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Monday, January 12, 2015

Will travel to Gangotri to Ganga Sagar serene UMA

कास को जन आंदोलन बनाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर अमल करते हुए केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती निर्मल गंगा अभियान से जनता को जोडऩे जा रही हैं। इसके लिए वह गंगोत्री से गंगासागर तक यात्रा पर जाने की तैयारी कर रही हैं। उमा का कहना है कि गंगा को निर्मल बनाए रखने के लिए आम लोगों को इस अभियान से जोडऩा जरूरी है। 

उमा ने सोमवार को यहां एक संवाददाता सम्मेलन में अपने मंत्रालय की सात महीने की उपलब्धियों का ब्योरा देते हुए कहा, मैंने प्रधानमंत्री से तीन बातों की सीख ली है। पहली, विकास को जन आंदोलन का रूप दिया जाना चाहिए। इसलिए हम गंगा को निर्मल बनाने के कार्य से जनता को जोड़ रहे हैं। दूसरी, अपने कार्य में आनंद लेना चाहिए। तीसरी, नया प्रयोग करना चाहिए। उन्होंने बताया कि सरकार गंगा को निर्मल बनाने के कार्य से जनता को जोडऩे के साथ ही एक टास्क फोर्स भी गठित कर रही है जो इसे प्रदूषण मुक्त रखने में मदद करेगी। 

Monday, December 8, 2014

Contaminated river stretched saints eyebrows

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड संगम के पानी में बीओडी और डिजाल्व ऑक्सीजन की मात्र सामान्य होने का दावा भले कर रहा है। लेकिन संगम के पानी में कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है। अन्यथा पक्षियों, मछलियों के मरने का सिलसिला न चल पड़ता। शनिवार सुबह संगम में एक कबूतर फिर मृत मिला जिससे वहां हड़कंप मच गया।

मौके पर पहुंचे वन दारोगा अजय पटेल ने औपचारिकताएं पूरी कर मृत कबूतर को पोस्टमार्टम के लिए भेजा। संगम क्षेत्र में पहली बार 26 अक्टूबर को बड़ी संख्या में मछलियां मृत मिली थीं जो किला घाट के समीप पाई गई थीं। इसके बाद मछलियों और संगम जल में विचरण करने वाली साइबेरियन पक्षियों के मरने का सिलसिला ही चल निकला।

संतों की भृकुटि-

माघ मेला क्षेत्र में शनिवार को भूमि आवंटन के दौरान अव्यवस्था देख संन्यासी भड़क उठे। दंडी संन्यासियों ने भूमि लेने से इंकार कर दिया। साथ ही मेला प्रशासन को जमकर खरी खोटी सुनाई। बाद में मेला अधिकारियों के आश्वासन के बाद दंडी वाड़ा के संन्यासी भूमि लेने को राजी हुए। गंगा पूजन के बाद भूमि आवंटन का काम शुरू हुआ।

दंडी वाड़ा के अध्यक्ष स्वामी विमल देव पचास से अधिक संन्यासियों के साथ सुबह नौ बजे मेला क्षेत्र में पहुंचे। भूमि आवंटन वाले स्थान पर बिजली, पेयजल, सड़क और पानी की निकासी की व्यवस्था नदारद देख अध्यक्ष भड़क गए। उन्होंने मेला अधिकारियों पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया। कहा कि मेला प्रशासन अब तक एक भी पीपा पुल का निर्माण कार्य पूरा नहीं करा पाया है। अध्यक्ष ने कहा कि 15 दिसंबर के बाद से साधु-संतों का आना शुरू हो जाएगा। ऐसी अव्यवस्था के बीच वे लोग कैसे रहेंगे। मेला अधिकारियों ने 15 दिसंबर तक सभी व्यवस्था दुरुस्त कर लेने का आश्वासन दिया। अधिकारियों के आश्वासन पर अध्यक्ष भूमि लेने को राजी हो गए। दंडी वाड़ा को 67 बीघा जमीन आवंटित होगी।

