तबाही की उस रात से लेकर 17 जून की अल सुबह तक हर तरफ तबाही का मंजर था. चौराबाड़ी ग्लेशियर के ठीक सामने से पानी का रैला बढ़ते ही जा रहा था. साथ में बड़े-बड़े पत्थरों के ऊंचाई से गिरने से तस्वीर इतनी भयावह प्रतीत हो रही थी, जिसको बयां करने के लिए चंद लोग ही अपनी जिंदगी को सलामत रख सके. ऐसा लग रहा था मानो बाबा केदार का मंदिर भी इस पत्थरों की बारिश में अपना अस्तित्व खो देगा. ऐसे में एक बड़ी शिला ने मंदिर की न केवल रक्षा की, बल्कि नदियों के प्रवाह को भी बदल दिया.
केदार मंदिर के ठीक पीछे दीवार की तरह खड़ी इस शिला का वजन कई टन होने का अनुमान लगाया गया है. लंबाई आठ बाई चार है. केदारनाथ मंदिर की पश्चिम दिशा के ठीक 10 मीटर पीछे आकर ठहर जाता है. इस भारी बोल्डर से टकराने के बाद ही मंदाकिनी, केदारद्वारी व सरस्वती नदी के रौद्र पर काफी हद तक ब्रेक लग सका. तीनों नदियां अपना रास्ता बदलने को मजबूर हो गईं तो कई बड़े पत्थर इस शिला से टकराकर चूर-चूर हो गए थे. केदारनाथ त्रासदी के एक साल बाद भी भले ही तमाम वैज्ञानिक और रिसर्चर इस शिला के रहस्य को नहीं सुलझा सके हों, पर धार्मिक दृष्टि से इस शिला की कहानी खोज ली गई है. तभी तो यह शिला अब दिव्य शिला बन चुकी है. इसका नाम दिव्य भीम शिला रखा गया है. बाबा केदार के दर्शनों के बाद इसी दिव्य शिला के आगे बाबा के भक्त नतमस्तक हो जाते हैं. दिव्य शिला के आगे दानपात्र भी लग चुका है. कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाले वर्षों में हमें यहां एक और मंदिर देखने को मिल जाए.
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