वृंदावन में बनायी जाने वाली कान्हा की पोशाक के दीवाने पूरी दुनिया में हंै। हर साल करोड़ों रुपये का इसका कारोबार है। यह कारोबार यहां कुटीर उद्योग बन चुका है। इन दिनों ठंड के मौसम में ठाकुर जी के लिए रजाई-गद्दे आदि भी बनाए जाते हैं। हिंदू परिवार तो इस कारोबार से जुड़ा ही है, अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी कान्हा की पोशाक बनाते हैं।
धर्मनगरी में भले ही मुस्लिम समाज के लोगों की संख्या कम हो, लेकिन ठाकुरजी को सजाने-संवारने का हुनर मुस्लिम समाज के कारीगरों में भी कम नहीं है। पोशाक बनाने वाली गृहणी योगमाया का कहना है कि उनके परिवार के कई लोग इस कारोबार में लगे हुए हैं। ठाकुरजी की पोशाक बनाने के लिये उन्हें मंदिरों से आर्डर मिलते हैं। इन दिनों तो ठाकुरजी के लिये रजाई-गद्दे और छोटे-छोटे तकिये भी बनाये जा रहे हैं। बताया कि पोशाक बनाने में नगीना, मोती, जापानी पोत, चाइनीज डोरी, कौरा दबका, सितारा और रेशम आदि का प्रयोग होता है। रजाई-गद्दे बनाने में सूती कपड़े का अस्तर और ऊपर से शमीम कपड़े का इस्तेमाल होता है।
मुस्लिम भी जुड़े हैं कारोबार से -गौरानगर निवासी पोशाक कारोबारी बशीर, किशोरपुरा निवासी रफीक और मुन्ना ने बताया कि ठाकुरजी की पोशाक व मुकुट-श्रंगार के आयटम तैयार करने से उन्हें रोजगार मिला है। यह उनके ऊपर ठाकुर जी की कृपा का परिणाम है।
पोशाक कारोबारी इकराम बताते हैं कि इस्कॉन मंदिर के जरिए उन्हें पोशाक बनाने का आर्डर अमेरिका से लेकर ऑस्टेलिया, सिंगापुर, मलेशिया, साउथ अफ्रीका, ब्राजील, न्यूजीलैंड आदि देशों से मिलते रहते हैं। अमेरिका में न्यू वृंदावन के नाम से बड़ा मंदिर है। इस मंदिर के प्रबंधन से जुड़े लोग भी पोशाक-मुकुट के आर्डर देते हैं।
मथुरा दरवाजा मार्ग स्थित एक धर्मस्थल के एक कमरे में अल्पसंख्यक समुदाय के इकराम कुरैशी ठाकुरजी की पोशाक 15 साल की उम्र से बना रहे हैं। 37 साल हो गये उनको यह कारोबार करते-करते। इस कारोबार में अब वह अपने तीन पुत्रों आशिक, जावेद और साजिद का भी मार्गदर्शन कर रहे हैं।
धर्मनगरी में भले ही मुस्लिम समाज के लोगों की संख्या कम हो, लेकिन ठाकुरजी को सजाने-संवारने का हुनर मुस्लिम समाज के कारीगरों में भी कम नहीं है। पोशाक बनाने वाली गृहणी योगमाया का कहना है कि उनके परिवार के कई लोग इस कारोबार में लगे हुए हैं। ठाकुरजी की पोशाक बनाने के लिये उन्हें मंदिरों से आर्डर मिलते हैं। इन दिनों तो ठाकुरजी के लिये रजाई-गद्दे और छोटे-छोटे तकिये भी बनाये जा रहे हैं। बताया कि पोशाक बनाने में नगीना, मोती, जापानी पोत, चाइनीज डोरी, कौरा दबका, सितारा और रेशम आदि का प्रयोग होता है। रजाई-गद्दे बनाने में सूती कपड़े का अस्तर और ऊपर से शमीम कपड़े का इस्तेमाल होता है।
मुस्लिम भी जुड़े हैं कारोबार से -गौरानगर निवासी पोशाक कारोबारी बशीर, किशोरपुरा निवासी रफीक और मुन्ना ने बताया कि ठाकुरजी की पोशाक व मुकुट-श्रंगार के आयटम तैयार करने से उन्हें रोजगार मिला है। यह उनके ऊपर ठाकुर जी की कृपा का परिणाम है।
पोशाक कारोबारी इकराम बताते हैं कि इस्कॉन मंदिर के जरिए उन्हें पोशाक बनाने का आर्डर अमेरिका से लेकर ऑस्टेलिया, सिंगापुर, मलेशिया, साउथ अफ्रीका, ब्राजील, न्यूजीलैंड आदि देशों से मिलते रहते हैं। अमेरिका में न्यू वृंदावन के नाम से बड़ा मंदिर है। इस मंदिर के प्रबंधन से जुड़े लोग भी पोशाक-मुकुट के आर्डर देते हैं।
मथुरा दरवाजा मार्ग स्थित एक धर्मस्थल के एक कमरे में अल्पसंख्यक समुदाय के इकराम कुरैशी ठाकुरजी की पोशाक 15 साल की उम्र से बना रहे हैं। 37 साल हो गये उनको यह कारोबार करते-करते। इस कारोबार में अब वह अपने तीन पुत्रों आशिक, जावेद और साजिद का भी मार्गदर्शन कर रहे हैं।
Source: Horoscope 2015
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