प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड संगम के पानी में बीओडी और डिजाल्व ऑक्सीजन की मात्र सामान्य होने का दावा भले कर रहा है। लेकिन संगम के पानी में कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है। अन्यथा पक्षियों, मछलियों के मरने का सिलसिला न चल पड़ता। शनिवार सुबह संगम में एक कबूतर फिर मृत मिला जिससे वहां हड़कंप मच गया।
मौके पर पहुंचे वन दारोगा अजय पटेल ने औपचारिकताएं पूरी कर मृत कबूतर को पोस्टमार्टम के लिए भेजा। संगम क्षेत्र में पहली बार 26 अक्टूबर को बड़ी संख्या में मछलियां मृत मिली थीं जो किला घाट के समीप पाई गई थीं। इसके बाद मछलियों और संगम जल में विचरण करने वाली साइबेरियन पक्षियों के मरने का सिलसिला ही चल निकला।
संतों की भृकुटि-
माघ मेला क्षेत्र में शनिवार को भूमि आवंटन के दौरान अव्यवस्था देख संन्यासी भड़क उठे। दंडी संन्यासियों ने भूमि लेने से इंकार कर दिया। साथ ही मेला प्रशासन को जमकर खरी खोटी सुनाई। बाद में मेला अधिकारियों के आश्वासन के बाद दंडी वाड़ा के संन्यासी भूमि लेने को राजी हुए। गंगा पूजन के बाद भूमि आवंटन का काम शुरू हुआ।
दंडी वाड़ा के अध्यक्ष स्वामी विमल देव पचास से अधिक संन्यासियों के साथ सुबह नौ बजे मेला क्षेत्र में पहुंचे। भूमि आवंटन वाले स्थान पर बिजली, पेयजल, सड़क और पानी की निकासी की व्यवस्था नदारद देख अध्यक्ष भड़क गए। उन्होंने मेला अधिकारियों पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया। कहा कि मेला प्रशासन अब तक एक भी पीपा पुल का निर्माण कार्य पूरा नहीं करा पाया है। अध्यक्ष ने कहा कि 15 दिसंबर के बाद से साधु-संतों का आना शुरू हो जाएगा। ऐसी अव्यवस्था के बीच वे लोग कैसे रहेंगे। मेला अधिकारियों ने 15 दिसंबर तक सभी व्यवस्था दुरुस्त कर लेने का आश्वासन दिया। अधिकारियों के आश्वासन पर अध्यक्ष भूमि लेने को राजी हो गए। दंडी वाड़ा को 67 बीघा जमीन आवंटित होगी।
75 बीघा जमीन मांगी- दंडी वाड़ा के अध्यक्ष स्वामी विमल देव ने 75 बीघा जमीन के आवंटन की मांग मेला प्रशासन से की। उन्होंने कहा कि हर बार मेला में जमीन कम पड़ जाती है। अध्यक्ष ने कहा कि आवंटित जमीन में 126 शिविर लगते हैं। उन्होंने कहा कि माघ मेला में ऐसी बहुत सी धार्मिक संस्थाएं हैं जो हर साल मेला प्रशासन से भूमि आवंटन की मांग करती हैं लेकिन उन्हें आज तक मेला प्रशासन ने भूमि आवंटित नहीं की। ऐसे में वे संस्थाएं दंडी वाड़ा से जमीन की मांग करती हैं। दंडी वाड़ा सालों से राजराजेश्वर नंद सरस्वती आश्रम, शिवानंद सरस्वती आश्रम और जगदेवानंद आश्रम समेत 15 संस्थाओं को भूमि देता आ रहा है।
माघ मेले में जमीन आवंटन को लेकर धरने पर बैठे दण्डी स्वामी-शनिवार को भूमि आवंटन के पहले दिन जमीन न मिलने से नाराज कुछ साधु-संन्यासियो ने धरना दिया। अयोध्या के नारायण आश्रम के स्वामी विश्वस्वरूप ब्रहमचारी भी अन्य संतों के साथ पहुंचे। उन्होंने मेला अधिकारियों से भूमि आवंटित किए जाने की मांग की। मेला अधिकारियों ने भूमि देने से मना कर दिया। इस पर संतों ने अधिकारियों को बताया कि वर्ष 2005 से प्रत्येक वर्ष उन्हें शिविर लगाने के लिए डेढ़ सौ फुट जगह मेला क्षेत्र में मिलती है। लेकिन अधिकारियों ने भूमि उपलब्ध न होने की बात कहते हुए जमीन आवंटित करने से मना कर दिया। इस पर नाराज संत मेला क्षेत्र में धरना पर बैठ गए। मेला अधिकारियों पर भूमि आवंटन में मनमानी करने का आरोप लगाया। स्वामी विश्वस्वरूप ब्रहमचारी ने कहा कि इस संबध में वह उच्च प्रशासनिक अधिकारियों से मिलेंगे।