75 बीघा जमीन मांगी- दंडी वाड़ा के अध्यक्ष स्वामी विमल देव ने 75 बीघा जमीन के आवंटन की मांग मेला प्रशासन से की। उन्होंने कहा कि हर बार मेला में जमीन कम पड़ जाती है। अध्यक्ष ने कहा कि आवंटित जमीन में 126 शिविर लगते हैं। उन्होंने कहा कि माघ मेला में ऐसी बहुत सी धार्मिक संस्थाएं हैं जो हर साल मेला प्रशासन से भूमि आवंटन की मांग करती हैं लेकिन उन्हें आज तक मेला प्रशासन ने भूमि आवंटित नहीं की। ऐसे में वे संस्थाएं दंडी वाड़ा से जमीन की मांग करती हैं। दंडी वाड़ा सालों से राजराजेश्वर नंद सरस्वती आश्रम, शिवानंद सरस्वती आश्रम और जगदेवानंद आश्रम समेत 15 संस्थाओं को भूमि देता आ रहा है।

माघ मेले में जमीन आवंटन को लेकर धरने पर बैठे दण्डी स्वामी-शनिवार को भूमि आवंटन के पहले दिन जमीन न मिलने से नाराज कुछ साधु-संन्यासियो ने धरना दिया। अयोध्या के नारायण आश्रम के स्वामी विश्वस्वरूप ब्रहमचारी भी अन्य संतों के साथ पहुंचे। उन्होंने मेला अधिकारियों से भूमि आवंटित किए जाने की मांग की। मेला अधिकारियों ने भूमि देने से मना कर दिया। इस पर संतों ने अधिकारियों को बताया कि वर्ष 2005 से प्रत्येक वर्ष उन्हें शिविर लगाने के लिए डेढ़ सौ फुट जगह मेला क्षेत्र में मिलती है। लेकिन अधिकारियों ने भूमि उपलब्ध न होने की बात कहते हुए जमीन आवंटित करने से मना कर दिया। इस पर नाराज संत मेला क्षेत्र में धरना पर बैठ गए। मेला अधिकारियों पर भूमि आवंटन में मनमानी करने का आरोप लगाया। स्वामी विश्वस्वरूप ब्रहमचारी ने कहा कि इस संबध में वह उच्च प्रशासनिक अधिकारियों से मिलेंगे।गंगा जल पर बढ़े प्रदूषण से नाराज दंडी संन्यासी शनिवार को संगम क्षेत्र पर धरने पर बैठ गए। स्वामी शंकर आश्रम के नेतृत्व में भूमि आवंटन कराने गए संन्यासी गंगा की स्थिति देख नाराज हो गए। वह भूमि आवंटित कराने के बजाय प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करते हुए धरने पर बैठ गए। इससे मेला प्रशासन के अधिकारियों के हाथ-पांव फूलने लगे। उन्होंने संतों से याचना करते हुए भूमि लेने की गुजारिश की, साथ ही गंगा की स्थिति में जल्द सुधार कराने का वादा किया, जिसके बाद संतों ने धरना समाप्त किया।

