राजेश खन्ना हुए खुश
एक किताब में आरडी बर्मन से जुड़ी कुछ रोचक बातों का जिक्र किया गया है। इसमें बताया गया है कि, एक बार पंचम दा सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ बॉम्बे से दिल्ली जा रहे थे। इस सफर के दौरान उन्होंने एक ऐसा गीत लिख दिया, जो सुपरहिट साबित हुआ। बर्मन द्वारा बनाया गया यह गाना 'ये जो मुहब्बत है' काफी पॉपुलर हुआ। बताया जाता है कि जब पंचम दा ने यह गाना बनाया तो राजेश खन्ना को काफी पसंद आया और उन्होंने इसे 1971 में आई फिल्म 'कटी पंतग' में शामिल किया।
राजेश खन्ना की बेचैनी को किया दूर
लेखक खगेश देव बर्मन द्वारा लिखी गई इस किताब में यह वाक्या दिया गया है। इनके मुताबिक, एक बार राजेश खन्ना और बर्मन एकसाथ दिल्ली तक का सफर कर रहे थे। तभी राजेश ने उनसे कहा कि वह कुछ ऐसा गुनगुना दें कि उनकी बेचैनी शांत हो जाए। इसके बाद पंचम दा ने वही गाना सुना दिया। राजेश ने यह सुना तो उन्हें बहुत पसंद आया। उन्होंने अपने दोस्त और निर्माता-निर्देशक शक्ति सामंत से ‘कटी पतंग’ में एक ऐसी स्थिति बनाने के लिए कहा ताकि हवा में बने बर्मन के इस गीत को उसमें डाला जा सके। इस तरह ‘ये जो मुहब्बत है’ को ‘कटी पतंग’ में डाल दिया गया और यह एक यादगार गीत बन गया।
और बन गया मुसाफिर हूं यारों
पंचम दा यहीं नहीं रुके, एक और वाक्या ऐसा है जो उनके टैलेंट की मिसाल पेश करता है। बताया जाता है कि बर्मन ने एक दूसरा बेमिसाल गाना 'मुसाफिर हूं यारों' आधी रात में तैयार किया था। जब वह और गुलजार कार में बैठकर बॉम्बे की सड़कों पर घूम रहे थे। यह गाना साल 1972 की फिल्म 'परिचय' में डाला गया था। एक बार गुलजार और बर्मन राजकमल स्टूडियो में मिले। वहां बर्मन इतने व्यस्त थे कि उन्हें बात करने का समय नहीं था। गुलजार ने अपनी जेब से कागज का एक टुकड़ा निकाला और कहा, 'यह एक गाने का मुखड़ा है। इसकी धुन बन जाने के बाद मुझे सुना देना।' इसके बाद वर्मन और गुलजार की जोड़ी हिट होती गई और दर्शकों को एक से बढ़कर एक गाने सुनने को मिले।
एक किताब में आरडी बर्मन से जुड़ी कुछ रोचक बातों का जिक्र किया गया है। इसमें बताया गया है कि, एक बार पंचम दा सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ बॉम्बे से दिल्ली जा रहे थे। इस सफर के दौरान उन्होंने एक ऐसा गीत लिख दिया, जो सुपरहिट साबित हुआ। बर्मन द्वारा बनाया गया यह गाना 'ये जो मुहब्बत है' काफी पॉपुलर हुआ। बताया जाता है कि जब पंचम दा ने यह गाना बनाया तो राजेश खन्ना को काफी पसंद आया और उन्होंने इसे 1971 में आई फिल्म 'कटी पंतग' में शामिल किया।
राजेश खन्ना की बेचैनी को किया दूर
लेखक खगेश देव बर्मन द्वारा लिखी गई इस किताब में यह वाक्या दिया गया है। इनके मुताबिक, एक बार राजेश खन्ना और बर्मन एकसाथ दिल्ली तक का सफर कर रहे थे। तभी राजेश ने उनसे कहा कि वह कुछ ऐसा गुनगुना दें कि उनकी बेचैनी शांत हो जाए। इसके बाद पंचम दा ने वही गाना सुना दिया। राजेश ने यह सुना तो उन्हें बहुत पसंद आया। उन्होंने अपने दोस्त और निर्माता-निर्देशक शक्ति सामंत से ‘कटी पतंग’ में एक ऐसी स्थिति बनाने के लिए कहा ताकि हवा में बने बर्मन के इस गीत को उसमें डाला जा सके। इस तरह ‘ये जो मुहब्बत है’ को ‘कटी पतंग’ में डाल दिया गया और यह एक यादगार गीत बन गया।
और बन गया मुसाफिर हूं यारों
पंचम दा यहीं नहीं रुके, एक और वाक्या ऐसा है जो उनके टैलेंट की मिसाल पेश करता है। बताया जाता है कि बर्मन ने एक दूसरा बेमिसाल गाना 'मुसाफिर हूं यारों' आधी रात में तैयार किया था। जब वह और गुलजार कार में बैठकर बॉम्बे की सड़कों पर घूम रहे थे। यह गाना साल 1972 की फिल्म 'परिचय' में डाला गया था। एक बार गुलजार और बर्मन राजकमल स्टूडियो में मिले। वहां बर्मन इतने व्यस्त थे कि उन्हें बात करने का समय नहीं था। गुलजार ने अपनी जेब से कागज का एक टुकड़ा निकाला और कहा, 'यह एक गाने का मुखड़ा है। इसकी धुन बन जाने के बाद मुझे सुना देना।' इसके बाद वर्मन और गुलजार की जोड़ी हिट होती गई और दर्शकों को एक से बढ़कर एक गाने सुनने को मिले।
Source: Hindi News Today from Bollywood News
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