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Monday, February 2, 2015

When the wife of aristotle celebrate fight

अरस्तु की पत्नी का स्वभाव बहुत ही झगड़ालू था। वह क्रोधी स्वभाव की महिला थीं, एक शाम अरस्तु काफी देर से घर लौटे ।

पत्नी का गुस्सा सातवें आसमान था। अरस्तू के घर में कदम रखते ही वह जोर-जोर से पति को भला बुरा कहने लगी। अरस्तू मानव स्वभाव के गहन पारखी थे।

उन्होंने गुस्से से भरी पत्नी के वचनों का कोई उत्तर नहीं दिया। इससे उनकी पत्नी भी खीझ गई। उसने क्रोध में पानी से भरी बाल्टी को अरस्तू के अर्ध गंजे सिर पर उड़ेल दिया।

लेकिन इस पर भी क्रोध पर विजय प्राप्त किए हुए अरस्तू ने मुस्कुराते हुए सिर्फ इतना कहा, 'वाह क्या सुंदर क्रम चल रहा है। पहले गर्जन फिर बरसात इस तरह पत्नी का क्रोध हंसी में बदल गया।'

यानी किसी बात को आप यदि हंसी के साथ कहें तो वह बात क्रोध के आवेश में चूर मनुष्य को भी पिघला कर निर्मल कर सकती है।

Saturday, December 6, 2014

Datta Jayanti is celebrated on the full moon of Margashirsha

मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है
आज मार्गशीर्ष (अगहन) मास की पूर्णिमा को दत्त जयंती मनाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार इस तिथि को भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था। ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों देवताओं की परमशक्ति जब केंद्रित हुई तब त्रयमूर्ति दत्त का जन्म हुआ।

विविध पुराणों और महाभारत में भी दत्तात्रेय की श्रेष्ठता का उल्लेख मिलता है। वे श्री हरि विष्णु का अवतार हैं। वे पालनकर्ता, त्राता और भक्त वत्सल हैं तो भक्ताभिमानी भी। वेदों को प्रतिष्ठा देने वाले महर्षि अत्रि और ऋषि कर्दम की कन्या अनुसूया के ब्रह्मकुल में जन्मा यह दत्तावतार क्षमाशील अंतकरण का भी है।

भारतीय भक्ति परंपरा के विकास में श्री दत्त देव एक अनूठे अवतार हैं। रज-तम-सत्व जैसे त्रिगुणों, इच्छा-कर्म-ज्ञान तीन भावों और उत्पत्ति-स्थिति-लय के एकत्व के रूप में वे प्रतिष्ठित हैं। उनमें शैव और वैष्णव दोनों मतों के भक्तों को आराध्य के दर्शन होते हैं। शैवपंथी उन्हें शिव का अवतार और वैष्णव विष्णु अवतार मानते हैं। नाथ, महानुभव, वारकरी, रामदासी के उपासना पंथ में श्रीदत्त आराध्य देव हैं।

अगहन पूर्णिमा को प्रदोषकाल में भगवान दत्त का जन्म होना माना गया है। दत्तात्रेय में ईश्वर और गुरु दोनों रूप समाहित हैं और इसलिए उन्हें परब्रह्ममूर्ति सदगुरु और श्री गुरुदेवदत्त भी कहा जाता है। उन्हें गुरु वंश का प्रथम गुरु, साधक, योगी और वैज्ञानिक माना जाता है।

तीन सिर, छ: हाथ, शंख-चक्र-गदा-पद्म, त्रिशूल-डमरू-कमंडल, रुद्राक्षमाला, माथे पर भस्म, मस्तक पर जटाजूट, एकमुखी और चतुर्भुज या षडभुज इन सभी रूपों में श्री गुरुदेव दत्त की उपासना की जाती है।
मान्यता यह भी है कि दत्तात्रेय ने परशुरामजी को श्रीविद्या-मंत्र प्रदान किया था। शिवपुत्र कार्तिकेय को उन्होंने अनेक विद्याएं दी थी। भक्त प्रल्हाद को अनासक्ति-योग का उपदेश देकर उन्हें श्रेष्ठ राजा बनाने का श्रेय भी भगवान दत्तात्रेय को ही है। महाराष्ट्र और कर्नाटक के तो घर-घर में दत्तोपासना होती है।
श्री दत्त भक्त और श्री दत्त महात्म्य कहने वाला श्री गुरुचरित्र दत्त भक्तों का पवित्र ग्रंथ है। जिसका पारायण मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी से मार्गशीर्ष पूर्णिमा तक किया जाता है। दत्त महामंत्र श्री दिगंबरा दिगंबरा श्रीपाद वल्लभ दिगंबरा का जप भी प्रभु की शरण प्राप्ति और उनके स्मरण का मंत्र है।