प्रदूषण से कराह रही मोक्षदायिनी गंगा की धारा देख संत आक्रोशित हैं। हाईकोर्ट के निर्देश के बावजूद गंगा में सीवर का पानी गिरने से संत समाज नाराज है। माघ मेला से ठीक पहले गंगा का पानी कहीं लाल तो कहीं काला होने, मछलियों एवं साइबेरियन पक्षियों की मौत से शासन-प्रशासन पर उनकी भृकुटि तन गई है। संतों ने शनिवार को गंगाजल का स्वयं निरीक्षण किया, उनका कहना है गंगा का पानी इतना प्रदूषित है कि उससे आचमन तक नहीं किया जा सकता। संतों ने प्रशासन को स्थिति में सुधार के लिए चेतावनी दी है। त्रिवेणी बांध पर बेमियादी धरना देने की तैयारी है। 1टीकरमाफी आश्रम के महंत एवं गंगा प्रदूषण मुक्ति अभियान के संयोजक स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारी कहते हैं कि संगम से चंद कदम दूरी पर रामघाट पर काला और लाल पानी साफ दिखाई देता है, यहां मशीन लगाने की भी जरूरत नहीं है। कहा कि अभी तक जो लोग राष्ट्रीय नदी गंगा को साफ करने की बात कहते थे, वही आज सत्ता में हैं परंतु सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ाए जा रहे हैं। अगर गंगा नहीं रहेंगी तो हम मेला क्षेत्र में जाकर क्या करेंगे। काशी सुमेरुपीठाधीश्वर एवं गंगा संरक्षण मुहिम से जुड़े जगद्गुरु स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती जी महाराज का कहना है कि शासन सिर्फ कागजी खानापूर्ति कर रहा है, इससे स्थिति सुधरने के बजाय बिगड़ रही है। गंगा सेना के संयोजक स्वामी आनंद गिरि कहते हैं गंगा पर भाषणबाजी के अलावा कोई काम नहीं हुआ। 1गंगा सेना शहर में आने वाले मंत्रियों को गंगाजल पिलाकर विरोध प्रकट करेगी। महामंडलेश्वर संवीदानंद ने प्रशासन को चेतावनी देते हुए कहा कि एक सप्ताह में गंगा जल की स्थिति न सुधरी तो वह धरना पर बैठ जाएंगे।

वहीं गंगा महासभा के संरक्षक न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय ने गंगा जल की वर्तमान स्थिति पर चिंता प्रकट की है। कहा कि वह जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा सफाई मंत्री उमा भारती से बात करके माघ मेला से पहले स्थिति में सुधार करने को कहेंगे। खराब स्थिति के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि पिछले दिनों केंद्र व राज्य सरकार के बीच वार्ता हुई, जिसमें हाईकोर्ट के निर्देश का पालन करते हुए बांध से गंगा का पानी छोडऩे व टेनरियों को हटाने पर सहमति बनी परंतु राज्य सरकार ने उस दिशा में कोई काम नहीं किया।

Saturday, December 6, 2014

Confluence is not the first series of the death of aquatic fauna

संगम के पानी को लगता है किसी की नजर लग गई है। जलीय जीवों के मरने का सिलसिला थम नहीं रहा है। बुधवार की सुबह भी एक साइबेरियन पक्षी के संगम में मृत मिलने पर श्रद्धालुओं व तीर्थ पुरोहितों में हड़कंप की स्थिति उत्पन्न हो गई। यह जानकारी तत्काल मंडलायुक्त बीके सिंह, डीएम भवनाथ सिंह और जिला वनाधिकारी (डीएफओ) को दी गई। वन दारोगा ने औपचारिकताएं पूरी कर पक्षी को पोस्टमार्टम के लिए भेजा।

नालों, सीवरों, टेनरियों के गंदे पानी और चीनी मिलों के कचरे से संगम का पानी दिनों दिन जहरीला होता जा रहा है। भले ही इसका प्रभाव बड़े जलीय जीव-जतुंओं पर अभी न दिख रहा हो, मगर भविष्य में पडऩे वाले दुष्प्रभाव को लेकर लोगो की चिंताएं बढ़ गई हैं। जानकारों का मानना है कि संगम के पानी की गुणवत्ता खराब होने से छोटे-छोटे जलीय जीवों पर इसका असर पड़ रहा है। साइबेरियन पक्षियों की मौत के पीछे कारण गंगा के पानी में डिजाल्व ऑक्सीजन की मात्र का कम होना बताया जा रहा। समाजसेवी कमलेश सिंह बुधवार तीन दिसंबर की सुबह कुछ लोगों के साथ संगम तट पर सफाई कर रहे थे, तभी पानी में एक साइबेरियन पक्षी मृत मिला। इसके पूर्व 16 नवंबर को भी वहीं पर चार साइबेरियन पक्षी मरे पाए गए थे। उस बार तो उनका पोस्टमार्टम भी नहीं हो सका था। 26 अक्टूबर को किला घाट पर तकरीबन सौ, 30 नवंबर और दो दिसंबर को संगम में दर्जनों मछलियां मरी हुई मिली थीं। अफसरों ने वहां से पानी का नमूना लेकर जांच कराया व फर्ज की इतिश्री कर ली। बुधवार तीन दिसंबर को पहली दफा मृत पाए गए साइबेरियन पक्षी को पोस्टमार्टम कराने के लिए भेजा गया। इससे संगम के पानी और अफसरों की हकीकत सामने आने की उम्मीद है। क्योंकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जांच रिपोर्ट में पानी में बीओडी और डिजाल्व ऑक्सीजन की मात्र सामान्य बताई गई है। वन दारोगा अजय पटेल ने बताया कि तीन डाक्टरों के पैनल ने पोस्टमार्टम किया है। रिपोर्ट शुक्रवार को मिलेगी तभी मौत के कारणों का पता चल पाएगा।संगम पर मृत साइबेरियन पक्षी को देखते स्थानीय लोग।

