पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 'मणिकर्णिका' में शिव की अर्धांगिनी सती के
कर्णफूल गिरे थे. अपने पिता दक्ष के यज्ञ में तिरस्कृत होने पर सती खुद को
यज्ञ की अग्नि में भस्म कर लेती हैं. शिव जी को यह बात पता चलती है और वे
उद्विग्न हो उठते हैं. विक्षिप्त होकर वे उनका शरीर लेकर पूरे ब्रह्मांड
में चक्कर लगाते हैं इसी दौरान उनकी कानों के फूल यहां गिरे थे. इसके अलावा
मणिकार्णिका से जुडी एक और कथा है कि काशी प्रवास के दौरान शिव व पार्वती
ने यहां स्थित कुंड में स्नान किया था. इस दौरान माता पार्वती के कानों का
कुंडल यहां गिर गया था. इसी के बाद इसी स्थल का नाम मणिकर्णिका पड़ा.
मान्यता है कि यहां पर जिसका अंतिम संस्कार होता है वो सीधे स्वर्ग पहुंचता
है. कहीं कोई रुकावट या रोड़ा नहीं लगता. बार बार जन्म लेने से छुटकारा.
मोक्ष यानि की टोटल डेथ.
काशी में दो श्मशान है. एक हरिश्चंद्र घाट पर तो दूसरा मणिकर्णिका. इन दोनों में श्मशानों को लेकर बहुत कथाएं प्रचलित हैं. इन्हीं कथाओं में मणिकर्णिका को लेकर कहा जाता है कि यहां चिताओं की आग कभी ठंडी नहीं होती. यहां की व्यवस्था डोम राजा परिवार के हाथों में. कोई भी शवदाह करने के लिए यहां आता है तो उसे डोम परिवार से मुक्ति की आग देते हैं. यहां की चिताओं के लिए माचिस से आग प्रज्ज्वलित नहीं की जाती. ऐसी मान्यता भी है कि यहां पर आने वाले शव के साथ स्वंय शिव रहते हैं और मरने वाले को तारक मंत्र देते हैं ताकि उसे मोक्ष की प्राप्ति हो. मान्यता यह भी है कि इस महाश्मशान पर अनादि काल से जल रही अग्नि न ठंडी हुई है और न कभी ठंडी होगी. इसी अनादि काल से जल रही अग्नि से ही चिताओं को अग्नि दी जाती है.
Source: Fun Facts
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