकाई इनकी देख रेख के साथ ही साज संवार उसके मूलरूप में करती है। इसमें गुरुधाम और कर्दमेश्वर में कार्य भी चल रहा है। जीर्ण हाल पड़े इन मंदिरों को उनके मूलरूप में उसी विधा और पदार्थो से मरम्मत की जा रही है। इसके पीछे तर्क यह कि इस स्थल को श्रद्धालु हित में निरंतर सजाया संवारा और विस्तार किया जा रहा है। ऐसे में उसका मूल स्वरूप बहुत ही बदल चुका है, वहीं भारत सरकार के अधीन पुरातत्व सर्वेक्षण की धरोहर सूची में देश भर में 3700 से अधिक स्थल हैं। इनमें से 20 बनारस में हैं, जिन्हें संरक्षित किया जा रहा। इसमें चौखंडी स्तूप, धमेख स्तूप समेत सारनाथ तो है ही, राजघाट स्थित लालखां मकबरा, संस्कृति विश्वविद्यालय के मुख्य भवन के पिछले हिस्से में स्थित स्तंभ भी शामिल है।
केंद्रीय इकाई बना रही डेटा बैंक -इन सबके बीच सुकून देने वाली खबर यह है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इकाई बनारस में महत्वपूर्ण स्थलों का डेटा बैंक बना रही है। भारत सरकार की योजना के तहत इसकी कवायद शुरू कर दी गई है। पहले चरण में रामनगर व बीएचयू से खोजवा तक को रखा गया है। इसमें कुछ घाट भी शामिल किए गए हैं। अगले चरण में क्रमश: पूरा शहर और अंचल इसकी जद में होगा। इनमें प्राचीन धरोहरों को सूचीबद्ध किया जाएगा और उनके संरक्षण के बारे में विचार किया जाएगा। अधीक्षण पुरातत्वविद अजय श्रीवास्तव के अनुसार प्रयास है कि फिलहाल सभी ऐसे स्थलों को सूचीबद्ध करने का प्रयास किया जा रहा है जो धरोहर का रुतबा पा सकते हैं।
शताब्दियों से पुष्पित पल्लवित परंपरा की थाती या कहें समूची काशी यहां के रहनवारों के दिल-दिमाग में धरोहर से बड़ा रुतबा रखती है। इसकी एक झलक पाने की आस परदेसियों तक में जगती है जो उन्हें यहां बार बार खींच ले आती है। तमाम देवालय, इमारतें, धर्म-अध्यात्म, तीज त्योहार, रीति रिवाज, बात-व्यवहार, परंपरा, खानपान व लोक कला की छाप हर एक के हृदय पर उतर जाती है। इतना सब होने के बाद भी बात केवल मान लेने तक रह जाती है। वास्तव में इसके लिए अब तक दिल से प्रयास ही नहीं किए गए कि हेरिटेज बनारस के दावे पर वैश्विक मुहर लगे। केवल बात और जज्बात से भी आगे की उम्मीद जगे। गौर करने की बात यह कि बनारस में ले देकर महज सारनाथ को ही विश्व हेरिटेज के लिए एक दशक पहले भेजा गया। इसमें भी अभी तक सफलता नहीं मिल सकी है।
हालांकि वल्र्ड हेरिटेज के संबंध में यूनेस्को के दिशा निर्देशों के हवाले से विशेषज्ञों का मानना है कि बनारस की कुछ मूर्त थातियों के साथ ही अमूर्त धरोहरें इस सूची में सहज ही स्थान बना सकती हैं। मुरीदों के दिलों से आगे बढ़कर उस मुकाम तक जा सकती हैं।
अमूर्त धरोहर - रीति रिवाज, खानपान, भाषा व बोली, लोक कला, तीज त्योहार, वाचिक परंपरा, शिल्प, पारिवेशिक कला के साथ ही व्यवहार, मान्यता, ज्ञान, कौशल और संगीत समेत वह सभी अनूठापन जिसे हम देख भले न पाएं लेकिन महसूस कर मगन हो जाएं। इसका आकलन करें तो बनारसीपन और बतकही का काशिका अंदाज, बनारसी घराना, शिष्य परंपरा और अनूठे सुर साज इसमें जगह पा सकते हैं। भला रामनगर व चित्रकूट समेत इस मोहल्ले से उस मोहल्ले तक घूमती बनारस की रामलीला, नाटी इमली का भरत मिलाप, चेतगंज समेत अन्य कई मोहल्लों की नक्कटैया, तुलसीघाट की नागनथैया लीला समेत ऐसी परंपराएं जो आधुनिकता की दौड़ में अपनी जगह से इंच भर डिगी नहीं, ये सभी जगह बना सकती हैं।
ऐसे ही खानपान और उन्हें जीमने का अंदाज, शिल्प और अनूठे रीति रिवाज भी जगह बना सकते हैं। इसमेंईंट पत्थर की दीवारों भले न हों लेकिन अपने अंदाज से बनारस तो होगा ही।
नेटवर्क में शामिल होने के बाद विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र शहर बन जाएगा। इससे इस उद्यम में भी विकास होगा। इसके अलावा कई और फायदे हैं जो इस नेटवर्क में जुड़े शहरों को फायदा मिलेगा। बताया कि इस नेटवर्क में 10 से अधिक देशों के शहर जुड़े हैं। हालांकि भारत का एक भी शहर नहीं शामिल है। भरोसा जताया कि आगे विस्तारित होगा तो इस कड़ी में बनारस के भी शामिल होने की प्रबल संभावना रहेगी।
Source: Horoscope 2015
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