जिलाधिकारी भवनाथ सिंह ने संगम पर पक्षियों और मछलियों को सेव से लेकर लाई तक खिलाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। यदि किसी ने लाई या कोई खाद्य सामग्री गंगा में पक्षियों के सामने डाली, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी। पिछले पंद्रह दिन से लगातार संगम पर साइबेरियन पक्षियों और मछलियों के मरने की घटनाएं हो रही हैं। गंगा का रंग भी परिवर्तित हुआ है। साइबेरियन पक्षियों के मरने की घटना जब दोबारा बुधवार को भी घट गई, तो प्रशासन सक्रिय हो उठा। साइबेरियन पक्षी के शरीर को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया। इसकी रिपोर्ट शुक्रवार तक आ पाएगी। वहीं कुछ लोगों ने संगम मे साइबेरियन पक्षियों को सेव खिलाने में आपत्ति जतायी और इस पर रोक लगाने की मांग की। उनका कहना है कि खराब तेल से सेव बनाकर उसे संगम तट पर श्रद्धालुओं को बेचा जाता है। श्रद्धालु उसी सेव को पक्षियों और मछलियों को खिलाते हैं। इस तरह की घटनाओं की यह भी वजह हो सकती है। जिलाधिकारी भवनाथ सिंह ने इसे गंभीरता से लेते हुए कहा कि संगम पर अब कोई भी व्यक्ति सेव बिक्री और पक्षियों को सेव खिलाने पर प्रतिबंध लगा दिया है।

मछलियों के मरने की वजह नालों का पानी-संगम के पानी की गुणवत्ता सामान्य है। जो मछलियां मर रही हैं, वह तिलातिया प्रजाति की हैं, जो अफ्रीकी देशों में होती हैं। इन मछलियों के मरने की वजह जहां वह रहती हैं, वहीं नाले के पानी का गिरना है। नाले के पानी के साथ आने वाले तत्वों को खाने से उनकी मौतें हो रही हैं। लेकिन साइबेरियन पक्षी के मरने की वजह पोस्टमार्टम रिपोर्ट से ही साफ होगी।

केडी जोशी, वैज्ञानिक केंद्रीय मात्स्यकी संस्थान।

Confluence with the DM and the Water Pollution Control Board directed the needful

इलाहाबाद स्थित संगम व उसके आसपास गंगाजल लाल होने व साइबेरियन पक्षियों के मरने के मामले को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया है। न्यायालय ने जिलाधिकारी व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देशित किया कि मौका मुआयना कर तत्काल आवश्यक कार्रवाई करें तथा कृत कार्यवाही से अदालत को अवगत कराएं।

यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड व न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता की खण्डपीठ ने गंगा प्रदूषण मामले में दिया है। अगली सुनवाई की तिथि 11 दिसम्बर नियत की है। कोर्ट ने आशंका व्यक्त की कि ऐसा तो नहीं शहर के सीवर लाइन फट गए हों तथा गंगा व यमुना नदी में गंदा पानी जा रहा हो। कोर्ट ने कहा कि केवल साइबेरियन पक्षी ही नहीं मछलियां भी मर रही हैं। अधिवक्ता विजय चंद्र श्रीवास्तव ने अदालत को अवगत कराया है कि गंगा का पानी इस स्तर पर प्रदूषित है कि गंगाजल आचमन ही नहीं, स्नान करने योग्य भी नहीं है। न्यायालय ने डीएम से अगली सुनवाई पर जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है।

