Friday, January 31, 2014

Reasons For The Failure Vijay Bahuguna In Uttrakhand


भारत के उत्तराखंड राज्य के इतिहास में विजय बहुगुणा का नाम हमेशा दर्ज रहेगा.
इसलिए नहीं कि उनके दो वर्ष से भी कम के मुख्यमंत्री पद के कार्यकाल में राज्य ने कुछ ख़ास कर दिखाया हो, बल्कि इसलिए क्योंकि उनकी इस पारी के दौरान ही राज्य को अब तक की सबसे भीषण प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ा.

पहले बात विजय बहुगुणा की, जिन्हे कांग्रेस आलाकमान ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने को कहा और अब नए  मुख्यमंत्री के लिए प्रदेश के कुछ दिग्गज नेताओं का नाम ज़ोर पकड़ रहा है.

विजय बहुगुणा के पिता हेमवती नंदन बहुगुणा, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे और उनकी बहन रीता बहुगुणा उसी प्रदेश की कांग्रेस प्रमुख रह चुकी हैं.

खुद विजय बहुगुणा का राजनीतिक इतिहास बहुत लंबा नहीं है. पेशे से वकील और बाद में जज रहे बहुगुणा का राजनीतिक सफ़र एकाएक शुरू हुआ और अब उसी रफ़्तार से ढलान पर जाता नज़र आ रहा है.

जानकारों का तो यहाँ तक कहना है कि उनका मुख्यमंत्री बनना भी कांग्रेस आलाकमान ने तय किया था और उस पद से हटाना भी.

जब साल 2012 के चुनावों में कांग्रेस ने प्रदेश में बेहतर प्रदर्शन किया था तब इस पद की दौड़ में मौजूदा केंद्रीय मंत्री हरीश रावत का नाम सबसे आगे बताया जा रहा था. जबकि विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री बनने से पहले सिर्फ एक बार लोक सभा सदस्य ही रहे थे.

आपदा

लेकिन मुख्यमंत्री बनते ही जैसे विजय बहुगुणा पर प्रशासनिक पहाड़ टूट पड़ा था. उन्हें कार्यभार सँभाले अभी चंद महीने ही हुए थे कि उत्तराखंड में आई भीषण बाढ़ और बादल फटने से केदारनाथ घाटी में कोहराम मच गया.

भारत ही नहीं दुनिया भर की निगाहें इस खूबसूरत प्रदेश पर आकर टिक गईं.

हज़ारों तीर्थयात्री मारे गए, सैंकड़ों लापता रहे और प्रदेश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई. लेकिन इस सब के बीच बार-बार सवाल उठते रहे  उत्तराखंड सरकार पर भी जिसके मुखिया विजय बहुगुणा थे.

सवाल उठते रहे केदारनाथ तीर्थ स्थल और घाटी में मौजूद राहत और बचाव व्यवस्था पर.

16 जून को हुए इस हादसे के दो दिन के भीतर मैं खुद प्रदेश में पहुँच चुका था लेकिन किसी भी सरकारी महकमे से कोई ठोस जानकारी जुटाना शायद बिखर चुकी केदार घाटी में पहुँचने से भी ज्यादा मुश्किल था.

विरोधाभास

दो बार तो ऐसा भी हुआ कि प्रदेश के आपदा प्रबंधन विभाग ने लापता लोगों पर जो आंकड़े जारी किए, मुख्यमंत्री ने उससे ज़यादा आंकड़े एक मीडिया वार्ता में दे डाले.

खुद कांग्रेस पार्टी के भीतर लोग मुख्यमंत्री की तुलना में ज़्यादा चिंतित नज़र आने लगे और ये चिंता सार्वजनिक होने लगी, तब कहीं जाकर प्रदेश सरकार ने अपनी कमर कसी.

लेकिन इस पूरे घटनाक्रम के बीच अभूतपूर्व नुकसान हुआ विजय बहुगुणा की प्रशासनिक छवि का.

उनके अपने विधायक कई दफ़े कथित रूप से उनके बारे में विपरीत राय कांग्रेस आलाकमान तक पहले ही पहुंचा चुके थे.

शायद आगामी लोक सभा चुनावों के पहले प्रदेश में बेहतर प्रदर्शन की आस में ही कांग्रेस आलाकमान ने विजय बहुगुणा का छोटा कार्यकाल और छोटा कर दिया.

Source: Hindi News

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