ठंड का अहसास ब्रजवासियों को ही नहीं, ब्रज के राजा दाऊजी महाराज को भी होने लगा है। अगहन पूर्णिमा पर उनको शीतकालीन वस्त्र धारण कराने के साथ ही शनिवार से श्री दाऊजी महाराज पाटोत्सव व पूर्णिमा मेला का शुभारंभ हो जाएगा।
एक माह तक बलदेव नगरी श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रहेगी। दाऊजी महाराज को इसी दिन सर्दी से बचाने के लिए रजाई-गद्दा धारण कराए जाएंगे। मेले के दौरान मंदिर रोशनी से जगमगायेंगे। दाऊजी महाराज मंदिर में विग्रह का श्रंगार, विशेष श्रंगार व हीरे-जवाहरात धारण कराये जायेंगे तथा प्रात: धार्मिक कार्यक्रम, महाभिषेक, शहनाई वादन होगा तथा बलभद्र सहस्त्रनाम का पाठ मंदिर प्रांगण में होगा। शोभायात्रा निकाली जाएगी, शाम को मंदिर प्रांगण में भजन संध्या होगी। मंदिर के पुजारी रामनिवास शर्मा ने बताया कि इस दिन भगवान दाऊजी महाराज को शीतकालीन पोशाक धारण कराई जाएगी।
पांच शताब्दियों से प्रचलित यह मेला ब्रज मंडल का एकमात्र पर्व है जो निरंतर एक माह चलता है।
संवत 1638 में हुआ था प्राकट्य- हिंदू मान्यताओं के अनुसार दाऊजी महाराज के विग्रह का चमत्कारिक प्राकट्य मार्गशीर्ष पूर्णिमा संवत 1638 में हुआ था। इसी उपलक्ष्य में इस मेला का आयोजन किया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मंदिर का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र ब्रजनाभ ने कराया था, मंदिर में भगवान बलराम की आठ फुट ऊंची व तीन फुट चौड़ी मूर्ति है, जिसकी छाया शेषनाग कर रहे हैं। मंदिर के पीछे बलभद्र कुंड है, जिसे क्षीरसागर के नाम से भी जाना जाता है। इसी पूर्णिमा के दिन ठाकुरजी की प्रतिष्ठा मंदिर में हुई, इस उपलक्ष्य में बड़े उत्सव का आयोजन किया गया जो मेले के रूप में प्रसिद्ध हो गया। दाऊजी महाराज को इसी दिन सर्दी से बचाने के लिए रजाई-गद्दा धारण कराए जाते ।
अर्थ व्यवस्था को भी मजबूत करता मेला- एक माह के इस मेले में आस्था की बयार तो बहती है साथ ही लोगों की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होती है। ब्रज में हजारों लोगों का जीवन यापन मेले के द्वारा ही हो रहा है। इन मेलों का साल भर यह लोग इंतजार करते रहते हैं।
अवकाश की मांग-अगहन पूर्णिमा मेला को लेकर प्रतिवर्ष परिषदीय विद्यालयों में विकास खंड बल्देव में अवकाश रहता है, लेकिन इस बार अवकाश घोषित नहीं किया गया है। इसको लेकर प्राथमिक शिक्षक संघ के ब्लॉक अध्यक्ष ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी से अवकाश घोषित किए जाने की मांग की है।
सर्दी में बांकेबिहारी की सेवा में भी होते बदलाव -
शीत का प्रभाव बढ़ते ही सेवायतों द्वारा बांकेबिहारी को राहत देने के उपाय करने शुरू कर दिए जाते हैं। ढका बदन और फूलों से परहेज अब आराध्य की पूजा में होने लगा है। सनील की गर्म पोशाक और हीरे-जवाहरात का श्रृंगार बिहारीजी का आकर्षण का बढ़ा रहा है।
बांकेबिहारी के भक्त अपने आराध्य की सेवा में बदलते मौसम के साथ अहम बदलाव भी करते रहते हैं। सर्द हवाओं का प्रभाव बढ़ा तो ठाकुरजी की सेवा में फूलों से परहेज हो गया। नम फूलों से झरते पानी के कारण कहीं बांकेबिहारी को शीत का प्रभाव न हो इसी सोच ने उन्हें नमी वाले फूलों से दूर रखा जाने लगा है। हालांकि श्रद्धालु अब भी कमल और गुलाब की आकर्षक मालाओं का उपयोग उनकी पूजा में कर रहे हैं, लेकिन इन मालाओं का उपयोग सेवायत मात्र चरण स्पर्श करवा कर रहे हैं।
श्रृंगार किए बांकेबिहारी ने रंगबिरंगी सनील की गर्म पोशाक में भक्तों को दर्शन दिऐ तो भक्त निहाल हो गए। हीरे-जवाहरात के चमकते हार और मोती की मालाएं उनके गले में थी। सेवायतों ने बताया कि उन्हें टीका लगाने को चंदन में केसर का मिश्रण बढ़ा दिया गया है। बताया गया कि शीत के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए मंदिर के गर्भगृह में फूलों की सजावट से परहेज एक महीने कर दिया गया था। किंतु उनकी पूजा-अर्चना में फूलों का प्रयोग जरूर हो रहा है।
