यूपी, महाराष्ट्र और कर्नाटक में पानी का जबरदस्त संकट चल रहा है। इसके बाद भी इन प्रदेशों में लाखों लीटर पानी शुगर इंडस्ट्री में बर्बाद हो जाता है। इस पानी को बचाने के लिए नेशनल शुगर इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने इलेक्ट्रोकोएगुलेशन विद एग्जारप्शन एंड आयन एक्सचेंज प्रॉसेस टेक्नोलॉजी डेवलप की है। इस टेक्नोलॉजी के इ्रस्तेमाल से हर साल सिर्फ यूपी में 49 लाख टन पानी की बचत होगी। जिससे करीब 5 लाख लोगों की प्यास बुझ सकेगी। साथ ही ग्राउंट वॉटर के लेवल में भी सुधार आएगा।
एक टन में 200 से 400 लीटर
नेशनल शुगर इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर प्रो। नरेन्द्र मोहन ने बताया कि सेंट्रल पॉल्यूशन बोर्ड ने शुगर मिल में वाटर मैनेजमेंट पर गाइडलाइन जारी कर दी है। जिसके मुताबिक, एक टन गन्ने की पिराई में 200 लीटर से ज्यादा पानी का यूज नहीं होगा। नई टेक्नोलॉजी से पेराई में शुगर केन का ही पानी प्यूरीफाई करके इस्तेमाल किया जाएगा।
यूपी में सालाना 700 टन पेराई
यूपी की करीब 116 चीनी मिलों में हर 700 लाख टन गन्ने की पिराई होती है। आम तौर पर चीनी मिलों में एक टन गन्ने की पिराई में 200 से 400 लीटर पानी का प्रयोग किया जाता है। नई टेक्नोलॉजी से एक टन पर 70 से 150 लीटर पानी की बचत होगी। जितना गन्ना पेरेंगे उसका 20 परसेंट से ज्यादा डिस्चार्ज नहीं करेंगे। टेक्नोलॉजी की मदद से पूरे साल में 49 लाख टन पानी की बचत होगी। इस प्रॉसेस से महाराष्ट्र में 6 लाख और कर्नाटक में 3 लाख लोगों के लिए साल भर का पानी गन्ना मिलों से बचाया जा सकता है।
दो मिलों में ट्रायल रहा सफल
वाटर वेस्ट मैनेजमेंट व टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट की डॉ। सीमा परोहा ने डेवलप की है। इस टेक्नोलॉजी का यूज दो शुगर मिलों में किया गया है। डालमिया शुगर मिल रामगढ़ सीतापुर, डीएससीएल हरियांव हरदोई में इस टेक्नोलॉजी का ट्रायल सक्सेसफुल रहा है। इलेक्ट्रोकोएगुलेशन विद एडजारप्शन एवं आयन एक्सचेंज प्रासेस टेक्नोलॉजी टेक्नोलॉजी का यूज करने के लिए करीब डेढ़ करोड़ रुपए खर्च करने पड़ेंगे।
वेस्टेज की होगी री- साइकिलिंग
गन्ने में 70 परसेंट पानी होता है। 12 से 15 परसेंट फाइबर होता और 15 परसेंट शुगर होती है। करीब 2 से 3 परसेंट अन्य उत्पाद होते हैं। चीनी मिलें को मशीन ठंडा करने के लिए फ्रेश वाटर का यूज करती हैं। अब उन्हें सबसे वाटर मैनेजमेंट करना होगा। इसके बाद वाटर री- साइकिलिंग फिर प्यूरीफिकेशन और कूलिंग टावर का अरेजमेंट करना होगा। वेस्ट पानी को रीसाइकिल करके फिर से प्रयोग करना होगा। गन्ने के पानी का ज्यादा यूज करना होगा। इससे पॉल्यूशन भी कम होगा। Read more http://inextlive.jagran.com/kanpur/
एक टन में 200 से 400 लीटर
नेशनल शुगर इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर प्रो। नरेन्द्र मोहन ने बताया कि सेंट्रल पॉल्यूशन बोर्ड ने शुगर मिल में वाटर मैनेजमेंट पर गाइडलाइन जारी कर दी है। जिसके मुताबिक, एक टन गन्ने की पिराई में 200 लीटर से ज्यादा पानी का यूज नहीं होगा। नई टेक्नोलॉजी से पेराई में शुगर केन का ही पानी प्यूरीफाई करके इस्तेमाल किया जाएगा।
यूपी में सालाना 700 टन पेराई
यूपी की करीब 116 चीनी मिलों में हर 700 लाख टन गन्ने की पिराई होती है। आम तौर पर चीनी मिलों में एक टन गन्ने की पिराई में 200 से 400 लीटर पानी का प्रयोग किया जाता है। नई टेक्नोलॉजी से एक टन पर 70 से 150 लीटर पानी की बचत होगी। जितना गन्ना पेरेंगे उसका 20 परसेंट से ज्यादा डिस्चार्ज नहीं करेंगे। टेक्नोलॉजी की मदद से पूरे साल में 49 लाख टन पानी की बचत होगी। इस प्रॉसेस से महाराष्ट्र में 6 लाख और कर्नाटक में 3 लाख लोगों के लिए साल भर का पानी गन्ना मिलों से बचाया जा सकता है।
दो मिलों में ट्रायल रहा सफल
वाटर वेस्ट मैनेजमेंट व टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट की डॉ। सीमा परोहा ने डेवलप की है। इस टेक्नोलॉजी का यूज दो शुगर मिलों में किया गया है। डालमिया शुगर मिल रामगढ़ सीतापुर, डीएससीएल हरियांव हरदोई में इस टेक्नोलॉजी का ट्रायल सक्सेसफुल रहा है। इलेक्ट्रोकोएगुलेशन विद एडजारप्शन एवं आयन एक्सचेंज प्रासेस टेक्नोलॉजी टेक्नोलॉजी का यूज करने के लिए करीब डेढ़ करोड़ रुपए खर्च करने पड़ेंगे।
वेस्टेज की होगी री- साइकिलिंग
गन्ने में 70 परसेंट पानी होता है। 12 से 15 परसेंट फाइबर होता और 15 परसेंट शुगर होती है। करीब 2 से 3 परसेंट अन्य उत्पाद होते हैं। चीनी मिलें को मशीन ठंडा करने के लिए फ्रेश वाटर का यूज करती हैं। अब उन्हें सबसे वाटर मैनेजमेंट करना होगा। इसके बाद वाटर री- साइकिलिंग फिर प्यूरीफिकेशन और कूलिंग टावर का अरेजमेंट करना होगा। वेस्ट पानी को रीसाइकिल करके फिर से प्रयोग करना होगा। गन्ने के पानी का ज्यादा यूज करना होगा। इससे पॉल्यूशन भी कम होगा। Read more http://inextlive.jagran.com/kanpur/
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