हमें स्वस्थ ही नहीं
जीवित रहने के लिए भी खाना खाने की आवश्यकता होती है। दुनिया भर में खाने
के पूरे कोर्स निधारित हैं कब क्या खाना हैं कैसे खना है और किसके बाद
क्या खाना है। भारत में तो ये विभिन्नता काफी ज्यादा है। हर प्रांत का
अपना अलग खाना होता है। हरेक को पकाने की विधि और उनमें पड़ने वाले मसाले
अलग अलग होते हैं। हर प्रांत की अपनी एक खास किस्म की थाली होती है। और सब
का मेन्यु और खाना परोसने का डिफरेंट कोर्स होता है। पर किसी भी प्रांत
में चले जाइए एक बात हर जगह एक सी ही मिलेगी और वो ये कि पहले आपको
मसालेदार स्पाइसी व्यंजन सर्व किए जाते हैं और उसके बाद खाने का अंत मीठे
से किया है। ऐसा इसलिए है कि जब आप भोजन कर के उठें तो आप का मुंह मीठा
हो।
आप कोई भी धार्मिक या पारिवारिक अनुष्ठान करें पर भोजन की शुरुआत तीखे से और अंत मीठे से होता है। इसका अंत भावनात्मक तो है ही कि मीठे के अहसास के साथ आप अपना भोजन पूरा करें पर इसके पीछे वैज्ञानिक तर्क भी है। विज्ञान कहता है कि तीखा खाने से हमारे पेट के अंदर पाचन तत्व एवं अम्ल सक्रिय हो जाते हैं। इससे पाचन तंत्र ठीक तरह से संचालित होता है, और हम शरीर की पूरी जरूरत के हिसाब से खाना खाते हैं। जिसके चलते हमारे शरीर का सही विकास होता है और मसालों के जरिए मिलने वाले पोषक तत्व हमारे शरीर में पहुंचते हैं। पर इसके साथ ही इन अम्लों के निकलने से पेट में जलन भी होती है जिसका कारण हैं अम्लों से बनने वाला तेजाब, इसी को संतुलित करने के लिए खाने के अंत में मीठा खाया जाता है। अंत में मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है। इससे पेट में जलन नहीं होती है साथ ही मीठे में फैट होता है जो शरीर में वसा की आवश्यकता को भी पूरा करता है। Read more Healthy Food News http://inextlive.jagran.com/food
No comments:
Post a Comment