गंगा जल पर बढ़े प्रदूषण से नाराज दंडी संन्यासी शनिवार को संगम क्षेत्र पर धरने पर बैठ गए। स्वामी शंकर आश्रम के नेतृत्व में भूमि आवंटन कराने गए संन्यासी गंगा की स्थिति देख नाराज हो गए। वह भूमि आवंटित कराने के बजाय प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करते हुए धरने पर बैठ गए। इससे मेला प्रशासन के अधिकारियों के हाथ-पांव फूलने लगे। उन्होंने संतों से याचना करते हुए भूमि लेने की गुजारिश की, साथ ही गंगा की स्थिति में जल्द सुधार कराने का वादा किया, जिसके बाद संतों ने धरना समाप्त किया।
प्रदूषण से कराह रही मोक्षदायिनी गंगा की धारा देख संत आक्रोशित हैं। हाईकोर्ट के निर्देश के बावजूद गंगा में सीवर का पानी गिरने से संत समाज नाराज है। माघ मेला से ठीक पहले गंगा का पानी कहीं लाल तो कहीं काला होने, मछलियों एवं साइबेरियन पक्षियों की मौत से शासन-प्रशासन पर उनकी भृकुटि तन गई है। संतों ने शनिवार को गंगाजल का स्वयं निरीक्षण किया, उनका कहना है गंगा का पानी इतना प्रदूषित है कि उससे आचमन तक नहीं किया जा सकता। संतों ने प्रशासन को स्थिति में सुधार के लिए चेतावनी दी है। त्रिवेणी बांध पर बेमियादी धरना देने की तैयारी है। 1टीकरमाफी आश्रम के महंत एवं गंगा प्रदूषण मुक्ति अभियान के संयोजक स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारी कहते हैं कि संगम से चंद कदम दूरी पर रामघाट पर काला और लाल पानी साफ दिखाई देता है, यहां मशीन लगाने की भी जरूरत नहीं है। कहा कि अभी तक जो लोग राष्ट्रीय नदी गंगा को साफ करने की बात कहते थे, वही आज सत्ता में हैं परंतु सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ाए जा रहे हैं। अगर गंगा नहीं रहेंगी तो हम मेला क्षेत्र में जाकर क्या करेंगे। काशी सुमेरुपीठाधीश्वर एवं गंगा संरक्षण मुहिम से जुड़े जगद्गुरु स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती जी महाराज का कहना है कि शासन सिर्फ कागजी खानापूर्ति कर रहा है, इससे स्थिति सुधरने के बजाय बिगड़ रही है। गंगा सेना के संयोजक स्वामी आनंद गिरि कहते हैं गंगा पर भाषणबाजी के अलावा कोई काम नहीं हुआ। 1गंगा सेना शहर में आने वाले मंत्रियों को गंगाजल पिलाकर विरोध प्रकट करेगी। महामंडलेश्वर संवीदानंद ने प्रशासन को चेतावनी देते हुए कहा कि एक सप्ताह में गंगा जल की स्थिति न सुधरी तो वह धरना पर बैठ जाएंगे।
वहीं गंगा महासभा के संरक्षक न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय ने गंगा जल की वर्तमान स्थिति पर चिंता प्रकट की है। कहा कि वह जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा सफाई मंत्री उमा भारती से बात करके माघ मेला से पहले स्थिति में सुधार करने को कहेंगे। खराब स्थिति के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि पिछले दिनों केंद्र व राज्य सरकार के बीच वार्ता हुई, जिसमें हाईकोर्ट के निर्देश का पालन करते हुए बांध से गंगा का पानी छोडऩे व टेनरियों को हटाने पर सहमति बनी परंतु राज्य सरकार ने उस दिशा में कोई काम नहीं किया।