एक माह तक बलदेव नगरी श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रहेगी। दाऊजी महाराज को इसी दिन सर्दी से बचाने के लिए रजाई-गद्दा धारण कराए जाएंगे। मेले के दौरान मंदिर रोशनी से जगमगायेंगे। दाऊजी महाराज मंदिर में विग्रह का श्रंगार, विशेष श्रंगार व हीरे-जवाहरात धारण कराये जायेंगे तथा प्रात: धार्मिक कार्यक्रम, महाभिषेक, शहनाई वादन होगा तथा बलभद्र सहस्त्रनाम का पाठ मंदिर प्रांगण में होगा। शोभायात्रा निकाली जाएगी, शाम को मंदिर प्रांगण में भजन संध्या होगी। मंदिर के पुजारी रामनिवास शर्मा ने बताया कि इस दिन भगवान दाऊजी महाराज को शीतकालीन पोशाक धारण कराई जाएगी।
पांच शताब्दियों से प्रचलित यह मेला ब्रज मंडल का एकमात्र पर्व है जो निरंतर एक माह चलता है।
संवत 1638 में हुआ था प्राकट्य- हिंदू मान्यताओं के अनुसार दाऊजी महाराज के विग्रह का चमत्कारिक प्राकट्य मार्गशीर्ष पूर्णिमा संवत 1638 में हुआ था। इसी उपलक्ष्य में इस मेला का आयोजन किया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मंदिर का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र ब्रजनाभ ने कराया था, मंदिर में भगवान बलराम की आठ फुट ऊंची व तीन फुट चौड़ी मूर्ति है, जिसकी छाया शेषनाग कर रहे हैं। मंदिर के पीछे बलभद्र कुंड है, जिसे क्षीरसागर के नाम से भी जाना जाता है। इसी पूर्णिमा के दिन ठाकुरजी की प्रतिष्ठा मंदिर में हुई, इस उपलक्ष्य में बड़े उत्सव का आयोजन किया गया जो मेले के रूप में प्रसिद्ध हो गया। दाऊजी महाराज को इसी दिन सर्दी से बचाने के लिए रजाई-गद्दा धारण कराए जाते ।
अर्थ व्यवस्था को भी मजबूत करता मेला- एक माह के इस मेले में आस्था की बयार तो बहती है साथ ही लोगों की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होती है। ब्रज में हजारों लोगों का जीवन यापन मेले के द्वारा ही हो रहा है। इन मेलों का साल भर यह लोग इंतजार करते रहते हैं।
अवकाश की मांग-अगहन पूर्णिमा मेला को लेकर प्रतिवर्ष परिषदीय विद्यालयों में विकास खंड बल्देव में अवकाश रहता है, लेकिन इस बार अवकाश घोषित नहीं किया गया है। इसको लेकर प्राथमिक शिक्षक संघ के ब्लॉक अध्यक्ष ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी से अवकाश घोषित किए जाने की मांग की है।
सर्दी में बांकेबिहारी की सेवा में भी होते बदलाव -
शीत का प्रभाव बढ़ते ही सेवायतों द्वारा बांकेबिहारी को राहत देने के उपाय करने शुरू कर दिए जाते हैं। ढका बदन और फूलों से परहेज अब आराध्य की पूजा में होने लगा है। सनील की गर्म पोशाक और हीरे-जवाहरात का श्रृंगार बिहारीजी का आकर्षण का बढ़ा रहा है।
बांकेबिहारी के भक्त अपने आराध्य की सेवा में बदलते मौसम के साथ अहम बदलाव भी करते रहते हैं। सर्द हवाओं का प्रभाव बढ़ा तो ठाकुरजी की सेवा में फूलों से परहेज हो गया। नम फूलों से झरते पानी के कारण कहीं बांकेबिहारी को शीत का प्रभाव न हो इसी सोच ने उन्हें नमी वाले फूलों से दूर रखा जाने लगा है। हालांकि श्रद्धालु अब भी कमल और गुलाब की आकर्षक मालाओं का उपयोग उनकी पूजा में कर रहे हैं, लेकिन इन मालाओं का उपयोग सेवायत मात्र चरण स्पर्श करवा कर रहे हैं।
श्रृंगार किए बांकेबिहारी ने रंगबिरंगी सनील की गर्म पोशाक में भक्तों को दर्शन दिऐ तो भक्त निहाल हो गए। हीरे-जवाहरात के चमकते हार और मोती की मालाएं उनके गले में थी। सेवायतों ने बताया कि उन्हें टीका लगाने को चंदन में केसर का मिश्रण बढ़ा दिया गया है। बताया गया कि शीत के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए मंदिर के गर्भगृह में फूलों की सजावट से परहेज एक महीने कर दिया गया था। किंतु उनकी पूजा-अर्चना में फूलों का प्रयोग जरूर हो रहा है।
Source: Horoscope 2015