कुलूत प्रदेश के दिवंगत राजा जगत सिंह को जब कुष्ठ रोग ने घेरा तो इस रोग से पार पाने के लिए अयोध्या से रघुनाथ जी को कुल्लू लाया गया। 1672 में अयोध्या से भगवान रघुनाथ व माता सीता की मूर्तियां कुल्लू पहुंचते ही राजा जगत सिंह रोगमुक्त हो गए। कल चोरी हुई रघुनाथ जी की मूर्ति की और भी है अद्भूत बातें-
हालांकि मूर्ति के 1657 के आसपास कुल्लू लाए जाने की भी बाते होती रही हैं, लेकिन कुलूत राज परिवार भी रघुनाथ जी के 1672 में ही कुल्लू पहुंचने की पुष्टि कर रहा है। बताया जाता है कि राजा जगत सिंह को रोगी हालत में देखकर भुंतर क्षेत्र में रहने वाले एक पयहारी बाबा ने ही सलाह दी थी कि वे अयोध्या से रघुनाथ व सीता माता की मूर्तियां लेकर आएं तो ही वे रोगमुक्त हो सकेंगे। इस पर अयोध्या से यह मूर्तियां लाई गईं और उसके बाद रघुनाथ कुल्लू में रहने लगे। रघुनाथ जी को समर्पित कुल्लू दशहरा उत्सव भी 1672 से शुरू हुआ। इस मूर्ति को कुल्लू लाए जाने की नौबत क्यों आई, इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है।
बताया जाता है कि किसी ने राजा जगत सिंह के पास झूठी शिकायत की थी कि मणिकर्ण घाटी के टिपरी गांव के ब्राह्मण दुर्गादत्त के पास चारपथा (करीब पांच किलोग्राम) मोती हैं। इस पर राजा ने आदेश जारी करते हुए ब्राह्मण को कहा कि मैं मणिकर्ण जा रहा हूं, लौटते समय वह मोती मुङो दिखाना। वास्तव में दुर्गादत्त के पास मोती थे ही नहीं। जब ब्राह्मण दुर्गादत्त को पता चला कि राजा मणिकर्ण से लौट रहे हैं तो दुर्गादत्त ने अपने परिवार को घर में कैद किया और घर को आग लगा दी। स्वयं को भी इन्हीं लपटों के हवाले कर दिया। इसके बाद से ही राजा को रोग ने घेरा और इससे पार पाने के लिए अयोध्या से रघुनाथ जी कुल्लू लाए गए। कुछ के लोग मूर्ति को कुल्लू लाए जाने की घटना को एक खास रणनीति से भी जोड़ते हैं। दुर्गादत्त तथा उसके परिवार के प्राण त्यागने के बाद कुलूत राजपरिवार टिपरी गांव नहीं गया। इस घटना के लगभग 340 साल बाद 2011 में टिपरी गांव में दोष मिटाने के लिए कारी छिद्रा नामक यज्ञ हुआ। इस यज्ञ के बाद से ही राज परिवार के सदस्य टिपरी गांव में जा रहे हैं।
इतिहास-16ब्राह्मण की मृत्यु के बाद राजा जगत सिंह हुए थे बीमार
हिमाचल प्रदेश और कुलूत, एनसाईक्लोपीडिया ऑफ कुलूत तथा कुलूती हिंदू व्याकरण के लेखक दयानंद सारस्वत कहते हैं कि रघुनाथ मंदिर से चोरी हुई मूर्ति त्रेता युग की है। यह मूर्ति भगवान श्रीराम चंद्र द्वारा अश्वमेध यज्ञ के समय स्वयं तैयार की गई थी क्योंकि माता सीता उस समय वनवास पर थी। अश्वमेध यज्ञ की पूर्णता के लिए पति पत्नी दोनों को यज्ञ में उपस्थित होना आवश्यक था। सीता की गैर मौजूदगी के कारण श्रीराम व सीता दोनों की यह मूर्तियां तैयार करवाई गई। राजा जगत सिंह ने यह मूर्तियां अयोध्या से कुल्लू लाईं। दूसरी ओर यह भी बताते चलें कि इस बिंदू पर भी कई विद्वानों में बहस होती रही है कि अयोध्या में श्रीराम चंद्र नहीं बल्कि राम लला (बाल राम चंद्र) की मूर्ति है। विद्वान इस पर यह भी बहस करते रहे हैं कि राम चंद्र व सीता की आदिकालीन मूर्तियां कुल्लू में हैं या अयोध्या में हैं। दयानंद सारस्वत, किशोर ठाकुर, प्रताप सिंह ठाकुर आदि कहते हैं कि चोरी की यह वारदात कोई आम नहीं है। यह करोड़ों सनातनियों की आस्था के प्रतीक श्रीराम चंद्र जी से जुड़ा मामला है। इस मामले को प्रशासन और सरकारें अति गंभीरता से लें।