माना गया है कि भक्त के स्मरण करते ही भगवान दत्तात्रेय उनकी हर समस्या का निदान कर देते हैं इसलिए इन्हें स्मृतिगामी व स्मृतिमात्रानुगन्ता कहा गया है। अपने भक्तों की रक्षा करना ही श्री दत्त का आनंदोत्सव है। केवल स्मरण यही उनकी सेवा और सच्चे भक्तिभाव से ग्रहण कर रहे अन्ना को उन्हें समर्पित करना ही उनकी पूजा है।

श्री गुरुदेव दत्त भक्त की इसी भक्ति से प्रसन्ना होकर स्मरण करने पर उनके निकट जाकर खड़े हो जाते हैं और तमाम विपदाओं से रक्षा करते हैं। आदि शंकराचार्य ने तो कहा है, सारे ऐहिक सुखों, आरोग्य, वैभव, सत्ता, संपत्ति सभी कुछ मिलने के बाद यदि मन गुरुपद की शरण नहीं गया तो फिर क्या पाया।

दत्त पादुका पूजन-

मान्यता है कि दत्तात्रेय नित्य प्रात:काल काशी की गंगाजी में स्नान करते थे। इसी कारण काशी के मणिकर्णिका घाट की दत्त पादुका दत्त भक्तों के लिए पूजनीय है।

इसके अलावा मुख्य पादुका स्थान कर्नाटक के बेलगाम में स्थित है। दत्तात्रेय को गुरु रूप में मान उनकी पादुका को नमन किया जाता है।

Margashirsha Moon: Lunar Mahada meet today with the worship of the moon free

मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु नारायण चंद्रमा की पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। इसी दिन चंद्रमा को अमृत से सिंचित किया गया था चंद्रमा की पूजा से चंद्र की महादशा से मुक्ति मिलती है और ग्रह शांति होती है। इसके अलावा इस दिन कन्या और परिवार की अन्य स्त्रियों को वस्त्र प्रदान करने चाहिए।
सुखों की प्राप्ति व विघ्नों के नाश के लिए किए जाने वाला मार्गशीर्ष पूर्णिमा व त्रिपुर वैभव जयंती का व्रत 6 दिसंबर को किया जाएगा। पूर्णिमा तिथि शाम 6 बजकर 19 से आरंभ होकर 5 बजकर 57 मिनट तक रहेगी। चंद्र पूजन का समय 6 बजकर 19 मिनट के बाद होगा, त्रिपुर वैभव जयंती पर्व भी 6 दिससंबर को मनाया जाएगा। ब्रह्म, विष्णु व महेश के अंशावतार महर्षि दत्तात्रेय के बाल रूप का पूजन भी 6 दिसंबर को किया गया। जबकि मार्गशीर्ष पूर्णिमा के अवसर पर विष्णु भगवान का पूजन भी 6 दिसंबर को ही किया जाएगा। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान शास्त्रों में बताया गया है।

मान्यता है कि इस दिन दान पुण्य करने से वह 32 गुणा फल की प्राप्ति होती है। इसी कारण मार्गशीर्ष पूर्णिमा को बत्तीसी पूनम भी कहा जाता है। इसके अलवा मार्गशीर्ष पूर्णिमा के पावन पर्व पर गंगा समेत अनेक पवित्र नदियों में स्नान का भी विशेष महत्व है। इस अवसर पर किए गए दान व पूजा पाठ का अनंत फल प्राप्त होता है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को पवित्र अवसर माना जाता है जो सभी संकटों को दूर करके मनोकामनाओं की पूर्ति करता है।

पूर्णिमा मार्गशीर्ष माह के संदर्भ में कहा गया है कि इस महीने में स्नान एवं दान का विशेष महत्व होता है। इस माह में नदी स्नान का विशेष महत्व माना गया है। जिस प्रकार कार्तिक, माघ, वैशाख आदि महीने गंगा स्नान के लिए अति शुभ एवं उत्तम माने गए हैं। उसी प्रकार मार्गशीर्ष माह में भी गंगा स्नान का विशेष फल प्राप्त होता है। मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्व है। जिस दिन मार्गशिर्ष माह में पूर्णिमा तिथि हो, उस दिन मार्गशिर्ष पूर्णिमा का व्रत करते हुए श्रीसत्यनारायण भगवान की पूजा और कथा की जाती है जिसका अनन्त फल प्राप्त होता है।