मौके पर पहुंचे वन दारोगा अजय पटेल ने औपचारिकताएं पूरी कर मृत कबूतर को पोस्टमार्टम के लिए भेजा। संगम क्षेत्र में पहली बार 26 अक्टूबर को बड़ी संख्या में मछलियां मृत मिली थीं जो किला घाट के समीप पाई गई थीं। इसके बाद मछलियों और संगम जल में विचरण करने वाली साइबेरियन पक्षियों के मरने का सिलसिला ही चल निकला।
संतों की भृकुटि-
माघ मेला क्षेत्र में शनिवार को भूमि आवंटन के दौरान अव्यवस्था देख संन्यासी भड़क उठे। दंडी संन्यासियों ने भूमि लेने से इंकार कर दिया। साथ ही मेला प्रशासन को जमकर खरी खोटी सुनाई। बाद में मेला अधिकारियों के आश्वासन के बाद दंडी वाड़ा के संन्यासी भूमि लेने को राजी हुए। गंगा पूजन के बाद भूमि आवंटन का काम शुरू हुआ।
दंडी वाड़ा के अध्यक्ष स्वामी विमल देव पचास से अधिक संन्यासियों के साथ सुबह नौ बजे मेला क्षेत्र में पहुंचे। भूमि आवंटन वाले स्थान पर बिजली, पेयजल, सड़क और पानी की निकासी की व्यवस्था नदारद देख अध्यक्ष भड़क गए। उन्होंने मेला अधिकारियों पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया। कहा कि मेला प्रशासन अब तक एक भी पीपा पुल का निर्माण कार्य पूरा नहीं करा पाया है। अध्यक्ष ने कहा कि 15 दिसंबर के बाद से साधु-संतों का आना शुरू हो जाएगा। ऐसी अव्यवस्था के बीच वे लोग कैसे रहेंगे। मेला अधिकारियों ने 15 दिसंबर तक सभी व्यवस्था दुरुस्त कर लेने का आश्वासन दिया। अधिकारियों के आश्वासन पर अध्यक्ष भूमि लेने को राजी हो गए। दंडी वाड़ा को 67 बीघा जमीन आवंटित होगी।
75 बीघा जमीन मांगी- दंडी वाड़ा के अध्यक्ष स्वामी विमल देव ने 75 बीघा जमीन के आवंटन की मांग मेला प्रशासन से की। उन्होंने कहा कि हर बार मेला में जमीन कम पड़ जाती है। अध्यक्ष ने कहा कि आवंटित जमीन में 126 शिविर लगते हैं। उन्होंने कहा कि माघ मेला में ऐसी बहुत सी धार्मिक संस्थाएं हैं जो हर साल मेला प्रशासन से भूमि आवंटन की मांग करती हैं लेकिन उन्हें आज तक मेला प्रशासन ने भूमि आवंटित नहीं की। ऐसे में वे संस्थाएं दंडी वाड़ा से जमीन की मांग करती हैं। दंडी वाड़ा सालों से राजराजेश्वर नंद सरस्वती आश्रम, शिवानंद सरस्वती आश्रम और जगदेवानंद आश्रम समेत 15 संस्थाओं को भूमि देता आ रहा है।
माघ मेले में जमीन आवंटन को लेकर धरने पर बैठे दण्डी स्वामी-शनिवार को भूमि आवंटन के पहले दिन जमीन न मिलने से नाराज कुछ साधु-संन्यासियो ने धरना दिया। अयोध्या के नारायण आश्रम के स्वामी विश्वस्वरूप ब्रहमचारी भी अन्य संतों के साथ पहुंचे। उन्होंने मेला अधिकारियों से भूमि आवंटित किए जाने की मांग की। मेला अधिकारियों ने भूमि देने से मना कर दिया। इस पर संतों ने अधिकारियों को बताया कि वर्ष 2005 से प्रत्येक वर्ष उन्हें शिविर लगाने के लिए डेढ़ सौ फुट जगह मेला क्षेत्र में मिलती है। लेकिन अधिकारियों ने भूमि उपलब्ध न होने की बात कहते हुए जमीन आवंटित करने से मना कर दिया। इस पर नाराज संत मेला क्षेत्र में धरना पर बैठ गए। मेला अधिकारियों पर भूमि आवंटन में मनमानी करने का आरोप लगाया। स्वामी विश्वस्वरूप ब्रहमचारी ने कहा कि इस संबध में वह उच्च प्रशासनिक अधिकारियों से मिलेंगे।