रिपोर्ट में हरेक घटना का जिक्र- गंगा प्रदूषण मामले में नियुक्त एमिकस क्यूरी अरुण गुप्ता गंगा में मर रहे पक्षियों और मछलियों के बाबत रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। उनका कहना है कि इन घटनाओं पर उनकी नजर है। इसी आधार पर वह रिपोर्ट भी तैयार कर रहे हैं। जिस दिन गंगा प्रदूषण मामले में हाईकोर्ट में सुनवाई होगी, उसी दिन वह अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करेंगे।

इलाहाबाद स्थित कंपनी बाग के सौंदर्यीकरण मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को गठित कमेटी के निर्णय पर यथाशीघ्र निर्णय लेने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि विशेषज्ञों की राय से गठित कमेटी ने कंपनी बाग की सौंदर्यता बढ़ाने के लिए धन की मांग की है, जिस पर शासन प्रमुखता से धन अवमुक्त करे। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड व न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता की खण्डपीठ ने मधु सिंह की याचिका पर दिया है। कोर्ट ने अगली सुनवाई की तिथि 8 दिसम्बर तय की है। कोर्ट ने नगर आयुक्त व एडीए के उपाध्यक्ष से कहा कि वे कंपनी बाग में प्रकाश, हाईमास्क व वाहन पार्किंग की समुचित व्यवस्था संयुक्त रूप से तत्काल करें। कमेटी के अध्यक्ष व अपर महाधिवक्ता सीबी यादव ने हलफनामा दाखिल कर कहा कि वाहन पार्किंग के लिए स्थान तय कर लिया गया है व इंटरलाकिंग के निविदा की प्रक्रिया पूरी हो गई है। पटरी बनाने का कार्य 19 दिसम्बर तक पूरा हो जाएगा।

गंगा में साइबेरियन पक्षियों और मछलियों के मरने की खबर पर जिला प्रशासन व गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के अधिकारी जागे जरूर हैं, पर कई दिनों की कसरत के बाद भी कारण पता लगाने में उन्हें कामयाबी नहीं मिल सकी है। पिछले दिनों जब गंगा जल में मछलियां मरी मिलीं तो प्रशासन ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। इसके बाद तो यह सिलसिला ही चल पड़ा। संगम के आसपास गंगाजल में रोज मरी मछलियों के मिलने का सिलसिला जारी हो गया। स्थिति तब और बिगड़ गई जब परदेश से आए साइबेरियन पक्षी भी मरने लगे। मामले में गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के अधिकारी लगातार अपने को क्लीन चिट देते रहे। पानी में प्रदूषण नहीं है तो फिर मछलियों और पक्षियों का मरना जारी क्यों है। यह बड़ा सवाल है। मामले को गंभीरता से लेते हुए जिलाधिकारी भवनाथ सिंह ने खुद इस अभियान को अपने हाथ में लिया। अधिकारियों के साथ खुद गंगा तट तक गए और पानी की गुणवत्ता परखी। कारण अभी भी साफ नहीं हो पा रहा है। यही कारण है कि मामले को संज्ञान में लेते हुए हाईकोर्ट ने शासन से पूरी रिपोर्ट मांगी है।

Source: Horoscope 2015

After purification of the foam and the pollution of river water is black

शहर के सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांटों (एसटीपी) में गंदे पानी के शोधन का काम बिलकुल ठीक नहीं चल रहा। गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के अफसरों की लापरवाही की बानगी 'दैनिक जागरणÓ टीम ने देखी। नैनी में 20 एमएलडी की एक एसटीपी बंद मिली और जो एसटीपी चल रही थी, वह भी पूरी क्षमता से काम नहीं कर रही थी। वहीं बक्शी बांध स्थित एसटीपी में भी गंदा पानी गंगा में जाता मिला।