हालांकि मूर्ति के 1657 के आसपास कुल्लू लाए जाने की भी बाते होती रही हैं, लेकिन कुलूत राज परिवार भी रघुनाथ जी के 1672 में ही कुल्लू पहुंचने की पुष्टि कर रहा है। बताया जाता है कि राजा जगत सिंह को रोगी हालत में देखकर भुंतर क्षेत्र में रहने वाले एक पयहारी बाबा ने ही सलाह दी थी कि वे अयोध्या से रघुनाथ व सीता माता की मूर्तियां लेकर आएं तो ही वे रोगमुक्त हो सकेंगे। इस पर अयोध्या से यह मूर्तियां लाई गईं और उसके बाद रघुनाथ कुल्लू में रहने लगे। रघुनाथ जी को समर्पित कुल्लू दशहरा उत्सव भी 1672 से शुरू हुआ। इस मूर्ति को कुल्लू लाए जाने की नौबत क्यों आई, इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है।
बताया जाता है कि किसी ने राजा जगत सिंह के पास झूठी शिकायत की थी कि मणिकर्ण घाटी के टिपरी गांव के ब्राह्मण दुर्गादत्त के पास चारपथा (करीब पांच किलोग्राम) मोती हैं। इस पर राजा ने आदेश जारी करते हुए ब्राह्मण को कहा कि मैं मणिकर्ण जा रहा हूं, लौटते समय वह मोती मुङो दिखाना। वास्तव में दुर्गादत्त के पास मोती थे ही नहीं। जब ब्राह्मण दुर्गादत्त को पता चला कि राजा मणिकर्ण से लौट रहे हैं तो दुर्गादत्त ने अपने परिवार को घर में कैद किया और घर को आग लगा दी। स्वयं को भी इन्हीं लपटों के हवाले कर दिया। इसके बाद से ही राजा को रोग ने घेरा और इससे पार पाने के लिए अयोध्या से रघुनाथ जी कुल्लू लाए गए। कुछ के लोग मूर्ति को कुल्लू लाए जाने की घटना को एक खास रणनीति से भी जोड़ते हैं। दुर्गादत्त तथा उसके परिवार के प्राण त्यागने के बाद कुलूत राजपरिवार टिपरी गांव नहीं गया। इस घटना के लगभग 340 साल बाद 2011 में टिपरी गांव में दोष मिटाने के लिए कारी छिद्रा नामक यज्ञ हुआ। इस यज्ञ के बाद से ही राज परिवार के सदस्य टिपरी गांव में जा रहे हैं।
इतिहास-16ब्राह्मण की मृत्यु के बाद राजा जगत सिंह हुए थे बीमार
हिमाचल प्रदेश और कुलूत, एनसाईक्लोपीडिया ऑफ कुलूत तथा कुलूती हिंदू व्याकरण के लेखक दयानंद सारस्वत कहते हैं कि रघुनाथ मंदिर से चोरी हुई मूर्ति त्रेता युग की है। यह मूर्ति भगवान श्रीराम चंद्र द्वारा अश्वमेध यज्ञ के समय स्वयं तैयार की गई थी क्योंकि माता सीता उस समय वनवास पर थी। अश्वमेध यज्ञ की पूर्णता के लिए पति पत्नी दोनों को यज्ञ में उपस्थित होना आवश्यक था। सीता की गैर मौजूदगी के कारण श्रीराम व सीता दोनों की यह मूर्तियां तैयार करवाई गई। राजा जगत सिंह ने यह मूर्तियां अयोध्या से कुल्लू लाईं। दूसरी ओर यह भी बताते चलें कि इस बिंदू पर भी कई विद्वानों में बहस होती रही है कि अयोध्या में श्रीराम चंद्र नहीं बल्कि राम लला (बाल राम चंद्र) की मूर्ति है। विद्वान इस पर यह भी बहस करते रहे हैं कि राम चंद्र व सीता की आदिकालीन मूर्तियां कुल्लू में हैं या अयोध्या में हैं। दयानंद सारस्वत, किशोर ठाकुर, प्रताप सिंह ठाकुर आदि कहते हैं कि चोरी की यह वारदात कोई आम नहीं है। यह करोड़ों सनातनियों की आस्था के प्रतीक श्रीराम चंद्र जी से जुड़ा मामला है। इस मामले को प्रशासन और सरकारें अति गंभीरता से लें।
Source: Horoscope 2015
No comments:
Post a Comment