गंगा जल पर बढ़े प्रदूषण से नाराज दंडी संन्यासी शनिवार को संगम क्षेत्र पर धरने पर बैठ गए। स्वामी शंकर आश्रम के नेतृत्व में भूमि आवंटन कराने गए संन्यासी गंगा की स्थिति देख नाराज हो गए। वह भूमि आवंटित कराने के बजाय प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करते हुए धरने पर बैठ गए। इससे मेला प्रशासन के अधिकारियों के हाथ-पांव फूलने लगे। उन्होंने संतों से याचना करते हुए भूमि लेने की गुजारिश की, साथ ही गंगा की स्थिति में जल्द सुधार कराने का वादा किया, जिसके बाद संतों ने धरना समाप्त किया।
प्रदूषण से कराह रही मोक्षदायिनी गंगा की धारा देख संत आक्रोशित हैं। हाईकोर्ट के निर्देश के बावजूद गंगा में सीवर का पानी गिरने से संत समाज नाराज है। माघ मेला से ठीक पहले गंगा का पानी कहीं लाल तो कहीं काला होने, मछलियों एवं साइबेरियन पक्षियों की मौत से शासन-प्रशासन पर उनकी भृकुटि तन गई है। संतों ने शनिवार को गंगाजल का स्वयं निरीक्षण किया, उनका कहना है गंगा का पानी इतना प्रदूषित है कि उससे आचमन तक नहीं किया जा सकता। संतों ने प्रशासन को स्थिति में सुधार के लिए चेतावनी दी है। त्रिवेणी बांध पर बेमियादी धरना देने की तैयारी है। 1टीकरमाफी आश्रम के महंत एवं गंगा प्रदूषण मुक्ति अभियान के संयोजक स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारी कहते हैं कि संगम से चंद कदम दूरी पर रामघाट पर काला और लाल पानी साफ दिखाई देता है, यहां मशीन लगाने की भी जरूरत नहीं है। कहा कि अभी तक जो लोग राष्ट्रीय नदी गंगा को साफ करने की बात कहते थे, वही आज सत्ता में हैं परंतु सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ाए जा रहे हैं। अगर गंगा नहीं रहेंगी तो हम मेला क्षेत्र में जाकर क्या करेंगे। काशी सुमेरुपीठाधीश्वर एवं गंगा संरक्षण मुहिम से जुड़े जगद्गुरु स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती जी महाराज का कहना है कि शासन सिर्फ कागजी खानापूर्ति कर रहा है, इससे स्थिति सुधरने के बजाय बिगड़ रही है। गंगा सेना के संयोजक स्वामी आनंद गिरि कहते हैं गंगा पर भाषणबाजी के अलावा कोई काम नहीं हुआ। 1गंगा सेना शहर में आने वाले मंत्रियों को गंगाजल पिलाकर विरोध प्रकट करेगी। महामंडलेश्वर संवीदानंद ने प्रशासन को चेतावनी देते हुए कहा कि एक सप्ताह में गंगा जल की स्थिति न सुधरी तो वह धरना पर बैठ जाएंगे।
वहीं गंगा महासभा के संरक्षक न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय ने गंगा जल की वर्तमान स्थिति पर चिंता प्रकट की है। कहा कि वह जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा सफाई मंत्री उमा भारती से बात करके माघ मेला से पहले स्थिति में सुधार करने को कहेंगे। खराब स्थिति के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि पिछले दिनों केंद्र व राज्य सरकार के बीच वार्ता हुई, जिसमें हाईकोर्ट के निर्देश का पालन करते हुए बांध से गंगा का पानी छोडऩे व टेनरियों को हटाने पर सहमति बनी परंतु राज्य सरकार ने उस दिशा में कोई काम नहीं किया।
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