नैनी एसटीपी की क्षमता 80 एमएलडी की है। जागरण टीम दोपहर करीब ढाई बजे यहां पहुंची तो 20 एमएलडी वाला एसटीपी बंद मिला। 60 एमएलडी वाला एसटीपी चल रहा था लेकिन उसमें से एक एसटीपी खराबी के कारण बंद था। जिस टैंक (एफएसटी) में गंदा पानी शोधन के लिए एकत्र होता है, उस एकत्र पानी के शोधन के लिए नौ एरिएटर लगे हैं। इसमें से नियमत: चौबीस घंटे छह एरिएटर चलने चाहिए, लेकिन दैनिक जागरण की टीम को मौके पर पांच ही एरिएटर चलते मिले। इस एसटीपी पर पानी के शोधन के बाद खेतों की सिंचाई के लिए दस पंपों से पानी पंप होना चाहिए, मगर तीन पंप ही चालू हालत में मिले। उधर, जब इस लापरवाही के बारे में महाप्रबंधक आरके त्रिपाठी को जानकारी दी गई, उन्होंने दावा किया कि सुबह छह से 11 और शाम पांच से सात बजे तक 'पीक आवर्सÓ में सभी मशीनें चलती हैं।

उधर, दैनिक जागरण की टीम बक्शी बांध एसटीपी पर दिन में करीब 12 बजे पहुंची। यहां तीन में से दो मशीनें (ब्लोअर) चलती मिलीं। एक स्टैंड बाई में था। उस समय मौजूद सहायक अभियंता रोहित चौरसिया ने बताया कि 29 एमएलडी क्षमता वाले इस एसटीपी में लगभग 35 एमएलडी पानी का दबाव रहता है, जिससे पानी का शोधन मानक के अनुरूप नहीं हो पा रहा है। यही वजह है कि शोधन के बाद भी पानी में जबर्दस्त झाग निकलता मिला। श्री चौरसिया ने बताया कि यहां से निकल रहा पानी सीधे गंगा में जाकर पानी को कॉस्टिक युक्त और काला बना रहा है। वहां मौजूद अन्य अधिकारियों ने सफाई दी कि सलोरी की ओर से पानी का बहाव ज्यादा हो रहा है। पीक आवर्स में दो मशीनें चलती हैं। पानी कम होने पर एक मशीन चलती है।

साइबेरियन पक्षी की हादसे में हुई थी मौत-

संगम में बुधवार को हुई साइबेरियन पक्षी की मौत के कारण का खुलासा शुक्रवार को हो गया। गंगा जल के प्रदूषित होने की वजह से मचा हंगामा अभी ठंडा नहीं हुआ कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने नया मोड़ दे दिया।

वन विभाग ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के हवाले से साइबेरियन पक्षी की मौत की

वजह हादसा बताया है। उसके लीवर में खून के थक्के भी जमे हुए थे। करीब

एक महीने से संगम में मछलियों और साइबेरियन पक्षियों के मरने का

सिलसिला चल रहा है। दो बार साइबेरियन पक्षियों की मौत हो चुकी है,

जबकि मछलियां तो कई बार मर चुकी हैं। चूंकि, मछलियों का पोस्टमार्टम नहीं हो सकता है इसलिए उनकी मौत का राज नहीं खुल सका। पहली दफे चार

साइबेरियन पक्षियों के कुत्तों द्वारा निगल लिए जाने के कारण उनकी भी मौत का राजफाश नहीं हो सका था। लेकिन बुधवार को जब फिर एक साइबेरियन पक्षी की मौत हुई तो कमिश्नर और डीएम के निर्देश पर वन विभाग ने उसका पोस्टमार्टम

कराया। शुक्रवार को पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई।

पानी के साथ बालू भी लाल-

दारागंज से लेकर संगम की तरफ गंगा के पानी के साथ बालू का भी रंग लाल हो गया है। बालू का रंग लाल देख शुक्रवार को श्रद्धालु, नाविक और तीर्थ पुरोहित आश्चर्यचकित हो गए। बालू का रंग वहीं लाल मिला जहां से पानी उतर गया था।